भारतीय विज्ञान कांग्रेस या ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ’ (Indian Science Congress Association / ISCA) भारतीय वैज्ञानिकों की शीर्ष संस्था है। इसकी स्थापना सन् 1914 में हुई थी। प्रतिवर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह में इसका सम्मेलन होता है। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारत में विज्ञान को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।

मगर पिछले तीन चाल सालों से भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से ये विज्ञान कांग्रेस विश्व में हंसी का पात्र बनी हुई है, इस बार 106 वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में इसी परंपरा को जारी रखा है आंध्र विश्वविद्यालय के वीसी जी नागेश्वर राव ने, उन्होंने एक से बढ़कर एक हास्यास्पद तर्क और सिद्धांत परोसे जैसे कि सुदर्शन चक्र की तुलना ‘गाइडेड मिसाइलों’ से करने या फिर रावण के पास लंका में कई हवाई अड्डों के होने आदि इत्यादि।

ये पहले मौक़ा नहीं है जब इस प्रतिष्ठित विज्ञान कांग्रेस में इस तरह के हास्यास्पद तर्क, सिद्धांत या बयान पेश किये गए हों, हम लोग जल्दी भूल जाते हैं 2014 में मुंबई में आयोजित होने वाली इसी तरह की 102वीं इंडियन साइंस कांग्रेस को रोकने के लिए अमरीका में नासा के ऐम्ज रिसर्च सेंटर में काम करने वाले वैज्ञानिक डॉ. राम प्रसाद गांधीरमन ने एक ऑनलाइन  पिटीशन भी दायर की थी।

तब Mumbai Mirror में प्रकाशित खबर के अनुसार उसका कारण था कि तब उस 102वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में होने वाली वैदिक विमानों पर कैप्टन आनंद जे बोडास द्वारा की जाने वाली ये चर्चा कि वैदिक युग में भारत में ऐसे विमान थे जिनमें रिवर्स गियर था यानी वे उलटे भी उड़ सकते थे। इतना ही नहीं, वे दूसरे ग्रहों पर भी जा सकते थे।

डॉ. राम प्रसाद गांधीरमन द्वारा दायर की गयी उस ऑनलाइन पिटिशन को तब 220 वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का साथ मिल चुका था। गांधीरमन का कहना था कि भारत में मिथकों और साइंस के घालमेल की कोशिशें बढ़ रही हैं और ऐसे में इस तरह के लेक्चरों का रोका जाना जरूरी है।

गांधीरमन ने तब इस कोशिश के उदाहरण के तौर पर मोदी के उस भाषण का भी जिक्र किया था जहां उन्होंने गणेश को हाथी का सिर लगाए जाने को भारत के प्राचीन प्लास्टिक सर्जरी ज्ञान का नमूना बताया था। ज्ञातव्य है कि 2014 में एक निजी अस्पताल का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  कहा था  कि  ‘विश्व को प्लास्टिक सर्जरी का कौशल भारत की देन है. दुनिया में सबसे पहले गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी, जब उनके सिर की जगह हाथी का सिर लगा दिया गया था.’

गांधीरमन ने अपनी याचिका में कहा है कि एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस के लिए ऐसी छद्म-वैज्ञानिक बातों को मंच देना एक शर्मनाक बात है।

यही नहीं प्रतिष्ठित विज्ञान कांग्रेस में इस तरह के हास्यास्पद एजेंडों के थोपे जाने के चलते ही 2016 में नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकटरमण रामाकृष्णन ने भविष्य में भारत में आयोजित होने वाले इस तरह के विज्ञान कांग्रेस में भाग नहीं लेने की घोषणा की थी।

उनका भी तर्क ठीक NASA के वैज्ञानिक डॉ. राम प्रसाद गांधीरमन के समान ही था, उन्होंने तब इस विज्ञान कांग्रेस को सर्कस की संज्ञा दी थी, उन्होंने कहा था कि “Science congress a circus”, और उन्होंने राजनीति और धर्म को विज्ञान से जोड़ने पर आपत्ति दर्ज कराई थी।

मगर NASA में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. राम प्रसाद गांधीरमन की तार्किक बात देश में थोपे जा रहे वैदिक, पौराणिक या छद्म विज्ञान गढ़ने वालों की अक़्ल में बिलकुल भी नहीं आयी और नतीजा निकल कर आया ‘कौरव टेस्ट ट्यूब बेबी, पौराणिक काल में भारत के पास ‘गाइडेड मिसाइल’ और रावण के पास लंका में कई हवाई अड्डे होने जैसे हास्यास्पद तर्कों, सिद्धांतों और मिथकों के रूप में। आगे अभी और न जाने क्या क्या देखना सुनना बाक़ी है।

खैर जिस देश के थोपे गए ‘न्यू इंडिया’ में मोर के आंसू पीकर मोरनी गर्भवती हो सकती है, बतख के तैरने से ऑक्सीजन पैदा हो सकती है, वैदिक काल में इंटरनेट हो सकता है, रिवर्स गियर वाले विमान हो सकते हैं तो फिर इस के दौर में सब कुछ संभव है।

नोबल पुरस्कार प्राप्त और NASA के वैज्ञानिक इसके आगे नतमस्तक हैं, आधुनिक विज्ञान भौंचक्का है, विश्व समुदाय में भगदड़ मची है, विश्व के सभी वैज्ञानिक कोमा में हैं, नमन रहेगा आपकी सोच, तर्कों और सिद्धांतों को। वास्तव में बहुत जल्दी बल्कि शार्ट कट से हम विश्वगुरु बनने जा रहे हैं।

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