न्यूज़ीलैंड में मस्जिदों में हुए आतंकी हमले दुनिया अभी भूली नहीं है, नार्वे की मस्जिद में ठीक वैसा ही हमला एक 65 वर्षीय बुज़ुर्ग की बहादुरी की वजह से अंजाम तक नहीं पहुँच पाया, उस बुज़ुर्ग के इस बहादुरी भरे कारनामे की वजह से उसे नार्वे में एक हीरो की तरह सम्मान दिया जा रहा है।
The New Daily की खबर के अनुसार 11 अगस्त 2019 को नार्वे की राजधानी ओस्लो के एक उपनगर में स्थित अल-नूर इस्लामिक सेंटर में स्वचालित हथियारों से लैस एक श्वेत दक्षिणपंथी ने हमला कर दिया, ये हमला ठीक न्यूज़ीलैंड के क्राइस्ट चर्च आतंकी हमले की तरह ही किया गया था, और हमलावर पूरी तैयारी करके आया था।
जैसे ही वो फायरिंग करता हुआ मस्जिद में घुसा वहां मौजूद एक बुज़ुर्ग मोहम्मद रफ़ीक़ उस से भिड़ गए और उसे काबू में करने की कोशिश में गुत्थम गुथ्था हो गए, थोड़ी देर की ज़ोर आज़माइश के बाद मोहम्मद रफ़ीक ने उसपर काबू पा लिया उसी समय मस्जिद में मौजूद और नमाज़ी भी आ गए और उस हमलावर को काबू में कर पुलिस को सूचना दी।
हमलावर की शिनाख्त फिलिप मंशाउस के तौर पर की गई जो कि दक्षिणपंथी विचारों का था और न्यूज़ीलैंड में हुए आतंकी हमले के ज़िम्मेदार दक्षिणपंथी संगठनों से प्रेरित था, बाद में पुलिस ने उसके फ्लैट से उसकी सौतेली बहन की लाश भी बरामद की, मस्जिद पर हमले करने से पहले उसने उसका क़त्ल कर दिया था।
मोहम्मद रफ़ीक़ ने बताया कि वो उस वक़्त नमाज़ पढ़ने के बाद क़ुरआन पढ़ रहे थे, “तभी मैंने फायरिंग की आवाज़ सुनी, और उसके बाद बॉडी आर्मर पहने एक आदमी को मस्जिद के अंदर फायरिंग करते हुए अंदर आते देखा, मैं दौड़कर उस पर कूदा और उसे काबू में करने की कोशिश करने लगा। “
इस ज़ोर आज़माइश में मोहम्मद रफ़ीक़ की आँखों में चोटें आईं और हाथ ज़ख़्मी हुआ था, हमलावर ने उनकी आँखों में उँगलियाँ घुसेड़ दी थीं, मोहम्मद रफ़ीक़ पाकिस्तानी एयर फाॅर्स से रिटायर्ड हुए हैं और पिछले ढाई साल से नॉर्वे में रहते हैं। मोहम्मद रफ़ीक़ की बहादुरी की वजह से नार्वे में आतंकी हमला टल गया बल्कि उनकी बहादुरी से कई लोगों की जाने भी बच गईं।
मोहम्मद रफ़ीक़ के इस कारनामे की तारीफ वैश्विक मीडिया और सोशल मीडिया में खूब हुई तथा नार्वे में उन्हें एक हीरो की तरह सम्मान दिया सम्मान दिया गया, नार्वे एक शांत देश है और अपने अतीत के ज़ख्म की वजह से इस घटन से वहां के नागरिकों में बेचैनी थी।
2011 में एक मुस्लिम विरोधी और नव-नाज़ी एंडर्स बेहरिंग ब्रिविक ने नॉर्वे में अंधाधुंध गोलाबारी कर 77 लोगों का नरसंहार किया था, जिनमें से अधिकांश युवा थे।
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