पिछले दस सालों में देखा जाए तो बैंक फ्रॉड कर विदेश भागने के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं, वर्तमान सरकार के आने के बाद इसमें ज़बरदस्त उछाल आया है, नीरव मोदी और मेहुल चौकसे का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि फिर से एक गुजराती व्यापारी नितिन संदेसरा भी 5000 करोड़ से ज़्यादा का चूना लगाकर विदेश फरार हो गया।

देखा जाए तो गुजरात में राजनेताओं, बैंक अधिकारीयों और चुनिंदा पूँजीपतियाँ का एक मज़बूत गठबंधन काम करता रहा, इस गठबंधन के तहत पूंजीपतियों ने सुनियोजित ढंग से बैंकों से लोन लिए, बैंकों ने दिल खोलकर इन्हे लोन दिए, और बाद में ये लोन देने से मना कर दिया, खुद को दीवालिया घोषित कर दिया या फिर बैंकों ने इस बड़ी राशि को NPA, डूबत खाते में डाल दिया, या बची खुची नाम की सम्पत्तियाँ बेचने को आगे कर दीं, या फिर रोकड़ा लेकर देश से फरार हो गए।

21 जुलाई 2016 को DNA में प्रकाशित खबर के अनुसार देश में बैंकों का लोन न चुकाने वाले 5,600 डिफाल्टर गुजरात से हैं जो देश का 15% हैं। आल इंडिया बैंक एम्प्लाइज असोसिएशन (AIBEA) ने कई बार गुजरात सरकार से इन बैंक डिफॉलटर्स से लोन वसूली के निवेदन किये, लोन लेकर न चुकाने वाले बड़े मगरमच्छों की सूची जारी करने की धमकियाँ दीं, 16 जुलाई 2016 को आल इंडिया बैंक एम्प्लाइज असोसिएशन ने धमकी दी थी कि वो गुजरात के 7000 बैंक डिफॉलटर्स के नाम ज़ाहिर कर देगी जो बैंकों का 70,000 करोड़ खाये बैठे हैं,मगर किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी।

इंडियन एक्सप्रेस की 5 सितम्बर 2018 की खबर हैं जिसमें बताया गया है कि गुजरात के बैंकों का NPA का गुब्बारा पिछले साल के मुक़ाबले फूलकर और बड़ा हो गया है, साल 2017 में गुजरात के बैंकों का NPA 35,342 करोड़ था जो कि साल 2018 के पूरा होने से पहले ही 5.7% की उछाल के साथ 37,342 करोड़ पहुँच गया है।

साथ ही एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट: पिछले 5 साल में हुए 8670 ‘लोन घोटाले’, के चलते बैंकों को 612.6 अरब रुपये का चूना लग चुका है। ये राशि बहुत बड़ी है और किसी भी देश का बैंकिंग सिस्टम धाराशाही करने के लिए काफी है, इसका बोझ अप्रत्यक्ष रूप से आम जनता पर ही पड़ता है, बैंक इसकी भरपाई अपने ग्राहकों पर कई तरह की शुल्क लगाकर करते हैं, जिसके उदाहरण हमारे सामने हैं।

साथ ही देखा जाए तो देश के बड़े बिजनेस ग्रुप्स या कंपनियों ने जो लोन लिया है और लौटा नहीं रहे या आनकानी कर रहे हैं उस लोन की कुल रक़म अरबों खरबों तक पहुँच गयी है, 8 मई 2016 को The Hindu में प्रकाशित खबर के अनुसार देश की टॉप 10 कंपनियों ने जो लोन लिया है वो लगभग 5,00,000 (पांच लाख करोड़) है, और लोन नहीं चुकाने के एवज में ये अपनी जो सम्पत्तियाँ आगे कर रहे हैं उनकी क़ीमत कुल मिलाकर मात्र 2,00,000 (दो लाख करोड़) ही बैठती है।

मेक इन इंडिया और गुजरात मॉडल का एक सच ये भी है, दरअसल ये एक 3 D (त्रि-आयामी) ड्रामा है जिसका एक ही आयाम हमें दिखाया जा रहा है, दूसरा आयाम कभी कोई न्यूज़ चैनल या वेब पोर्टल हिम्मत करके दिखा देता है, और तीसरा अंतिम आयाम हमारी आँखों के सामने होते हुए भी नज़र नहीं आता।

The Hindu ने जो टॉप 10 कंपनियों की सूची प्रकाशित की है वो तथा उनके द्वारा लिए गए लोन के साथ निम्न प्रकार से है :-

1. रिलायंस ग्रुप (अनिल अम्बानी) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 1,21,000 (एक लाख इक्कीस हज़ार करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 44,000 करोड़ मात्र।

2. रुईया एस्सार ग्रुप (शशि और रवि रुईया) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 1,01,461 (एक लाख एक हज़ार चार सौ इकसठ हज़ार करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 50,000 करोड़ मात्र।

3. अडानी ग्रुप (गौतम अडानी) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 96,031 (छियानवे लाख इकत्तीस करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 6,000 करोड़ मात्र।

4. जेपी ग्रुप (मनोज गौड़) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 75,000 (पिचहत्तर हज़ार करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 24,000 करोड़ मात्र।

5. GMR ग्रुप (जीएम राव) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 47,976 (सैंतालीस हज़ार नौ सौ छियत्तर करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 5,000 करोड़ मात्र।

6. Lanco ग्रुप (एल मधुसूदन राव) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 47,102 (सैंतालीस हज़ार एक सो दो करोड़ रूपये)

7. वीडियोकौन ग्रुप (वेणुगोपाल धूत) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 45,400 (पैंतालीस हज़ार चौर सौ करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 9,000 करोड़ मात्र।

8. GVK ग्रुप (जी वी कृष्णा रेड्डी) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 34,000 (चौंतीस हज़ार करोड़ रूपये)
लोन के एवज में बेचने के लिए आगे की गयी सम्पत्तियों की क़ीमत : 10,000 करोड़ मात्र।

9. रिलायंस इंडस्ट्री (मुकेश अम्बानी) :-
बैंकों से लिया गया कुल लोन : 1,87,079 (एक लाख सत्यासी हज़ार उन्यासी करोड़ रूपये)

10. टाटा ग्रुप :-

समाचार एजेंसी रायटर्स ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से सूचना का अधिकार, 2005 के तहत मांगी गई जानकारियों से मिले जवाब में यह सामने आया है कि बीते 5 वित्तीय वर्षों में देश भर में 8,670 लोन फ्रॉड के मामले है जिसकी कुल राशि 612.6 अरब रुपए है।

रायटर्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि – ‘ये आंकड़े एक बैंकिंग क्षेत्र में समस्या के भयावह स्थिति खुलासा करते हैं जो उधार देने के खराब तरीकों के बाद दबाव में हैं। बीते साल बैड लोन का आंकड़ा कम से कम 149 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार लोन फ्रॉड जो वित्तीय वर्ष 2012-13 में 63.57 अरब रुपये था वो 2016-17 वित्तीय वर्ष तक 176.34 अरब रुपये तक पहुंच गया। डेटा के अनुसार, जिसमें पीएनबी मामले शामिल नहीं हैं।’

क्या नोटबन्दी और क्या काला धन और क्या घोटाले के दोषी, सब जुमले और ख्याली पुलाव ही निकले, आप और हम नोटबन्दी में बैंकों और एटीएम की लाइनों में लग लग कर अपने है पैसों के लिए धक्के खाये हुए हैं, और दूसरी और ये पूंजीपति कॉर्पोरेट्स और सरकार के चाहते सेठ करोड़ों अरबों बैंकों से लोन लेकर डकार चुके हैं, कई देश से माल लेकर फरार हो चुके हैं।

क्या ललित मोदी, क्या माल्या क्या नीरव मोदी क्या मेहुल चौकसे और क्या नितिन संदेसरा ये सब अपने खातों को बिना आधार कार्ड से लिंक कराये ही बैंकों का अरबों खा पी कर देश से निकल लिए, और ये क्रम जारी है।

ये तय बात है कि चाहे देश के बड़े बैंक डिफाल्टर हों, बढ़ता NPA हो, या फिर बैंक घोटाला हो, या फिर देश से भागते ये माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसे, या नितिन संदेसरा हों, इन्हे राजनैतिक संरक्षण, छूट और अभयदान प्राप्र्त था, एक अप्रत्यक्ष गठबंधन था जिसके एजेंडे में ये सब शामिल था, राष्ट्रीयकृत बैंकों की तरफ से केस लड़ने वाले सनत दत्ता के मुताबिक बैंकों पर राजनेताओं की तरफ से कॉरपोरेट कंपनियों को लोन देने का भारी दवाब होता है. सनत के मुताबिक राजनेता, ब्यूरोक्रेट्स और कॉरपोरेट के गठजोड़ के चलते बैंकों का भारी पैसा डूब रहा है।

ये जो भी डूबता लोन है, बढ़ता NPA है, भागते माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसे और नितिन संदेसरा हैं, इन सबकी वसूली बैंक और सरकार आपसे हमसे ही करेगी, और मोदी सरकार आने के बाद से बैंकों द्वारा लगाए जाने नए नए सेवा शुल्क इस बात के गवाह हैं, SBI ने ही मिनिमम बैलेंस के नाम पर गरीबों, विद्यार्थियों, पेंशनरों, के खातों से 1771 करोड़ रुपये चार्ज के तौर पर वसूले हैं। मिनिमम बैलेंस के तौर पर वसूला गया यह चार्ज एसबीआई की दूसरी तिमाही के नेट प्रोफिट से भी ज्यादा है।

अब क्यों अच्छे दिन का नारा सुनाई नहीं देता, अब क्यों काले धन को वापस लाने की हुंकार सुनाई नहीं देती ? सोचा है कभी ?

अब केवल सुनाई देता है, मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुसलमान, पाकिस्तान, देशप्रेमी-देशद्रोही, वजह तो जानते ही होंगे सब ?

वजह है कि देश के खोखले होते बैंकिंग सिस्टम, काले धन, बैंक घोटालों, रक्षा सौदों पर जनता का ध्यान नहीं जाए, हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान हिंदुस्तान में ही सर फोड़ते रहें. यही तो न्यू इंडिया का मन्त्र है।

खैर, मुस्कुराइए आप न्यू इंडिया की चौखट पर पड़े हैं।

फोटो साभार : BBC हिंदी.

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