अमरीका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में “Majoritarian Politics and Hate Crimes against Religious Minorities in India” (भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यक राजनीति और घृणा अपराध) पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उदय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते हमलों और हेट क्राइम्स में हुई तेज़ी के बीच घनिष्ठ संबंध हैं।
Carvan Daily के अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर दीपंकर बसु द्वारा 2009- 2018 के बीच हुए नफरती अपराधों की घटनाओं के बारे में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत में 2009 के चुनावों की तुलना में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद घृणा अपराधों में चिंताजनक रूप से 786% की वृद्धि हुई है, इन घृणा अपराधों के सबसे बड़े शिकार मुसलमान हुए हैं।
इस साल अगस्त ‘2019 में जारी किए गए अध्ययन में कहा गया है कि 2009-2018 के दौरान कुल 275 मज़हबी नफरती अपराध हुए। 275 में से 22 घटनाएं 2009-2014 लोकसभा चुनावों के दौरान और 195 अपराधों की नफरत की घटनाएं जून 2014 और 2018 के अंत के बीच दर्ज की गईं।
इस अध्ययन में आगे बताया गया है कि इन कुल 275 मज़हबी नफरती हमलों में से 217, या 80% धार्मिक अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, ईसाई और सिख) के खिलाफ थे। बसु ने अपने अध्ययन में कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कुल घृणित अपराधों में से 78.34% मुस्लिमों के खिलाफ थे, 19.35% ईसाईयों के खिलाफ थे और 2.3% सिखों के खिलाफ थे।
इस अध्ययन में कहा गया है कि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, मुसलमानों के खिलाफ 80% से अधिक घृणा अपराध हुए। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों की घटनाओं को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया था:
मुस्लिम : 83: 08%
ईसाई : 14: 87%
और सिख : 2: 05%
यानी नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों के खिलाफ सबसे ज़्यादा हेट क्राइम्स हुए, जबकि ईसाई और सिख दोनों घृणा अपराधों के अनुपात में गिरावट दर्ज की गयी है।
इस अध्ययन का डाटा लगभग 27 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से इकठ्ठा किया गया था, अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों की कुल घटनाओं के मामले में टॉप 10 राज्य हैं : उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली और जम्मू और कश्मीर (और मध्य प्रदेश)। इन शीर्ष दस में से अधिकांश राज्य अब भाजपा शासित हैं।
असिस्टेंट प्रोफेसर दीपंकर बसु ने सुझाव दिया कि भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के संदर्भ में भाजपा की भूमिका की जांच की जानी चाहिए और घृणा अपराधों तथा मॉब लिंचिंग खिलाफ कठोर कानून बनाया जाना चाहिए।
दीपंकर बसु कहते हैं कि “अभी कुछ दिन पहले ही अल्पसंख्यक विरोधी मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत के कई प्रमुख लोगों और हस्तियों ने हाल ही में देश के प्रधान मंत्री को निर्णायक और त्वरित कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था। हालांकि सरकार को इसके लिए कार्रवाही करना चाहिए मगर भारत में तेज़ी से बढ़ती अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा जैसी गंभीर समस्या से निपटने के लिए समाज में प्रगतिशील आंदोलन शुरू करने और उसे मजबूत बनाने की कोशिशें होना चाहिए जो भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य को गंभीर रूप से कमजोर कर रहा है।”
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