पाकिस्तान में कभी एक ‘भारतीय’ दुनिया भर के बेसहारा, गरीबों, यतीमों के घावों पर मरहम लगाता था, जब भी कहीं आतंकवादी हमला होता था या कोई आपदा आती थी तो सबसे पहले उनके एम्बुलेंस मौके पर पहुंचकर लोगों की मदद करती थी, वो थे अब्दुल सत्तार एधी।
साल 2015 में पाकिस्तान से गीता नाम की लड़की की वापसी के साथ एक नाम बहुत चर्चित हुआ था वो था अब्दुल सत्तार एधी का, इंसानियत के पैरोकार, गरीबों, अनाथों के मसीहा जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी परोपकार के लिए समर्पित कर दी।
मौलाना एधी 28 फ़रवरी 1928 को भारत के गुजरात राज्य के बनतवा शहर में पैदा हुए थे, उनके पिता कपड़े के व्यापारी थे। वह जन्मजात लीडर थे और शुरू से ही अपने दोस्तों की छोटे-छोटे काम और खेल-तमाशे करने पर होसला अफ़ज़ाई करते थे। जब अनकी मां उनको स्कूल जाते समय दो पैसे देतीं थी तो वह उन में से एक पैसा खर्च कर लेते थे और एक पैसा किसी अन्य ज़रूरतमंद को दे देते थे।
सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान चला गया था और कराची में बस गया था। अब्दुल सत्तार एधी ने 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में आपने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली।
डिस्पेंसरी से शुरू हुई उनकी समाज सेवा एनजीओ और उसके बाद फाउंडेशन में बदल गयी, उन्होंने पांच हजार रुपए की शुरुआती राशि के साथ ईधी ट्रस्ट नामक एक कल्याण ट्रस्ट की स्थापना की, इस ट्रस्ट को बाद में बिल्कीस ईधी ट्रस्ट के रूप में नाम दिया गया। जो बाद में ‘एधी फाउंडेशन’ में बदल गया।
ये सब गरीबों के प्रति मदद का एधी के जूनून का ही नतीजा था। आज उनके संगठन ‘एधी फाउंडेशन’ की शाखाएं 13 देशों में हैं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वहां की सरकार एधी की सेवाओं पर बहुत हद तक निर्भर है।
‘एधी फाउंडेशन’ के पास खुद की 1,800 एम्बुलेंस हैं और देशभर में 450 केंद्र हैं।साथ ही फाउंडेशन के पास हवाई सेवा भी है जिसमें तीन विमान और एक हेलीकॉप्टर हैं। एधी फाउंडेशन ने अब तक 40,000 नर्सों को प्रशिक्षण दिया है। 20,000 परित्यक्त बच्चों को बचाया गया, जबकि करीब 10 लाख बच्चों का जन्म एधी के मातृत्व केंद्रों में हुआ।
एशिया न्यूज़ के अनुसार पिछले साल एधी फाउंडेशन के एम्बुलेंस द्वारा पंजाब के 67,000 रोगियों को मुफ्त में अस्पताल पहुँचाया गया था जबकि 994 लाशों को घर एवं 296 अज्ञात शवों को अंतिम संस्कार हेतु पहुँचाया गया था।
एधी द्वारा स्थापित एधी फाउंडेशन, दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी एम्बुलेंस सेवा (1800) चलाता है और 24 घंटे की आपातकालीन सेवाएं प्रदान करता है यह नशीली दवाओं और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए नि: शुल्क नर्सिंग होम, अनाथों, क्लीनिक, महिला आश्रयों और पुनर्वसन केन्द्रों का संचालन भी करता है। इसने अफ्रीका, मध्य पूर्व, काकेशस क्षेत्र, पूर्वी यूरोप और संयुक्त राज्य में राहत कार्यों को चलाया है, जहां उसने 2005 में तूफान कैटरीना के बाद सहायता प्रदान की थी।
उनकी पत्नी बेगम बिलकिस इदी, बिलकिस एधी फाउन्डेशन की अध्यक्षा हैं। पति-पत्नी को सम्मिलित रूप से सन् 1986 का रमन मैगसेसे पुरस्कार समाज-सेवा के लिये प्रदान किया गया था। उन्हे लेनिन शान्ति पुरस्कार एवं बलजन पुरस्कार भी मिले हैं।
एधी के इस असाधारण योगदान को देखते हुए ही उन्हें 16वीं बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, यह अलग बात है कि उन्हें अब तक पुरस्कार नहीं मिला। लेकिन उनके सचिव अनवर काजमी के अनुसार उन्हें कभी इसका मलाल नहीं रहा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने 28 नवम्बर 2016 को उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था। एधी भारतीयों को भी अपने काम से सम्बंधित प्रशिक्षण देने के लिए तैयार थे।
एक बार कराची से ‘आईएएनएस’ से फोन पर बातचीत में ईदी ने कहा था कि “मैं भारत से हूं और भारतीयों को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हूं।
अब्दुल सत्तार एधी अपने फाउंडेशन के लिए वो सड़क पर बैठकर चंदा जमा करने से भी नहीं झिझकते थे, लोगों के लिए वो एक मसीहा थे और लोग उन्हें दिल खोलकर चंदा दिया करते थे।
9 जुलाई 2016 को 92 साल की उम्र में उनका देहांत हुआ था, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इलाज के लिए एधी को विदेश भेजने की पेशकश की थी लेकिन एधी ने पेशकश ठुकराते हुए कहा कि वह पाकिस्तान के किसी सरकारी अस्पताल में इलाज कराने को तरजीह देंगे। वो बहुत ही सादा मिज़ाज थे, मरते समय उन्होंने जो जूते पहन रखे थे, वह 20 साल पहले खरीदे गए थे।
अब्दुल सत्तार ईधी साहब को मिले सम्मान और पुरस्कार :-
1997 : एधी फाउन्डेशन, गिनीज बुक में
1988 : लेनिन शान्ति पुरस्कार
1986 : रमन मैगसेसे पुरस्कार
1992 : पाल हैरिस फेलो रोटरी इन्टरनेशनल फाउन्डेशन (Paul Harris Fellow Rotary International Foundation)
2000 : अन्तर्राष्ट्रीय बालजन पुरस्कार (International Balzan Prize)
26 मार्च 2005 : आजीवन उपलब्धि पुरस्कार (Life Time Achievement Award)
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