स्पेशल स्टोरी – वाया : The Print
भारत में रमज़ान शुरू होने से ठीक पहले रमजान और रमादान को लेकर एक मसला ज़रूर खड़ा होता है, मगर इस बार रमज़ान में एक और मसला खड़ा हो गया है वो है बाजार से हर दिल अज़ीज़ शरबत रूह अफ़ज़ा के गायब होने का।
रमज़ान में शाम को इफ्तार के वक़्त पारंपरिक रूप से पकोड़े , फ्रूट चाट , खजूर और रूह अफ़ज़ा शामिल किया जाता है। RoohAfza के बिना एक इफ्तारी की कल्पना करना भी मुश्किल है, कम से कम उत्तर भारतीय मुसलमानों के लिए। ऐसे में रमज़ान से पहले इस हर दिल अज़ीज़ शरबत के बाजार से गायब हो जाने से रोज़ेदार परेशान हैं। रूह अफ़ज़ा हमदर्द लैबोरेट्रीज़ द्वारा बनाया गया शर्बत, बाजार में चार से पाँच महीने से बंद है, और ऑनलाइन स्टोर्स पर उपलब्ध नहीं है।
हमदर्द ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है कि उसने इस शरबत का उत्पादन क्यों बंद किया, लेकिन “कच्चे माल” की कमी का बहाना बनाने की कोशिश की। सूत्रों ने दावा किया है कि ये मामला पारिवारिक विवाद का है।
विवाद किस बारे में है :-
1906 में हकीम हाफिज अब्दुल माजिद ने रूह अफज़ा का उत्पादन शुरू किया था, अब इसकी कमान उनके पोतों के हाथ में है, यह विवाद हमदर्द के मुख्य मुतवल्ली (CEO के समकक्ष) के पद को लेकर है, जो वर्तमान में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के पोते, यूनानी चिकित्सा व्यवसायी अब्दुल मजीद के पास है, जिन्होंने पुरानी दिल्ली में इस कंपनी की स्थापना एक सदी पहले की थी। । कंपनी के पास Safi, Cinkara, Masturin और Joshina जैसे पारंपरिक दवा ब्रांड भी हैं।
अब्दुल मजीद के चचेरे भाई हम्माद अहमद ने कंपनी पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की, जो खुद को इस विरासत के मालिक होने का दावा करते हैं। सूत्रों ने कहा कि वह इसके लिए हम्माद अहमद अदालत भी गए और इसी कानूनी लड़ाई ने रूह अफ़ज़ा के उत्पादन पर रोक लगा दी।
हमदर्द को एक अपरिवर्तनीय इस्लामिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया है, जिसे एक वक्फ के रूप में जाना जाता है, और इसके नियमों के तहत, अपने मुनाफे का 85 फीसदी हिस्सा Hamdard National Foundation, नामक एक शैक्षिक चैरिटी को हस्तांतरित करता है। ये फाउंडेशन दिल्ली में जामिया हमदर्द भी संचालित करती है। डीम्ड यूनिवर्सिटी को दिल्ली में एकमात्र निजी मेडिकल कॉलेज चलाने का गौरव प्राप्त है। सूत्रों का कहना है की ये महत्वपूर्ण संस्थान ही इस पारिवारिक विवाद का एक बड़ा कारण है। ये पारिवारिक लड़ाई सीधे सुप्रीम कोर्ट तक गई, जिसने 3 अप्रैल को अपने फैसले में हम्माद अहमद को अंतरिम निर्देश देने से इनकार कर दिया।
रूह अफ़ज़ा का सोशल मीडिया अकाउंट सितंबर 2018 से निष्क्रिय हैं, सिर्फ फेसबुक पर इस मुद्दे पर लोगों द्वारा पूछताछ के चलते सिर्फ यही कहा गया कि लिए कि वो लोगों के इस “प्यार से अभिभूत हैं” और ये शरबत जल्द ही बाजार में वापस आ जाएगा।
यह पूछे जाने पर कि उत्पादन क्यों रुका है और कब तक, निर्देशक शौकत ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जबकि चीफ मुतवल्ली अब्दुल मजीद ने कॉल और मेसेजेज का जवाब नहीं दिया।
सूत्रों ने बताया कि रमज़ान के मद्देनज़र मुसलमानों के दबाव में ही रूह अफ़ज़ा का उत्पादन फिर से शुरू हुआ है, न कि इसलिए कि कानूनी विवाद किसी हल पर पहुँच गया है, इसके अलावा अफवाहों ने भी रूह अफ़ज़ा के संकट को बढ़ाया है।
हमदर्द के संस्थापक हकीम हाफिज के छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए थे और विभाजन के तुरंत बाद हमदर्द लेबोरेटरीज वक्फ पाकिस्तान की स्थापना की।
हमदर्द की योजना अपने व्यवसाय के आधुनिकीकरण और उसके राजस्व को बढ़ाने की योजना विवाद के कारण रुकी हुई है। इस बीच पाकिस्तानी हमदर्द ने इस मामले में तरक़्क़ी की है और बांग्लादेश में उत्पादन लाइसेंस दिया गया है और रूह अफ़ज़ा वैश्विक निर्यात पर हावी है। उन्होंने पाकिस्तान में रूह अफ़्ज़ा का एक कार्बोनेटेड संस्करण भी लॉन्च किया है, जिसे Rooh Afza Go कहा जाता है।
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