भारत में सोशल मीडिया के दुरूपयोग के हम सब गवाह हैं, इस मंच से नफरत, साम्प्रदायिकता फ़ैलाने, दुष्प्रचार करने, अफवाहें फ़ैलाने के लिए खुल कर इस्तेमाल हो रहा है, मुज़फ्फरनगर दंगा किसे याद नहीं है,एक फेक वीडियो को वायरल कर पूरे यूपी को दंगों की आग में झोंक दिया गया था।
देश में आज भी सोशल मीडिया पर हेट स्पीच चरम पर है, फेसबुक हो या ट्वीटर या फिर अन्य माध्यम सब जगह लोग और ट्रॉल्स बेख़ौफ़ होकर हेट स्पीच का ज़हर उगलते देखे जा सकते हैं, ट्वीटर पर सच सामने रखने वाले पत्रकारों, महिलाओं और सत्ता से असहमतों के खिलाफ ये ज़हर आज भी अभी भी देखा जा सकता है, इसके पीछे का कारण सत्ता द्वारा इन्हे दिया गया अभयदान, लचर क़ानून और ट्रोल्स का संरक्षण है।
देश में जारी मॉब लिंचिंग के लिए सोशल मीडिया सबसे बड़ा हथियार बन गया है, गौ तस्करी, गोकशी या बच्चे चोरी करने की अफवाहों के चलते देश में लगभग 30 लोग बेमौत मारे गए, इसके पीछे सोशल मीडिया का बड़ा रोल रहा था, यहाँ तक कि देश में बढ़ती मॉब लिंचिंग के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को सोशल मीडिया के ज़रिये अफवाहें फैलाकर मॉब लिंचिंग किये जाने को रोकने के लिए ठोस क़दम उठाने के आदेश तक जारी करना पड़े थे।
इसके अलावा भी देश में हज़ारों उदाहरण हैं, जहाँ इस मंच के ज़रिये झूठ, साम्प्रदायिकता, दुष्प्रचार, नेताओं के चरित्र पर झूठे लांछन, फ़र्ज़ी और फोटोशॉप खबरे समाज और सौहार्द को तोड़ने हिंसा फैलाई गयी है, और ये क्रम जारी है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सोशल मीडिया विश्व में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है, हर साल सोशल मीडिया पर लाखों करोड़ों लोग इस मंच से जुड़ते हैं, मगर जहाँ ये मंच लोगों को कनेक्ट करने में अहम् भूमिका निभाने के लिए रोल अदा कर रहा है, वहीँ विश्व में पिछले सालों में इसका दुरूपयोग करने के मामलों में बड़ी तेज़ी से वृद्धि हुई है।
विश्व में सोशल मीडिया के प्रसार के साथ घृणा और हिंसा के प्रसार में भी उसका इस्तेमाल होने लगा है, कई देश इस दुरूपयोग से चिंतित हैं और इसके खिलाफ तत्परता से संज्ञान ले रहे हैं, दुनिया के दूसरे देशों की तरह जर्मनी भी सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों से तंग है, और इसके खिलाफ कड़े क़दम उठाना शुरू भी कर दिए हैं।
इसी के चलते जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी महिला सांसद को नए साल की पूर्व संध्या पर सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी भड़काऊ टिप्पणी करने पर पुलिस जांच का सामना करना पड़ा था। इसी क़ानून के डर के चलते ट्विटर ने झटपट कई मुस्लिम विरोधी और प्रवासी विरोधी ट्वीट हटा दिए थे।
ब्रिटैन ने भी फेसबुक के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर पांव फैला रहे नफरती गैंग्स और उनके घृणित एजेंडों पर लगाम लगाने की पहल की है और Britain First जैसे दक्षिणपंथी संगठन और उसके पदाधिकारियों के अकाउंट SUSPEND कर दिए हैं।
13 मार्च 2018 को अल-जज़ीरा ने ही खबर दी थी UN फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानो के क़त्ले आम में फेसबुक ने बड़ा ROLE अदा किया था। और इसी के चलते फेसबुक ने म्यांमार के सेनाध्यक्ष सहित बड़े अधिकारीयों के फेसबुक एकाउंट्स ऑनर पेजेज़ डिलीट कर दिए थे।
श्रीलंका में अतिवादी बौद्धों और मुसलमानो के बीच हुए दंगों में भी इसी फेसबुक ने Role अदा किया था, श्रीलंकन पुलिस ने बताया था कि सोशल मीडिया ने इस हिंसा को बढ़ने में अहम् रोल अदा किया था, इसी के चलते वहां सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गयी थी जिसे सोशल मीडिया साइट्स के आश्वासन के चलते एक हफ्ते बाद उठाया गया था।
अरब देशों में वैसे भी सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार, हेट स्पीच और हिंसक पोस्ट्स के खिलाफ कड़े क़ानून हैं, अभी मार्च 2017 की ही बात है कि दुबई में मालाबार गोल्ड एंड डायमंड में कार्यरत एक भारतीय को दुष्प्रचार करने ट्रॉलिंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर उस पर 250000 दिरहम का जुर्माना लगा कर भारत डिपोर्ट कर दिया गया था।
कई देशों के कई उदाहरण है, जहाँ सोशल मीडिया पर हेट स्पीच, दुष्प्रचार, धार्मिक नफरत फ़ैलाने से तंग आकर कड़े क़ानून और सज़ाएं दी जा रही हैं, मगर भारत में इसका उल्टा हो रहा है, सोशल मीडिया पर नफरती गैंग्स को आशीर्वादों, और फॉलोविंग से नवाज़ा जा रहा है।
सबसे दुखद बात ये है कि कई मामलों में खुद सत्ता पर क़ाबिज़ सियासी दल और उनके आईटी सेल इसमें भूमिका निभाते पाए गए, सोशल मीडिया पर नकेल या दुरूपयोग के लिए बने क़ानून का इस्तेमाल सत्ता में बैठे लोग, राजनैतिक प्रतिद्वंदियों और विरोधियों को डराने, दमन करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
अब भी अगर विश्व में अन्य देशों की तरह भारत में सोशल मीडिया के इस निरंकुश दुरूपयोग पर नकेल नहीं कसी गयी तो लोगों को आपस में जोड़ने के लिए बना ये मंच लोगों को तोड़ने, समाज, सौहार्द, सद्भाव, आंतरिक सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनकर खड़ा हो जायेगा, तब तक देर हो चुकी होगी।
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