चुनावों में आतंकी हाफिज सईद को नकार चुके पाकिस्तान की लेखिका फहमीदा रियाज़ ने प्रज्ञा ठाकुर को चुनावों में जिताकर संसद भेजने वाले भारत की जनता को बहुत पहले ही इस बात की बधाई दे दी थी

पाकिस्तानी लेखिका, साहित्यकार फहमिदा रियाज़ पाकिस्तानी होने के बावजूद भारत को कभी पाकिस्तान जैसा बनते हुए नहीं देखना चाहती थीं, फहमिदा रियाज़ को भारत में बीते कुछ सालों से बढ़ रही धार्मिक कट्टरपंथ, धार्मिक ध्रुवीकरण और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की घटनाओं ने बेचैन कर दिया था, भारत के इस हालात को लेकर वह बहुत दुखी थीं।

पाकिस्तान ने कट्टरपंथिता से जो खोया था, वह नहीं चाहती थीं कि भारत भी उसकी चपेट में आए, भारत में बहुत मशहूर हुई फहमिदा रियाज़ की यह नज़्म , ‘तुम हम जैसे ही निकले’ में मानो वो भारत से ही संवाद कर रही हैं. वो लिखती हैं कि :-

तुम बिलकुल हम जैसे निकले-
अब तक कहाँ छुपे थे भाई ?

वो मूर्खता वो घामड़पन
जिसमे हमने सदी गंवाई

आखिर पहुंची द्धार तुम्हारे
अरे बधाई बहुत बधाई

प्रेत धरम का नाच रहा है
कायम हिन्दू राज करोगे?

सारे उलटे काज करोगे
अपना चमन दराज़ करोगे

तुम भी बैठे करोगे सोंचा
पूरी है वैसी तैयारी

कौन है हिन्दू कौन नहीं है
तुम भी करोगे फतवे जारी

होगा कठिन यहाँ भी जीना
रातों आ जायेगा पसीना

जैसी तैसी कटा करेगी
यहां भी सबकी साँस घुटेगी

कल दुःख से सोंचा करती थी
सोंच के बहुत हँसी आज आई

तुम बिलकुल हम जैसे निकले
हम दो क़ौम नहीं थे भाई !

भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिलपन के गुण गाना

आगे गड्ढा है ये मत देखो
वापस लाओ गया ज़माना

मश्क़* करो तुम आ जायेगा
उलटे पाँव चलते जाना

ध्यान न मन में दूजा आये
बस पीछे ही नज़र जमाना

एक जाप सा करते जाओ
बारम-बार यही दोहराओ

कितना वीर महान था भारत
कैसा आलिशान था भारत

फिर तुमलोग पहुँच जाओगे
बस परलोक पहुँच जाओगे

हम तो हैं पहले से वहाँ पर
तुम भी समय निकालते रहना

अब जिस नरक में जाओ वहाँ से
चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना !!

28 जुलाई, 1946 को मेरठ में जन्मीं मशहूर पाकिस्तानी शायरा और सामाजिक कार्यकर्ता फहमिदा रियाज़ का परिवार पाकिस्तान के हैदराबाद शहर में जा बसा था, बचपन से ही लिखने और साहित्य में रुचि और उदारवादी सोच रखने के कारण फहमिदा रियाज़ को अपने ही मुल्क पाकिस्तान में कई विरोधों का सामना करना पड़ा था, एक समय तो उनकी लेखनी और राजनीतिक विचारों के कारण उन पर 10 से ज्यादा केस चलाए गए थे।

यही वो समय था जब पंजाब की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कह कर उनके रहने की व्यवस्था भारत में करवाई थीं।

इस दौरान फ़हमीदा करीब सात सालों तक भारत में रहीं. दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में रहकर हिंदी पढ़ना सीखा और फिर जब अपने देश पाकिस्तान वापस लौटीं तो बेनजीर भुट्टो की सरकार में सांस्कृतिक मंत्रालय से जुड़ गईं थीं।

आज देश के हालात पर बरबस ही उनकी और उनकी इस नज़्म की नसीहतें याद आ गयीं !

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