15 मार्च 2019 को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में दो मस्जिदों पर हमला कर 51 नमाज़ियों की हत्या करने वाला (जिसमें पांच भारतीय भी शामिल थे) ब्रेंटन टैरंट हमले से पहले भारत यात्रा पर आया था तथा यहाँ तीन महीने रुका था।
Hindustan Times की खबर के अनुसार उक्त क्राइस्टचर्च हमले से सम्बंधित न्यूज़ीलैंड की रॉयल कमीशन ऑफ़ एन्कवायरी की 792 पेज की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में डेढ़ साल से ज़्यादा का समय लगा। रॉयल कमीशन ऑफ़ एन्कवायरी की रिपोर्ट के अनुसार ब्रेंटन टैरंट ने 15 अप्रैल 2014 से 17 अगस्त 2017 के बीच कई देशों की अकेले ही यात्रा की। इस दौरान वह केवल उत्तर कोरिया की यात्रा पर एक ग्रुप के साथ गया था।
रॉयल कमीशन ऑफ़ एन्कवायरी की रिपोर्ट के अनुसार “ब्रेंटन टैरंट सबसे ज़्यादा समय तक वह भारत में 21 नवंबर 2015 से 18 फरवरी 2016 तक रहा। रिपोर्ट में इस बात का विवरण नहीं दिया गया है कि ब्रेंटन टैरंट की तीन महीने भारत में क्या गतिविधियां रहीं।”
रॉयल कमीशन ऑफ़ एन्कवायरी की रिपोर्ट जांच में कहा गया कि ब्रेंटन टैरंट इंटरनेट पर दक्षिणपंथी सामग्री वाले यूट्यूब चैनल देखा करता था। रिपोर्ट के अनुसार उसने इंटरनेट पर अपलोड अपने 74 पेज के मेनिफेस्टो में खुद को श्वेत वर्चस्ववादी घोषित किया था तथा यूरोप में मुसलमानों के हमलों का बदला लेने के लिए तैयार होने की बात कही थी।
यहाँ अगर देखें तो एक दक्षिणपंथी आंद्रे ब्रेविक याद आता है जिसने नार्वे में 22 जुलाई 2011 को अंधाधुंध फायरिंग कर 77 निर्दोष लोगों की हत्या की थी, उसने भी अपना 1,518 पेज का मेनिफेस्टो इंटरनेट पर अपलोड किया था, तथा वो भी मुस्लिम विरोधी और दक्षिणपंथी विचारधारा वाली वेब साइट्स से जुड़ा था।
और सबसे खास बात कि उक्त हत्यकांड के बाद हत्यारे आंद्रे ब्रेविक का भी भारत कनेक्शन सामने आया था, वो भारत के हिन्दू दक्षिणपंथी संगठनों से प्रभावित था, इस बात को The Hindu ने उस समय प्रकाशित किया था। सिर्फ यही नहीं आंद्रे ब्रेविक ने अपने मेनिफेस्टो के लिए Logo भी वाराणसी से ही ऑनलाइन आर्डर देकर बनवाया था।
अब सवाल उठता है कि चाहे आंद्रे ब्रेविक हो या फिर ब्रेंटन टैरंट, इन दक्षिणपंथी हत्यारों का भारत कनेक्शन किसलिए निकलता है ? क्या वजह है कि इस्लामोफोबिक ताक़तें भारत की ओर आकर्षित हो रही हैं ?
थोड़ा पीछे जाकर देखें तो इसका जवाब नज़र तो आएगा, पिछले एक दशक में भारत में इस्लामोफोबिया का भरपूर प्रचार हुआ है, और सोशल मीडिया इसके लिए एक बड़ा टूल साबित हुआ है। गत छह सात सालों में देश में मुसलमानों के प्रति नफरत को खुलकर परोसा गया है, बेलगाम सोशल मीडिया और रीढ़ विहीन न्यूज़ चैनल्स इसका साधन बने।
मॉब लिंचिंग, घर वापसी, लव जिहाद, मीट बैन, दाढ़ी टोपी देखकर हमले, तीन तलाक़, जनसँख्या नियंत्रण, मुस्लिम नामों वाले शहरों, सड़कों, चौराहों, इमारतों और रेलवे स्टेशन्स के नाम बदलना भी इसी इस्लामोफोबिया लहर का ही एक हिस्सा है।
और अब ये सब खुलकर होने भी लगा है, चुनावों में मुस्लिम विरोधी विचारधारा, नारों और वायदों की बाढ़ आ जाती है। इंटरनेट पर मुस्लिम विरोध का ज़हर भरा पड़ा है, झूठ, दुष्प्रचार और नफरत का अम्बार लगा है कोई रोकने वाला नहीं है।
शायद यही वजह है कि भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया के ज़हर से आकर्षित होकर कभी आंद्रे ब्रेविक तो कभी ब्रेंटन टैरंट जैसे दक्षिणपंथी हत्यारे भारत का रुख करते हैं, इस बात को सही से समझना हो तो The Hindu की उस रिपोर्ट को ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए जिसमें विस्तार से बताया गया है कि नार्वे के 77 लोगों के दक्षिणपंथी हत्यारे आंद्रे ब्रेविक भारत के किन किन दक्षिणपंथी संगठनों से प्रभावित था।
अब आंद्रे ब्रेविक के बाद ब्रेंटन टैरंट का न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों पर हमले से पहले तीन महीने भारत में रुकने की जो रिपोर्ट्स आईं हैं वो चिंतित करने वाली हैं, सरकार को चाहिए कि वो जाँच करे कि ब्रेंटन टैरंट हमले से पहले भारत में तीन महीने किसलिए रुका था, कहाँ कहाँ गया और किस किस से मिला।
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