समझिये किस तरह से हम ‘राष्ट्रवाद और बाजार के ज़हरीले मेल’ क्रिकेट के नशे के शिकार हो रहे हैं।

समझिये किस तरह से हम ‘राष्ट्रवाद और बाजार के ज़हरीले मेल’ क्रिकेट के नशे के शिकार हो रहे हैं।

क्रिकेट अब खेल नहीं रह गया ना ही उसमें कोई खेल भावना बची होने की सम्भावना नज़र आती है, अब इस खेल का व्यवसायीकरण कर ‘राष्ट्रवाद का दंगल’, ‘बाप बेटे की लड़ाई’, महा मुक़ाबला, आर पार की लड़ाई, धो डालो, रगड़ डालो जैसे नारों और हेडिंग के साथ टीवी डब्बे और मीडिया के जारिए हमारे […]

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