अर्ध सैनिक बलों में आत्महत्या करने के साथ नौकरियां छोड़ने के आंकड़ों में वृद्धि के आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं, New Indian Express के अनुसार मार्च 2018 में गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक छह सालों में CRPF के 189 जवानों ने आत्महत्याएं कीं जो कि ड्यूटी के दौरान मारे गए 175 से अधिक थी.
वहीँ 2001 से 2018 तक BSF के 529 जवानों ने आत्महत्याएं कीं जो कि ड्यूटी के दौरान मारे जाने वाले 491 से अधिक थीं.
सभी अर्ध सैनिक बलों की आत्महत्याओं की दर और भी डराने वाली है, गत 6 वर्षों में अर्ध सैनिक बलों के 700 जवान आत्महत्याएं कर चुके हैं, आंकड़ों के अनुसार 4 सालों में CISF के 56 जवानों ने आत्महत्या की जबकि ITBP के 25 और (SSB) सशस्त्र सीमा बल के 25 जवानों ने आत्महत्या की, वहीँ असम राइफल्स के 30 जवानों ने आत्महत्या की.
अर्ध सैनिक बलों में बढ़ती आत्महत्याओं पर गृह मंत्रालय का कहना है कि लंबे समय तक और लगातार तैनाती जैसी आम कठिनाइयों के साथ ही अर्ध सैनिक बलों के जवान पारिवारिक मामलों, धरेलू समस्याओं और शादीशुदा जिंदगी को लेकर भी तनाव में रहते है, इसके अलावा कई बार वो आर्थिक परेशानियों की वजह से भी तनाव का शिकार बन जाते हैं.
वहीँ दूसरी ओर अर्ध सैनिक बलों में नौकरियां छोड़ने के आंकड़े भी भयावह रूप से बढे हैं, जारी आंकड़ों को देखें तो पिछले तीन साल में पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड लगभग 4 गुना तक बढ़ गया है, Times Of India के अनुसार गृह मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में BSF, CRPF, ITBP, SSB, CISF और असम राइफल के 14,587 जवानों और अधिकारियों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट लिया है. जबकि 2015 में यह आंकड़ा 3425 ही था.
आंकड़ों को बारीकी से देखा जाए तो CRPF और BSF के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड सबसे ज्यादा है. 2015 में CRPF के 1376 जवानों ने नौकरी छोड़ी, जबकि 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 5123 पर पहुंच गया. यही हाल BSF के जवानों का भी रहा, आंकड़े बताते हैं कि 2015 में 909 बीएसएफ जवानों ने नौकरी छोड़ी, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 6400 को पार कर गया.
रिपोर्ट के मुताबिक बीएसफ पर बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में देश की सुरक्षा का जिम्मा होता है. 2015 से 2017 के बीच 7324 लोगों ने बीएसएफ की नौकरी छोड़ दी. दूसरी तरफ देश की आंतरिक सुरक्षा खास तौर पर नक्सल प्रभावित और जम्मू-कश्मीर इलाकों में सुरक्षा का जिम्मा सीआरपीएफ के जवानों पर होता है. पिछले 3 साल में सीआरपीएफ के 6501 जवानों/अधिकारियों ने स्वैच्छा से रिटायरमेंट लिया.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जवानों और अधिकारियों के नौकरी छोड़ने का ये सिलसिला 2024 तक जारी रहने वाला है. एक अधिकारी का कहना है कि बहुत से जवान और अधिकारी बेहतर करियर के लिए प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां तलाश रहे हैं. सिक्योरिटी एजेंसी और ऐसे दूसरे करियर विकल्प भी जॉब छोड़ने के कारणों में से एक हैं.
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