जमील मुसेन, जी हाँ यही नाम है आज से 44 साला पहले उस डोंगरी बाल सुधार गृह से निकले बच्चे का, 1974 की बात है जब जमील जब 4 साल के थे तब सीएसटी रेलवे स्टेशन पर लावारिस हालात में घूम रहे थे तब उन्हें मुंबई पुलिस के दो हवलदार उन्हें पकड़कर डोंगरी बाल सुधार गृह को सौंप आये थे।
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार जब जमील छह साल के थे तो एक डच दंपत्ति ने उन्हें गोद ले लिया था, और नीदरलैंड लेकर आ गए थे। नीदरलैंड आकर जमील की ज़िन्दगी बदल गयी, अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने मिलिट्री अकादमी और पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण लिया और साथ ही लोक प्रशासन में मास्टर डिग्री भी हासिल की।
18 साल सेना की नौकरी करने के बाद उन्होंने पुलिस विभाग ज्वाइन किया और नीदरलैंड के ब्रेडा शहर के पुलिस विभाग के सर्वोच्च पद पुलिस कमिश्नर पद तक पहुंचे। इतना सब कुछ होते हुए भी जमील अपनी जड़ों को तलाशने भारत आते रहे, वो इससे पहले 1986 फिर 2013 और उसके बाद 2016 में भी भारत आये थे।
जमील ने नीदरलैंड में केली से शादी की जो कि एक यूनिवर्सिटी में डॉक्टर हैं, जमील इस बार भारत अपने सबसे बड़े बेटे के साथ आये हैं।
2016 में जब वो भारत आये थे तो अपनी पत्नी केली और अपने चार बेटों के साथ मुंबई आये थे और उसके बाद वो अपनी जड़ें तलाशने डोंगरी के बाल सुधार गृह में गए मगर उन्हें निराश होना पड़ा क्योंकि वहां उनका कोई रिकॉर्ड ही मौजूद नहीं था।
जमील ने डोंगरी बाल सुधार गृह के बच्चों के साथ समय बिताया और उन्हें सफल जीवन जीने के मन्त्र दिए, उनके साथ बाल सुधार गृह की सुपरिंटेंडेंट तृप्ति जाधव भी उनके साथ थीं, जमील ने बाल सुधार गृह के बच्चों से कहाँ कि जितना हो सके शिक्षा हासिल करने की कोशिश करो, कड़ी मेहनत करो और जीवन में मिले हर अवसर का फायदा उठाओ।
जमील जब भी भारत आते हैं अपने परिवार के किसी सदस्य के साथ ही आते हैं और डोंगरी बाल सुधार गृह जाकर अपने अतीत के साथ कुछ पल बिताते हैं, साथ ही उनकी ये कोशिश रहती है कि बाल सुधार गृह के बच्चों का जीवन सुधरे, उन्हें जीने का कोई मक़सद मिल सके, लोग उनसे प्रेरणा ले सकें।
इस बार वो अपने बड़े बेटे के अलावा आठ दोस्तों को भी भारत लेकर आये हैं, वो मुंबई के बाल सुधार गृहों के बच्चों की हालत सुधारने के लिए कोई कार्य योजना शुरू करना चाहते हैं।
मुंबई में रविवार को उन्होंने अपने डच दोस्तों के साथ भायंदर में नवरात्री उत्सव में हिस्सा लिया और साथ ही डांडिया में लोगों के साथ धुन पर नाचे भी।
बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो विदेशों में जाकर बेहतर जीवन, उच्च पद, पैसा सब कुछ हासिल तो कर लेते हैं पर अपनी जड़ों अपने देश को नहीं भूलते, अपने अतीत को नहीं भूलते, वो लोग बार बार जड़ों की ओर लौटकर एक तरह से उन सभी का आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने उन्हें इस लायक बनाया, इस जगह तक पहुंचाया, और साथ ही उनकी यही कोशश रहती है कि कोई भी बच्चा अभावों के चलते अपना भविष्य खराब न कर सके।