पहला फोटो मोदी सरकार में शामिल हुए उड़ीसा के प्रताप चंद्र सारंगी का है जिनकी सादगी के ढोल गोदी मीडिया ने बड़ी ज़ोर से पीटा था, दूसरा फोटो है प्रोफ़ेसर अलोक सागर का आप इनकी सादगी की तुलना प्रताप चंद्र सारंगी की सादगी से कर बता सकते हैं कि सादगी किसे कहते हैं, सड़क पर बैठकर खाना खाते हुए तीसरा फोटो है विश्व प्रसिद्द अर्थ शास्त्री ज्यां द्रेज का।

आइये अब इन तीनों फोटोज़ और तीनों के व्यक्तित्व की बात करते हैं :-

1. प्रताप चंद्र सारंगी :
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सबसे पहले मीडिया के चहेते और कथित सादगी पसंद बालासोर लोकसभा क्षेत्र से सांसद प्रताप चंद्र सारंगी का जिन्हे मोदी सरकार में दो मंत्रालयों का प्रभार सौंपा गया है, लोग इन्हे उड़ीसा का मोदी भी कहते हैं, शपथग्रहण के मौके पर जब उनका नाम पुकारा गया तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया गया, मीडिया ने उनकी सादगी की शान में क़सीदे पढ़ना शुरू कर दिए।

मगर कुछ ही देर में उनकी सादगी के क़सीदों और उन तालियों की गड़गड़ाहट के पीछे का राज़ सामने आ गया, मीडिया में छपी ख़बरों के अनुसार सारंगी पर 7 क्रिमिनल केस दर्ज हैं। जनसत्ता में प्रकाशित खबर के अनुसार इनमें एक बहु चर्चित केस वो है जिसमें ओडिशा में कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने वाले ग्राहम स्टेन्स को 23 जनवरी 1999 को उनकी ही गाड़ी में जलाकर मार डाला गया था।

उस वक्त गाड़ी में ग्राहम के दो मासूम बच्चे भी जलकर मर गए थे, ये क्रूर हत्याकांड बजरंग दल वालों ने करवाया था, प्रताप चंद्र सारंगी उस वक्त ओडिशा में बजरंग दल के स्टेट को-ऑर्डिनेटर थे। सारंगी के खिलाफ दंगा, धार्मिक उन्माद भड़काने जैसे कई मामले दर्ज हैं, हालांकि उन्हें किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया। इस केस के मुख्य अभियुक्त दारा सिंह को फांसी की सजा हुई थी, बाद में उसकी सजा को उम्र कैद में बदल दिया गया था, वह भी बजरंग दल से जुड़ा हुआ था।

2. प्रोफेसर आलोक सागर :
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उलझे हुए बढे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी, बदन पर केवल एक धोती, हाथ में एक झोला और पैरों में टायर की बनी चप्पल…. यह हुलिया आईआईटी दिल्ली के एक प्रोफेसर आलोक सागर का है, जो गरीब आदिवासियों को जिंदगी बदलने का तरीका सिखाने उनके बीच अपनी पहचान छुपाकर रह रहे हैं, प्रोफेसरआलोक RBI गवर्नर रहे रघुराम राजन सहित कई जानी-मानी हस्तियों को पढ़ा चुके हैं।

1977 में अमेरिका के हृयूस्टन यूनिवर्सिटी टेक्सास से शोध डिग्री ली. टेक्सास यूनिवर्सिटी से डेंटल ब्रांच में पोस्ट डाक्टरेट और समाजशास्त्र विभाग, डलहौजी यूनिवर्सिटी, कनाडा में फैलोशिप भी की, पढ़ाई पूरी करने के बाद आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर बन गए. यहां मन नहीं लगा तो नौकरी छोड़ दी।

आलोक सागर ने 26 साल पहले 1990 से अपनी तमाम डिग्रियां संदूक में बंदकर रख दी थीं, अब वो बैतूल जिले में सालों से आदिवासियों के साथ सादगी भरा जीवन बीता रहे हैं, वो आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं, इसके अलावा गांव में फलदार पौधे लगाते हैं, अब हजारों फलदार पौधे लगाकर आदिवासियों में गरीबी से लड़ने की उम्मीद जगा रहे हैं. उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर चीकू, लीची, अंजीर, नीबू, चकोतरा, मौसंबी, किन्नू, संतरा, रीठा, मुनगा, आम, महुआ, आचार, जामुन, काजू, कटहल, सीताफल के सैकड़ों पेड़ लगाए हैं।

 

आलोक आज भी साइकिल से पूरे गांव में घूमते हैं, आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना उनकी दिनचर्या में शामिल है, कोचमहू आने के पहले वे उत्तरप्रदेश के बांदा, जमशेदपुर, सिंह भूमि, होशंगाबाद के रसूलिया, केसला में भी रहे हैं, इसके बाद 1990 से वे कोचमहू गांव में आए और यहीं बस गए।

स्थानीय आदिवासियों के लिये अलोक सागर एक मसीहा बनकर सामने आए, उन्होंने आदिवासियों को पढ़ना-लिखना सिखाया और उनके साथ मिलकर हरियाली यात्रा शुरू की, पिछले तीन सालों में आलोक सागर ने आसपास के जंगलों में लाखों पेड़ पौधे लगाएं हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां हरियाली से महरूम न रह जाएं. वो हमेशा साइकल से ही घूमते हैं, जिससे प्रकृति को नुकसान न हो।

3. ज्यां द्रेज (Jean Drèze) :
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सड़क पर लोगों के साथ बैठकर खाना खाने वाला ये कोई आम आदमी नहीं है, विश्व विख्यात अर्थ शास्त्री ज्यां द्रेज हैं, ये 1959 में बेल्जियम में पैदा हुए थे, इनके पिता जैक्वेस ड्रीज अर्थशास्त्री थे, ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए।

1979 से भारत में ही रह रहे हैं, भारत की नागरिकता उन्हें 2002 में मिली, इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी पूरी की है। फिलहाल वे रांची यूनीवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित देश- दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर भी हैं।

अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं. इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 से ज्यादा एकेडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख अर्थशास्त्र में दिलचस्पी रखने वालों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं. वो भारत में भूख, महिलाओं के मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता के लिए काम कर रहे हैं।

 

केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी तब ज्यां द्रेज नेशनल एडवाजरी कमेटी के सदस्य थे, द्रेज ने कांग्रेस सरकार की योजना मनरेगा की ड्राफ्टिंग भी की थी।

आरटीआई के कानून के बारे में तो सब जानते हैं। जिस कानून की मदद से हम किसी भी सरकारी दफ्तर में जा कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उस आरटीआई के कानून को लागू करवाने उसने ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ज्यां द्रेज का नाम देश दुनिया के जाने माने अर्थशात्रियों में आता है।

नवंबर 2017 में जब मनरेगा के लिए कुछ गरीब आँदोलन करने के लिए आये थे तो ज्यां द्रेज उन्ही के साथ में वही पर धरने पर बैठे गये और फिर उन्होंने वही पर उन लोगो के साथ वक्त बिताया। इस दौरान जब गुरुद्वारे का खाना आया तो वो खाने के लिए वही सड़क पर बैठ गये और खाना खाने लगे।

अभी 28 मार्च 2019 की ही बात है जब ज्यां द्रेज और उनके दो सहयोगियों को झारखंड के गढ़वा जिले में पुलिस ने हिरासत में ले लिया था, ज्यां द्रेज और उनके सहयोगियों के लिए विष्णुपुर बाजार में ‘भोजन के अधिकार’ अभियान के तहत एक कार्यक्रम रखा गया था, इसी कार्यक्रम से पुलिस उन्हें उठाकर ले गई थी। बाद में सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बवाल हुआ तो उन्हें रिहा करना पड़ा था।

किसी भी देश की उन्नति, प्रगति, विज्ञानं प्रौद्योगिकी और सामाजिक उत्थान के साथ आगे बढ़ने के लिए किस तरह की प्रतिभाएं और किस तरह का नेतृत्व चाहिए ये देश की जनता को तय करना होता है, यहाँ देख सकते हैं कि जहाँ एक ओर रघुराम राजन के गुरु रह चुके प्रोफ़ेसर आलोक सागर की सादगी, जनकल्याण और सामाजिक उत्थान के लिए किये गए कार्यों की मीडिया में कोई चर्चा नहीं होती ना ही सरकारें इन्हे सहयोग कराती हैं वहीँ विश्व प्रसिद्द अर्थ शास्त्री ज्यां द्रेज जैसों को कई बार राजनैतिक प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ा है।

ये जनता को तय करना है कि ये देश क्रिमिनल केसों वाले नेताओं से विश्वगुरु बनेगा या प्रोफेसर आलोक सागर और ज्यां द्रेज जैसी प्रतिभाओं से ?

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