हिरासत में लिया गया श्रीनगर का चौथी क्लास में पढ़ने वाला 9 साल का ये बच्चा हिरासत में लिए गए घोषित 144 बच्चों में सबसे छोटा था।

Telegraph India ने खबर दी है कि घर से ब्रेड खरीदने निकले श्रीनगर निवासी चौथी क्लास में पढ़ने वाले 9 साल के बच्चे को बुरी तरह से पीटा गया और उसके बाद पुलिस ने उसे में दो दिन तक हवालात में रखा गया , उसके दादा दादी का कहना है कि इस घटना के बाद से वो बच्चा ख़ौफ़ज़दा है और एकाकी हो गया है।

आधिकारिक सूची के अनुसार चौथी क्लास के उस स्टूडेंट ने अपनी माँ को पाँच महीने की उम्र में ही खो दिया था और उसके बाद उसके पिता ने भी उसे छोड़ दिया गया था, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की एक याचिका के जवाब में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति ने सूची तैयार कर पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में पेश की है जिसमें बताया गया है कि कश्मीर में जारी दो महीने की पाबंदियों और कर्फ्यू के दौरान दौरान आधिकारिक तौर पर कम से कम 144 नाबालिगों को हिरासत में लिया गया था।

इस रिपोर्ट में सरकार ने दावा किया है कि किसी भी नाबालिग को अवैध रूप से हिरासत में नहीं लिया गया था बल्कि वे सभी निगरानी गृह में बंद थे। रिपोर्ट के अनुसार 9 साल के बच्चे को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के निरस्त होने के दो दिन बाद 7 अगस्त को हिरासत में लिया गया था और उसी दिन रिहा कर दिया गया था, लेकिन उनके परिवार का कहना है कि बच्चे ने पुलिस स्टेशन में दो दिन बिताए।

बच्चे ने The Telegraph को बताया कि प्रदर्शन और सुरक्षा बलों के बीच झड़प के बाद उसे हिरासत में लिया गया और थाने में ले जाने से पहले उसकी पिटाई की गई। उसने बताया “मेरे खून बहाना शुरू हो गया था लेकिन उन्होंने कोई दया नहीं दिखाई और मुझे पुलिस स्टेशन ले गए।” “मेरी दादी ने मुझे ब्रेड खरीदने के लिए एक बेकर की दूकान पर भेजा था। मैंने उन्हें ब्रेड दिखाई और बताया कि मेरे कोई माता-पिता नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया और मुझे दो दिनों के लिए बंद कर दिया। ”

उनकी दादी ने कहा कि “लड़का अब शायद ही कभी बाहर निकले, वो अपने घर की चार दीवारों में ही सिमट कर रह गया है, वह फिर से गिरफ्तारी के डर से बाहर नहीं निकलता।” उसने कहा कि “मैं और मेरे पति लड़के की नजरबंदी के बारे में जानने के लिए पुलिस स्टेशन गए थे। “हम रात में 2.30 बजे तक पुलिस थाने के बाहर लेटे रहे और जब उस बच्चे को रिहा नहीं किया गया तो घर लौट आए।” दादी को बच्चे की नजरबंदी या रिहाई की तारीखें को याद नहीं रहीं।

दादी ने कहा कि उन्होंने उस बच्चे की माँ की मौत के बाद से लड़के और उसकी बड़ी बहन को पाला था। वो आगे बताती हैं कि “उसके पिता ने दूसरी शादी करने के लिए उस बच्चे और उसकी बहन को छोड़ दिया। उसने अपनी नई पत्नी के साथ घर बसा लिया है।”

दादा-दादी गरीब हैं और एक घर में दो बच्चों के साथ एक कमरे और एक रसोईघर के साथ रहते हैं। दादा ने कहा कि पुलिस ने शुरू में हमें हर सुबह उनके सामने बच्चे को पेश करने के लिए कहा गया था जैसा कि आम तौर पर पाबंदियों के दौरान हिरासत में लिए गए कई युवाओं के साथ है। यह कार्रवाही कथित तौर पर उन्हें पत्थरबाजी से रोकने के लिए की जाती है।

दादा बताते हैं कि “हमने उन्हें बताया कि वो बच्चा ये सब करने के लिए बहुत छोटा है, तो उसके बाद उन्होंने हमें 15 स्थानीय लोगों को लाने के लिए कहा, जो एक बॉन्ड (अच्छे व्यवहार की गारंटी) पर हस्ताक्षर करेंगे ।” “हम बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने के लिए 20 लोगों को ले गए, तब से हमें परेशान नहीं किया गया है। ”

उच्च न्यायालय की रिपोर्ट में प्रस्तुत पुलिस का जवाब कहता है कि “कानून तोड़ने के आरोप में एक भी किशोर को अवैध रूप से हिरासत में नहीं लिया गया है”। इसमें आगे कहा गया है कि “यदि कानून तोड़ने के लिए कोई लड़के यदि हिरासत में भी रहे तो उन्हें संबंधित किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों के तहत निगरानी गृहों में रखा गया है।”

फोटो प्रतीकात्मक.

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