श्रीनगर के शम्सवाड़ी इलाक़े के रहने वाले 16 वर्षीय निसार को 15 जनवरी 1994 को पुलिस ने लाजपत नगर में हुए धमाके के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था जब वो अपने फार्मेसी कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था।
निसार कहते हैं, ‘उन्होंने मेरी गिरफ्तारी की तारीख़ भी मुझे हिरासत में लेने के नौ दिन बाद की दिखाई थी। ये हिरासत ग़ैर-क़ानूनी थी, उन नौ दिनों में उन्होंने बेरहमी से मुझे टॉर्चर किया, और उसके बाद पहले मीडिया, और फिर कोर्ट के सामने पेश किया’।
निसार पर उसके बाद एक और मुक़दमा लगा दिया गया, राजस्थान के समलेटी में रोडवेज़ की एक बस में धमाका, जिसमें 14 लोग मारे गए थे। दोनों भाईयों पर विस्फोटकों का बंदोबस्त करने, और फिर दूसरे मुल्ज़िमों के साथ मिलकर, लाजपत नगर धमाके को अंजाम देने का इल्ज़ाम लगाया गया। इफ्तिख़ार को आख़िरकार 2010 में, लाजपत नगर मामले से बरी किया गया, लेकिन निसार को आज़ाद होते होते 2019 आ गया।
अगले 14 सालों तक निसार, दिल्ली और राजस्थान की जेलों के बीच शटल करते रहे. मिर्ज़ा भाईयों की वकील, मशहूर एडवोकेट कामिनी जायसवाल ने कहा, इनके मुक़दमे ‘बिना सबूत के केस’ थे।
जायसवाल ने फोन पर कहा, ‘ये हमारी न्याय व्यवस्था की पूरी तरह नाकामी थी, मैं तो याद भी नहीं करना चाहती कि हुआ क्या था, वो मुक़दमे बस ऐसे ही खिंचते रहे, कभी जज का तबादला हो जाता था, तो कभी गवाह हाज़िर नहीं होता था’।
वो आगे कहती हैं ‘एक ज़रा सा भी सबूत नहीं था, जो उन्हें धमाकों से जोड़ सकता था, इसलिए पुलिस ने उन पर बस साज़िश के इल्ज़ाम मढ़ दिए थे. वो घोर अन्याय के अलावा कुछ नहीं था’।
निसार कहते हैं कि दोनों मामलों में, 350 से अधिक गवाह थे, जिनकी गवाहियां दर्ज होने में बरसों लग गए. जेल में बिताए गए सालों के मानसिक आघात को याद करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘पुलिस ने तो गिरफ्तारी के वक़्त मेरी उम्र भी 19 साल लिखी थी, जबकि मैं सिर्फ 16 साल का था. बाद में हमने पैदाइश के सर्टिफिकेट दिखाए, लेकिन वो किसी काम के साबित नहीं हुए।
दोनों भाईयों के 14 साल जेल में गुज़ार लेने के बाद, 2010 में निचली अदालत ने लाजपत नगर धमाका मामले में फैसला सुनाया, इफ्तिख़ार समेत पांच लोगों को बरी कर दिया गया, लेकिन छठे को उम्र क़ैद हुई, और निसार समेत बाक़ी तीन को सज़ाए मौत सुना दी गई।
2012 में दिल्ली हाईकोर्ट ने निसार व अन्य को बरी कर दिया, लेकिन वो फिर भी जेल से बाहर नहीं आ सके, क्योंकि राजस्थान केस अभी चल रहा था। 2014 में ट्रायल कोर्ट ने निसार और अन्य को दोषी ठहरा दिया, और उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई। इसके साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट में पांच साल की लड़ाई की शुरूआत हुई, जिसने आख़िरकार 2019 में यानी 23 साल बाद उन्हें बरी कर दिया।
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