सियासी और धार्मिक दुकानदारों ने पिछले कुछ सालों से अपनी दुकाने चलाने के लिए “धर्म खतरे में है” का नारा बड़ी ही ज़ोर से उछाला है और इसके बाद धार्मिक संगठनों ने इस नारे को दिमाग के कोने कोने में ठूंसने की प्रक्रिया को ठेके पर ले लिया है, और इस नारे की ‘रिले रेस’ अब ज़ोरदार ढंग से देश में चालू है ! रिले रेस समझ रहे हैं ना आप ?
‘धर्म खतरे में है’ के कथित ठेकेदारों से कुछ सवाल है ताकि पता चल सके कि किससे, कितना, कैसे और क्यों धर्म खतरे में है :
सबसे पहले तो देश की कुल आबादी से उस आबादी का प्रतिशत निकालें जिससे खतरा पैदा हो गया है, तो ये ज़ोर मारकर 2018 तक शायद 15 प्रतिशतसे ज़्यादा नहीं निकले-
यानी आप (आप का सम्बोधन उनके लिए लिए जिन्हे ‘धर्म खतरे में’ नज़र आ रहा है) इन कथित 15 पर्सेण्टियों से ही भयभीत हैं ?
तो सुनिए ये जो 15 फ़ीसदी आबादी है इस देश पर उसका भी उतना ही अधिकार है जितना कि आपका है, वो इस देश में बाई चांस नहीं है, बल्कि बाई चॉइस है, इस आबादी के पास ऑप्शन था धर्म के नाम पर बने देश का नागरिक बनने का, मगर हमारे पुरखों ने अपनी देश की सरज़मीन को छोड़कर जाने से इंकार कर दिया-
वो आबादी जिसके नायक स्वतंत्रता संग्राम में देश की खातिर क़ुर्बान हुए, वो आबादी जिसने इस देश को डा. ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद साहब, सर सय्यद अहमद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से लेकर डा. कलाम जैसे लोग दिए, वो आबादी जो अपना सुनहरा अतीत लिए वर्तमान में उपेक्षित पड़ी अपने भविष्य के लिए चिंतित है-
वो आबादी जिसके औरंगज़ेब जैसे नौजवान सैनिकों के रूप में सीमा पर देश के लिए जान न्योछावर कर रहे हैं-
वो आबादी जिसके पढ़े लिखे नौजवानों को कभी IM (इंडियन मुजाहिदीन) तो कभी लश्कर तो कभी अल-क़ायदा तो कभी आईसिस के नाम पर पकड़ कर जेलों में ठूंस दिया गया, कोई दस कोई पंद्रह तो कोई बीस साल बाद निर्दोष साबित होकर छूटे-
वो आबादी जिसके माथे पर ‘पंचर जोड़ने’ वाली क़ौम का स्टिकर चिपका दिया गया हो, वो आबादी जिसे हर राजनैतिक दल ने तुष्टिकरण के नाम पर ठगा, और पीठ पीछे इस आबादी की जड़ में तेज़ाब डालते रहे-
वो आबादी जिसके कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुलिस सेवा में मुसलमान केवल 4 प्रतिशत, प्रशासनिक सेवा में 3 फीसदी और विदेश सेवा में मात्र 1.8 प्रतिशत हैं, यही नहीं देश के सबसे बड़े नियोक्ता के तौर पर मशहूर रेलवे के कुल कर्मचारियों में से महज 4.5 फीसदी मुसलमान हैं !
वो आबादी जिसकी आधी आबादी यानी मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर 53.7 फ़ीसदी है, इनमें से अधिकांश केवल अक्षर ज्ञान तक ही सीमित हैं ! सात से 16 वर्ष आयु वर्ग की स्कूल जाने वाली लड़कियों की दर केवल 3.11 फ़ीसदी है, शहरी इलाक़ों में 4.3 फ़ीसदी और ग्रामीण इलाक़ों में 2.26 फ़ीसदी लड़कियां ही स्कूल जाती हैं !
विश्व में इंडोनेशिया के बाद सबसे बड़ी वो आबादी जिसने अपने देश में अल-क़ायदा और आइसिस जैसे ताक़तवर आतंकी संगठनों को सफल नहीं होने दिया-
वो मुस्लिम आबादी जिसके कई मोहल्ले बैंकों द्वारा ब्लैक लिस्टेड किया जा चुके हैं, ना ही वो लोग अपने अकाउंट खोल सकते ना ही बैंकों से कोई लोन आदि ले सकते हैं-
और खास बात कि ऊपर के आंकड़ों को परखने के बाद चेक कीजिये कि इस आबादी ने आपकी कितनी नौकरियां छीनीं, कितने धंधे रोज़गार छीने, कितनी सम्पत्तियों पर क़ब्ज़ा किया ?
इस आबादी के कितने लोग काला धन लेकर विदेश भागे ? या फिर स्विस बैंकों में इस आबादी के कितने एकाउंट्स हैं ?
खैर अब आगे चलिए : –
आपका धर्म इन 15 परसेंट लोगों की वजह से खतरे में है जो रोज़ सोशल मीडिया पर अपनी आर्थिक, सामाजिक, या शैक्षणिक स्थिति सुधारने के बजाय फालतू के मुद्दों पर अपने ही मज़हब के लोगों से शाब्दिक जूतम पैजार करते हैं-
आपका धर्म इन 15 परसेंट लोगों की वजह से खतरे में है जिन्हे अपनी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को सुधारने की ज़रा भी चिंता नहीं है-
आपका धर्म इन 15 परसेंट लोगों की वजह से खतरे में है जो खुद कई फ़िरक़ों में बंटे हुए हैं, जिन्होंने अपनी अपनी मस्जिदें अलग बना ली हैं ? दूसरे फ़िरक़े के लोगों की एंट्री बंद करने के बोर्ड लगाए हुए हैं ?
आपका धर्म इन 15 परसेंट लोगों की वजह से खतरे में है जो हर महीने सोशल मीडिया पर दो तीन बार आपस में ही फ़िरक़ों और मसलकों को लेकर बवाल करते हैं ?
लकड़ियों के ‘खुले गठ्ठर’ की कहानी की तरह ये खुद ही इतने हिस्सों में बंट गए हैं कि अब इन्हे समेटना अब मुश्किल है-
अगर इतना सब कुछ देखने समझने के बाद भी आपका धर्म देश की मुख्यधारा से दूर होती जा रही इस छितराई कई हिस्सों में बंटी हुई, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक तौर पर पिछड़ी हुई आबादी से धर्म खतरे में है तो मुझे नम्रता पूर्वक आप से कहना पड़ेगा कि खुद आपको ही अपने धर्म की समझ नहीं है, आपका धर्म कभी खतरे में पड़ ही नहीं सकता, धर्म पर भला किसने विजय पाई है ?
क्षमा कीजिये यहाँ आप राजनैतिक और धार्मिक दुकानदारों के टूल बन गए हैं, आपका धर्म नहीं बल्कि आपकी समझ खतरे में है, इस देश के सामाजिक सौहार्द के उस ताने बाने की वो अमूल्य विरासत खतरे में है जिसे आपके हमारे पुरखों ने हमें सौंपा था और जिसे हमारी नेक्स्ट जनरेशन को सहेज कर सौंपने की हमारी ज़िम्मेदारी है !
अब तय कर लीजिये कि कौन, क्यों, किससे और कितना खतरे में है !
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