कल हर न्यूज़ चैनल पर एक ही खबर थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने पांच सफाईकर्मियों के पैर धोये, उन्हें अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया, और कुम्भ के स्वेच्छाग्रहियों के लिए 51 करोड़ का पैकेज भी घोषित किया। प्रधानमंत्री इन सफाई कर्मियों के पांव धोने के साथ सफाई कर्मियों की सीवर में हुई मौतों पर कभी कुछ कहते और इन सफाई कर्मियों की सुरक्षा के लिए बजट का कोई प्रावधान भी रख देते तो इनका भला होता।
आइये देखते हैं मोदी सरकार के 4 साल 9 महीनों में इन सफाईकर्मियों की कितनी चिंता की गयी और कितना सम्मान किया गया।
1. भारत में सीवर में हर तीसरे दिन एक सफाईकर्मी की मौत होती है यानि औसतन 90 मौतें प्रतिवर्ष।
2. एक साल में कश्मीर में जितने जवान शहीद होते हैं उससे ज्यादा सफाईकर्मी सीवर में काम करते हुए मारे जाते हैं।
The Wire के अनुसार उनके द्वारा दायर RTI से यह जानकारी सामने आई है कि सत्ता में आए चार साल से ज्यादा समय हो गया है, नरेंद्र मोदी सरकार ने हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए एक भी रुपया जारी नहीं किया है। इतना ही नहीं, सरकार को पिछली यूपीए सरकार द्वारा जारी किए गए धन का लगभग आधा खर्च करना बाकी है।
आरटीआई के तहत सामने आई जानकारी के अनुसार, सरकार ने 2006-07 से इस योजना के तहत कुल 226 करोड़ रुपये जारी किए हैं। सभी धन वित्तीय वर्ष 2013-14 से पहले जारी किए गए थे। 2014 में जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, कोई और धन जारी नहीं किया गया है।
एक और जानकारी के अनुसार भारत में सीवर में हर तीसरे दिन एक सफाईकर्मी की मौत होती है यानि औसतन 90 मौतें प्रतिवर्ष, आजतक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार ये आकंड़ा देश के एक शीर्ष NGO का है, जो सफाई कर्मियों के अधिकारों के लिए काम करता है. ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ नाम के इस NGO के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2017 से सितम्बर 2018 तक 221 सफाई कर्मियों की मौत हो चुकी है, इस NGO ने सफाई कर्मियों की मौत के लिए सरकारों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया है।
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ का दावा है कि सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की ओर से देशभर में 666 मौतों का जो आंकड़ा दिया गया है, वो भ्रामक है. एनजीओ के मुताबिक 1993 से अब तक 1,760 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. एनजीओ ने ये आंकड़ा 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से एकत्र किए हैं।
मोदी सरकार की स्वच्छ भारत अभियान पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में 9 करोड़ टॉयलेट बनाना है, ताकि गावों को ‘खुले में शौच’ से पूरी तरह मुक्त किया जा सके. सरकार का दावा है कि देशभर में मिशन के तहत अब तक आठ करोड़ टॉयलेट बनाए भी जा चुके हैं. लेकिन योजना में सफाई कर्मियों की सुरक्षा के लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है, जाम सीवरों को खोलने के लिए देश में करीब आठ लाख सफाई कर्मचारी हैं, लेकिन उनको लेकर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं।
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ से जुड़े बेजवाडा विलसन ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मोदी सरकार टॉयलेट निर्माण के लिए हजारों करोड़ आवंटित करती है, लेकिन ये मैनुअली सफाई करने वालों के पुनर्वास के लिए पर्याप्त मुआवजा देने में नाकाम रही है. पिछले बजट में इसके लिए महज 5 करोड़ रुपये रखे गए।’
विलसन ने बताया कि इन सफाई कर्मियों में से 98 फीसदी अनुसूचित जाति से और महिलाएं हैं. इस सबंध में राज्य सरकारों का रवैया भी निराशाजनक रहा है. आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2013 से अब तक 39 सफाई कर्मियों की मौत हुई है।इनमें से सिर्फ 16 मामलों में ही परिजनों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा दिया गया।
विलसन के मुताबिक स्वच्छ भारत अभियान को लॉन्च हुए भी चार साल हो गए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से किसी भी सफाई कर्मी की मौत को लेकर कुछ नहीं बोला गया, विलसन ने कहा, ‘प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए वो क्या करने जा रहे हैं ?
वहीँ दूसरी ओर अन्य आंकड़े बताते हैं कि एक साल में कश्मीर में जितने जवान शहीद होते हैं उससे ज्यादा सफाईकर्मी सीवर में काम करते हुए मारे जाते हैं, सितम्बर 2017 को Quartz India में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार एक साल में कश्मीर में आतंकी मुठभेड़ों में जहाँ 54 जवान शहीद होते हैं वहीँ एक साल में 90 सफाई कर्मी सीवर में अपनी जान गँवा देते हैं।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के वेजवाडा विल्सन कहते हैं कि वर्ष 2000 से 1760 लोगों की गटर-सीवर साफ करते हुए मौत हो चुकी है। यानी औसतन हर वर्ष 97। हमने हर केस पर संबंधित मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यपाल और स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखे हैं। मैं जिम्मेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग कर चुका हूं।
लेकिन ऐसे मामलों में आज तक एक भी जिम्मेदार को सजा नहीं हुई है। इस पर हमारी संस्था ने केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक कई आरटीआई फाइल की है। इनमें पता चला कि किसी भी राज्य की पुलिस ने इस मामले में एक भी चार्जशीट फाइल नहीं की। उल्टा सरकार के पास पूरा डेटा नहीं है।
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