हिटलर द्वारा जर्मन यहूदियों को शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक और मानसिक तौर पर बिलकुल अलग थलग करने और उन्हें जर्मनी पर गैर ज़रूरी तथा बोझ जैसा साबित करने के साथ इन्हे जर्मनी की नागरिकता से भी वंचित करने के लिए ख़ास तौर पर ‘न्यूरेम्बर्ग कानून‘ लाया गया था।
इसी नाज़ी प्रोपेगण्डे के तहत 15 सितंबर 1935 के दिन सुनियोजित ढंग से न्यूरेम्बर्ग कानून जिसे ‘THE NUREMBERG RACE LAWS’ भी कहते हैं, बनाकर जर्मन यहूदियों को जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया, और उल्टे स्वस्तिक को नाजी जर्मनी का आधिकारिक प्रतीक बना दिया गया। न्यूरेम्बर्ग शहर में हुई नाजी पार्टी की वार्षिक रैली में ये यहूदी विरोधी कानून पेश किया गया, उस शहर के नाम पर ही इस काले क़ानून का नाम ‘न्यूरेम्बर्ग कानून’ पड़ा।
बाद में रेस्टोरेशन ऑफ प्रोफेशनल सिविल सर्विसेज नाम का एक कानून बना, जिसके तहत गैर आर्यों को सिविल सर्विस में आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस कानून के कारण नाजियों के राजनीतिक प्रतिद्ंवद्वियों के सिविल सर्विस में आने से रोक लग गई।
न्यूरेम्बर्ग कानून के तहत चार जर्मन दादा-दादियों वाले लोगों को जर्मन माना गया, लेकिन जिनके तीन या चार दादा-दादी यहूदी थे, उन्हें यहूदी माना गया. एक या दो यहूदी दादा-दादी वाले लोगों को मिश्रित खून वाला वर्णसंकर कहा जाता था।
इस तरह के कानूनों ने यहूदियों से जर्मन नागरिकता तो छीन ही ली, यहूदियों और जर्मनों के बीच शादी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया, इसे लव जेहाद की तरह समझ सकते हैं, शुरुआत में तो यह कानून सिर्फ यहूदियों के लिए ही बने थे लेकिन बाद में इन्हें जिप्सियों या बंजारों और अश्वेतों पर भी लागू कर दिया गया।
न्यूरेम्बर्ग कानून लागू होने के साथ ही जर्मनी में :-
1. यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार शुरू हो गया था।
2. यहूदी जर्मनी के स्कूलों में या यूनिवर्सिटीज में न पढ़ा सकते थे, ना ही पढ़ सकते थे।
3. यहूदी सरकारी नौकरियों से वंचित कर दिए गए थे।
4. यहूदियों के वकालत और डाक्टरी पेशे पर रोक लगा दी गयी।
5. यहूदी किताबें प्रकाशित नहीं कर सकते थे।
6. यहूदी सिनेमा, थिएटर्स और वेकेशन रिसॉर्ट्स का आनंद नहीं ले सकते थे।
7. 1937 तक नाज़ियों ने यहूदियों के व्यापर धंधों को ज़ब्त करना शुरू कर दिया था।
8. इसके चलते कई नामी जर्मन यहूदी देश से भाग गए थे, जिसमें अल्बर्ट आइंस्टीन भी थे।
हिटलर ने अपने कुत्सित नाज़ी एजेंडे को मनोवैज्ञिक माइंड गेम के साथ लागू किया और 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल ( Final Solution) को अमल में लाना शुरू किया।
फाइनल सोल्युशन एजेंडे के तहत हिटलर के सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष यातना शिविर स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ‘Auschwitz concentration camp’ ऑस्चविट्ज केम्प । यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता।

युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई।
इसके तहत एक समुदाय के लोग जहां भी मिले, वे मारे जाने लगे, सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी पैदा हुए थे। इन्ही कारणों के चलते ही इसे अपनी तरह का नाम दिया गया था ‘Holocaust‘ (होलोकॉस्ट).
हत्यारे हिटलर का ये माइंड गेम मनोविज्ञान, प्रबंधन और क्रियान्वयन के लिहाज से विलक्षण था, उसने बड़े ही सुनियोजित और मनोवैज्ञानिक तरीके से अपने नाज़ी एजेंडों को लागू कर 60 लाख यहूदियों का नरसंहार कराया, यही वजह है कि आज हिटलर को दुनिया एक दुःस्वप्न की तरह याद करती है।
Sources :- 👇
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- मौत से कुछ दिन पहले एडवोकेट एहतेशाम हाश्मी के साथ इंदौर कोर्ट में वकीलों की भीड़ ने घेर कर दुर्व्यवहार किया था। - February 12, 2023
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