व्हील चेयर पर बैठे इस 25 वर्षीय फिलस्तीनी फ्रीलांस फोटो जौर्नालिस्ट का नाम है मोामन करेिकेा, यह इज़राइल द्वारा बंदी बनाये गए फिलस्तीनियों को आज़ाद करने के लिए किये जाने वाले प्रदर्शन के फोटो ले रहे हैं।

2008 में ईस्ट ग़ाज़ा में फोटो लेते समय इस्राईली हवाई हमले में इन्होने अपने दोनों पांव गंवा दिए थे, दो बच्चों के पिता मोामन करेिकेा ने अपनी अपंगता को अपने जूनून पर हावी नहीं होने दिया, वो अब भी फ्रीलांस फोटो जौर्नालिस्ट के तौर पर काम करते हैं।
ज़मीन पर गिरने के बाद भी फोटो लेते हुए ये दूसरा फोटो APF के वीडियो जौर्नालिस्ट केनजी नगाई का है, यह 27 सितम्बर 2007 की बात है जब वो यांगून में रिपोर्टिंग कर रहे थे, पुलिस द्वारा भीड़ पर फायरिंग के चलते उनके भी गोली लगी थी, और वो घायल हो गए थे, मगर उसके बाद भी वो शूट करते रहे, बाद में उनकी मौत हो गयी थी।

तीसरा फोटो रायटर्स के फोटोग्राफर ग्लेब ग्रेनिच का है, ये नवम्बर 2013 की बात है जब उक्रेन की राजधानी कीव में इंडिपेंडेंस स्क्वायर पर उग्र दंगाइयों के प्रदर्शन और दंगा पुलिस की मुठभेड़ के दौरान घायल हो गए थे, मगर बहते खून की परवाह किये बिना वो अपनी ड्यूटी करते रहे।

चौथा फोटो घायल पड़े सैनिक और मशीनगनों के साये में लेटा ये फोटोग्राफर भी रायटर का है नाम है डेविड लुइस, जो अपनी एजेंसी के लिए कांगो में काम पर थे, 11 नवम्बर 2006 को एक हमले में बुरी तरह से फंस गए थे।

पांचवां फोटो फ़्रांसिसी न्यूज़ एजेंसी AFP के फोटोग्राफर आसिफ हसन का है जिन्हे शार्ली हेब्दो के कार्टून मुद्दे पर 16 जनवरी 2015 को पाकिस्तान में फ़्रांसिसी दूतावास के बाहर सीने में गोली मार दी गयी थी, पाकिस्तानी पुलिस का दावा था कि वो गोली भीड़ में से किसी प्रदर्शनकारी ने चलाई थी।

ये कुछ गिनती के फोटो हैं मगर आज भी दुनिया में कई पत्रकार रिपोर्टिंग करते हुए मारे जाते हैं, कई फोटोग्राफर्स युद्ध क्षेत्रों में फोटोग्राफी करते हुए मारे जाते हैं, ये लोग अपने पेशे को लेकर जूनून की हद तक समर्पित रहते हैं।
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