प्रियंका गाँधी की सियासी पारी की खबर का धमाका विदेशों तक कुछ ही मिनटों में पहुँच गया, प्रियंका गाँधी का सोशल मीडिया पर कोई अकाउंट नहीं है, उसके बाद भी राजनीती में क़दम रखने की खबर के कुछ ही मिनट बाद ही वो सोशल मीडिया पर पूरी तरह से छा गयीं, कल कुछ ही मिनटों में ट्वीटर पर #PriyankaVadra, #PriyankaGandhi, #PriyankaGandhiVadra #PriyankaEntersPolitics, #PriyanakInPolitics जैसे हैशटैग्स ट्रेंड करने लगे और ये ट्रेंडिंग टॉप 5 में रही।
सबसे बड़ी हैरानी की बात ये रही कि कल प्रियंका गाँधी की सियासी पारी की शुरुआत की खबर के बाद ट्वीटर पर उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया, जबकि प्रियंका गाँधी ट्वीटर पर नहीं हैं, उनके पति रोबर्ट वाड्रा ज़रूर हैं, उन्होंने सबसे पहले अपनी पत्नी को बधाई देते हुए ट्वीट किया, उसके बाद प्रियंका गाँधी ट्वीटर के पांच टॉप ट्रेंड्स में टॉप पर रहीं।
लोग जहाँ इसे कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र बता रहे हैं वहीँ देश का मीडिया और पत्रकार बिरादरी इसे एक दूसरे आयाम से से देख रहे हैं, राजीव गाँधी की पुत्री और इंदिरा गाँधी की पोती के तौर पर उन्हें इंदिरा का प्रतिरूप नज़र आता है, वहीँ विदेशी मीडिया में भी प्रियंका गाँधी की राजनैतिक पारी की शुरुआत को लेकर ख़बरें प्रमुख रही हैं।
प्रियंका गाँधी को बड़े ही कठिन समय पर राजनीती में बैटिंग करने उतारा गया है, इसके पीछे भी कई कारण हैं, कांग्रेसी इसे प्रियंका गाँधी के पारिवारिक या निजी कारण कह कर टालते आये हैं मगर कड़वा सच तो ये है कि सोनिया गाँधी ने राहुल गाँधी को राजनैतिक तौर पर स्थापित करने के लिए ही प्रियंका को हाशिये पर धकेला हुआ था। और ये भी कह सकते हैं कि राहुल गाँधी को सियासी और मानसिक सम्बल देने के लिए ही प्रियंका को राजनीती में उतारा गया है, दोनों ही बातें साफ़ ज़ाहिर करती हैं कि सोनिया गाँधी के लिए राहुल गाँधी पहले हैं और प्रियंका गाँधी बाद में।
तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में हार के बाद भी राहुल गाँधी को विफल बताने और उनके लिए प्रियंका गाँधी को लाने जैसे बयान देने वाले विरोधी खेमे की बौखलाहट सब कुछ बयान कर रही है, प्रियंका की सियासी पारी पर भाजपाइयों के हास्यास्पद बयानों उनके प्रवक्ताओं की फूहड़ता वाले तर्कों को देखेंगे तो साफ़ नज़र आएगा कि प्रियंका गाँधी के सियासत में कूदने से उनके तम्बू में कितनी घबराहट है।
जो लोग प्रियंका के बारे में इतना नहीं जानते या ये सवाल कर रहे हैं कि प्रियंका में ऐसा क्या है जो लोग उसकी प्रशंसा कर रहे हैं ? वो उनके 16 वर्ष की उम्र में दिए भाषण को यूट्यूब पर तलाश कर सुनें, शायद उनकी सोच के दरवाज़े खुलें, इतनी काम उम्र में राजनीति की समझ, तार्किक भाषण और शब्दों की मार के साथ उनका लहजा देखने सुनने लायक होता है।
या फिर प्रियंका गांधी का राजनीतिक कौशल तौलने के लिए उन लोगों को 1993 के दौर में जाना होगा जब सोनिया गांधी ने पहली बार संसदीय चुनाव में कदम रखा था, कर्नाटक के आदिवासी बहुल वेल्लारी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रही सोनिया के खिलाफ तब भाजपा ने फायरब्रांड नेत्री सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा था। शानदार भाषण शैली और विशुद्ध भारतीय महिला वाली छवि की बदौलत सुषमा स्वराज, सोनिया के खिलाफ विदेशी मूल के मुद्दे पर सवार होकर शुरुआती बढ़त हासिल कर चुकी थीं।
लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में प्रियंका गांधी ने सोनिया के पक्ष में उतर कर सुषमा समेत पूरी भाजपा का जायका बिगाड़ दिया था। प्रियंका गांधी ने वेल्लारी में धुआंधार तरीके से रोड-शो किए और सोनिया गांधी भारी-भरकम अंतर से वह चुनाव जीत गईं थीं।
उसके बाद उन सवालिया लोगों को प्रियंका गाँधी की इस नैसर्गिक क्षमता को समझने के लिए रायबरेली का वो चुनाव भी समझना होगा जब भाजपा प्रत्याशी अरुण नेहरू पर किये गए उनके भावुक हमले ने तब वहां भी चुनाव का रुख बदल दिया था, कांग्रेस प्रत्याशी कैप्टन सतीश शर्मा के समर्थन में प्रियंका ने एक चुनावी सभा में लोगों से शिकायती लहजे में पूछा कि उनके पिता राजीव गाधी को धोखा देने वाले अरुण नेहरू को उन्होंने रायबरेली में घुसने कैसे दिया ? प्रियंका के भावुक भाषण के बाद कांग्रेस वहां से न केवल चुनाव जीती बल्कि अरुण नेहरू चौथे स्थान पर सिमट भी गए।
सच तो ये है कि प्रियंका गाँधी की इस अद्भुत प्रतिभा को कांग्रेस ने पांच प्रतिशत भी काम में नहीं लिया, राहुल गाँधी को राजनैतिक रूप से स्थापित करने के लिए सोनिया गाँधी ने प्रियंका गाँधी को हाशिये पर रखा और दूसरी बात कि खुद प्रियंका गाँधी ये सब देखकर आगे नहीं आईं।
एक सच यहाँ और भी है वो ये कि प्रियंका गाँधी की राजनैतिक समझ, वाक् चातुर्य, शानदार भाषण शैली, ओजस्वी और चुंबकीय व्यक्तित्व और नैसर्गिक क्षमताओं के आगे राहुल गाँधी कहीं नहीं ठहरते,
मगर फिर भी राहुल गाँधी को ही कई विफलताओं के बाद भी बार बार आगे किया गया, इसका कारण आपको पीछे जाकर देखना होगा फ़रवरी 2014 में तहलका में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था “प्रियंका गांधी: देश में लिंगभेद का सबसे बड़ा प्रतीक?”, इस लेख में प्रसिद्द पत्रकारों नीरजा चौधरी और राशिद किदवई के विचारों के साथ खुद लेखक प्रदीप सती ने विस्तार से इन बातों, कारणों और तर्कों पर खुल कर लिखा है जो कि कहीं न कहीं इन पांच सालों में सिद्ध भी हुआ है, कि राहुल गाँधी को सियासी तौर पर स्थापति करने के लिए ही प्रियंका गाँधी के सियासी क़दम को रोके रखा गया। जबकि खुद कांग्रेस के ही अंदर से बार बार प्रियंका गाँधी को राजनीयत में उतारे जाने की मांगें उठायी जाती रहीं, मगर सब अनसुना कर दिया गया।
जो क़दम हाल ही में हुए पांच विधानसभा चुनावों से पहले उठाया जाना चाहिए था वो अब उठाया गया है, टाइमिंग के हिसाब से प्रियंका गाँधी को अपनी चिर परिचित प्रतिभा दिखाने के लिए वक़्त बहुत ही कम मिला है, मगर सियासी पंडितों की मानें तो प्रियंका गाँधी भारतीय राजनीति का चमकदार सितारा हैं, 2019 के लोकसभा चुनावों में वो क्या कर पाती हैं ये समय ही बताएगा मगर ये बात सियासी पंडित मान रहे हैं कि प्रियंका गाँधी के इस आगमन से कांग्रेस संगठन को मज़बूती मिलेगी और उत्साह बढ़ेगा। कुछ खांटी पत्रकार उन्हें देश का भावी प्रधान मंत्री देख रहे हैं, 2019 न सही 2024 में इसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
आज भी किसी कांग्रेसी के दिल पर हाथ रख कर पूछ लिया जाए कि राहुल या प्रियंका में वो आगे किसे देश का प्रधान मंत्री देखना चाहते हैं तो शायद 99 फ़ीसदी प्रियंका गाँधी को ही उस पद पर देखना चाहेंगे न कि राहुल गाँधी को।
खैर जो भी है समय के गर्भ में छुपा है, एक शानदार व्यक्तित्व, ज़बदस्त भाषण शैली और सम्प्रेषण के जादू और नैसर्गिक प्रतिभा वाली प्रियंका गाँधी को सियासी पारी की शुरुआत के लिए हार्दिक शुभकामनायें, दुआ करते हैं कि आप देश की सियासत को नए आयाम दें।
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