पाक प्रायोजित पुलवामा आतंकी हमले के बाद शहीद हुए 42 जवानों की शहादत से देश में कश्मीरियों के खिलाफ भी गुस्सा फूट पड़ा है, उन्हें हर कश्मीरी में आतंकी नज़र आ रहा है, देश के कई राज्यों और शहरों से कश्मीरियों के साथ हिंसा और उन्हें शहरों और कालेजों से निकालने की ख़बरें आ रही हैं, जो लोग ये हरकतें कर रहे हैं ये उनकी अज्ञानता है या सुनियोजित साजिश ये अब लोग समझने लगे हैं।
जिन्हे हर कश्मीरी आतंकी नज़र आ रहा है उन्हें याद दिला दूँ कि जिस रोती हुई बच्ची का ये फोटो है उसका नाम है ज़ोहरा, इसके पिता जम्मू-कश्मीर के ASI अब्दुल रशीद 28 अगस्त 2017 को अनंतनाग में गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे।
ASI अब्दुल राशिद को आतंकी हमले के दौरान गोली लगी थी उस दौरान वह ड्यूटी पर थे और पुलिस स्टेशन लौट रहे थे। पिता की मौत के बाद ज़ोहरा को जब यह खबर दी गई तब वह अपने स्कूल में थी। यह खबर सुनकर ज़ोहरा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, और इस बात से यकीन करने को इनकार कर रही थी कि उसके पिता उसको छोड़कर चले गए हैं। अपने पिता के लिए रोती बिलखती ज़ोहरा की तस्वीरों को देख कर लोगों की आंखे नम हो गई थीं।
ASI अब्दुल राशिद के अंतिम संस्कार पर बिलखती हुई ज़ोहरा ने कहा कि वह अपने पिता को मिस कर रही हैं, वह बड़े होकर पढ़ लिख कर डॉक्टर बनना चाहती हैं क्योंकि उसके पिता यही चाहते थे।
उस समय भी पूरा देश इस आतंकी हरकतों के खिलाफ और इस बच्ची ज़ोहरा की मार्मिक और रुला देने वाली तस्वीर देख कर आक्रोशित हुआ था, राजनाथ सिंह जी से लेकर पक्ष विपक्ष, मीडिया और सोशल मीडिया पर इस बच्ची ज़ोहरा के लिए लोगों की संवेदनाएं थीं।
ज़ोहरा की ये तस्वीर देखकर तत्कालीन साउथ कश्मीर के DIG एसपी मणि भाव विह्वल हो गए थे और उन्होंने फेसबुक पर ज़ोहरा को एक खुली चिठ्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने लिखा था :
“तुम्हारे आंसू हमारे कलेजे को झुलसा रहे हैं। तुम्हारे पिता ने जो बलिदान दिया हैं, वह हमेशा याद रखा जाएगा। ये क्यों हो रहा हैं इसकी वजह जानने के लिए अभी तुम काफी छोटी हो। जो लोग कश्मीर की शांति को बिगाड़ना चाहते हैं, वास्तव में वह पागल और मानवता के दुश्मन हैं।
डी.आई.जी ने अब्दुल की तारीफ करते हुए कहा कि तुम्हारे पिता हम सब की तरह जम्मू-कश्मीर पुलिस फोर्स का चेहरा थे, जो कि हमेशा वीरता और बलिदान का उदाहरण रहेंगे। जम्मू-कश्मीर पुलिस अब्दुल राशिद को हमेशा एक सच्चे पुलिस ऑफिसर के तौर पर याद किया जाएगा।”
अपने पिता के लिए बिलखती ज़ोहरा का फोटो देख कर क्रिकेटर गौतम गंभीर आगे आये थे और उन्होंने एक टवीट कर जोहरा की पढ़ाई का खर्च उठाने की बात कही थी। उन्होंने टवीट किया था कि “जोहरा, मैं लोरी गाकर आपको सुला नहीं सकता, लेकिन मैं आपके सपनों को साकार करने में मदद करूंगा। आपकी शिक्षा के लिए ताउम्र मदद करूंगा।”
Zohra,I can't put u 2 sleep wid a lullaby but I'll help u 2 wake up 2 live ur dreams. Will support ur education 4 lifetime #daughterofIndia pic.twitter.com/XKINUKLD6x
— Gautam Gambhir (@GautamGambhir) September 5, 2017
कश्मीर में ऐसी आतंकी घटनाओं में ऐसी न जाने कितनी ज़ोहराएँ अपने पिता को अपने भाइयों को खो चुकी हैं, कश्मीरी में आतंकी का शिकार सेना, अर्धसैनिक बल ही नहीं हैं जम्मू कश्मीर पुलिस भी इस आतंक का बड़ा शिकार होती आयी है, ज़ोहरा के पिता भी इसी जम्मू कश्मीर पुलिस में ASI थे जिन्हे आतंकियों ने शहीद कर दिया था।
1873 से अस्तित्व में आयी जम्मू कश्मीर पुलिस बल की संख्या 83,000 के लगभग है, और ये भी आतंकियों के निशाने पर हर बार रहती है, 1989 के बाद से ये जम्मू कश्मीर पुलिस आतंकियों के निशाने पर आने लगी इसका कारण था, इनका स्थानीय होना और इन तक आसान पहुँच।
आंकड़ों के अनुसार 1990 से लेकर दिसंबर 2018 तक 500 स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (SPO) 1,038 पुलिस कर्मी, 131 ग्रामीण सुरक्षा कमेटी मेंबर्स यानी कुल 1,669 अपनी ड्यूटी करते हुए आतंकियों द्वारा शहीद कर दिए गए , इन आतंकी घटनाओं में कई बड़े अधिकारी भी शहीद हुए।
फ़रवरी 2004 को जम्मू कश्मीर पुलिस के DIG (Crime and Railways) मोहम्मद अमीन भट्ट को आतंकियों ने श्रीनगर में ईद की नमाज़ पढ़ कर निकलते वक़्त गोली मार कर शहीद कर दिया था, 22 जून 2017 को श्रीनगर में ही रमज़ान के मौके नाईट ड्यूटी कर रहे DSP अयूब पंडित को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला था।
20 जून 2017 को स्टेशन हाउस अफसर फ़िरोज़ डार और उसके पांच साथियों को लश्कर के आतंकियों ने अनंतनाग ज़िले में मौत की घात उतार दिया था, फ़िरोज़ डार का चेहरा फायरिंग कर विक्षत कर दिया था।
22 अगस्त 2017 को छुट्टियों में अपने घर ईद मनाने आये सब इंस्पेक्टर अशरफ डार को आतंकियों ने रसोई में ही उसकी एक वर्षीय बच्ची के सामने गोलियों से छलनी कर दिया था।
आतंकियों द्वारा जम्मू कश्मीर पुलिस कर्मीयों की हत्याओं से पुलिस विभाग सदमें में था, पुलिस अधिकरियों ने एक गाइड लाइन जारी की कि पुलिस कर्मी अपने घर जाने से परहेज़ करें, 28 अक्टूबर को सब इंस्पेक्टर इम्तियाज़ अहमद मीर अपनी माँ से मिलने को इतना उतावला था कि वो भेस बदल कर अपनी दाढ़ी साफ़ कर एक निजी वाहन से घर की ओर निकला मगर कामयाब नहीं हुआ, पुलवामा के रास्ते में ही आतंकियों ने उसे अगवा कर उसकी हत्या कर दी, अगले दिन गोलियों से छलनी उसका शव बरामद हुआ था, इम्तियाज़ अहमद मीर अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था।
आतंकियों के हाथ मारे गए जम्मू कश्मीर पुलिस बल के ऐसे सैंकड़ों शहीद और उनके क़िस्से मौजूद हैं, जिसे आप सुनना चाहें तो सुन सकते हैं, पढ़ सकते हैं, जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक शेष पॉल वैदय कहते है कि जम्मू कश्मीर पुलिस सबसे असुरक्षित है, इसी लिए आतंकियों का शिकार हो जाती है, ये वो गुमनाम हीरो हैं जिनकी दक्षता की वजह से बड़ी संख्या में आतंकवादियों और शीर्ष कमांडरों को समाप्त कर दिया गया है। पुलिस सफल साबित हुई है और इसने सीमा पार से आतंकवादियों और उनके आकाओं को हताशा में डाल दिया है।
जम्मू कश्मीर में सिर्फ सेना, अर्धसैनिक बल या जम्मू कश्मीर पुलिस ही नहीं आम नागरिक भी आतंकी घटनाओं में बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं, Hindustan TImes में प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि पिछले 27 सालों में राज्य में 41,000 लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। इसका मतलब है कि हर एक दिन चार लोग मारे जा रहे हैं जो कि साल के हिसाब से 1519 होते हैं। इसमें 14,000 आम आदमी, 5,000 सुरक्षा जवान और 22,000 आतंकी शामिल हैं। ये आंकड़े 1990 से 2017 के बीच के हैं।
इन 27 सालों में 69,820 आतंकी घटनाएं हुईं। यानी हर साल 2586 लोग इसकी भेंट चढ़ रहे हैं। इन घटनाओं के लिए भारत पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, 1990-2000 के मुकाबले आतंकी घटनाएं 2014 में बढ़ीं।
ये सब तथ्य और आंकड़े देख कर समझ सकते हैं कि कश्मीरी खुद पाक प्रायोजित आतंक से पीड़ित है, सेना, अर्धसैनिक बल, जम्मू कश्मीर पुलिस ही नहीं आम नागरिक भी इस आतंकवाद की भेंट चढ़ रहे हैं, राह भटके और आतंकियों द्वारा ब्रेन वाश किये गए युवाओं की संख्या बहुत कम है, पढ़ लिख कर अपना कॅरियर बनाने, खेल कूद, प्रतियोगी परीक्षाओं और सेना में भर्ती होने वाले युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है, जब भी सेना में भर्ती होती है कश्मीरी युवक देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने उमड़ पड़ते हैं।
तब ज़ोहरा के लिए देश से हज़ारों लाखों हाथ मदद और दुआओं के लिए उठ गए थे, और पुलवामा के शहीदों और उनके परिजनों के लिए भी लाखों करोड़ों हाथ मदद, दुआओं और श्रद्धांजलियों के लिए उठे हैं, ये जज़्बा इस देश की आत्मा में बसा हुआ है।
इस बच्ची ज़ोहरा का फोटो देखकर, उसकी कहानी पढ़कर और ये तथ्य तथा आंकड़े देखकर भी अगर आप आम कश्मीरियों को आतंकी कहते हैं या आतंकी हमलों का ज़िम्मेदार मानते हैं तो ये आपका राष्ट्रवाद या जवानों से प्रेम बिलकुल नहीं बल्कि आपका पूर्वाःग्रह है, समुदाय विशेष के लिए नफरत है जिसे आप इस दुखद मौके पर भुनाकर अपनी कुंठा शांत कर रहे हैं, और इस कुंठा का कोई इलाज भी नहीं है।
आतंक के शिकार इन कश्मीरियों के लिए इतना ही कह सकते हैं कि :
हम शिकार भी दंगाइयों के होते हैं !
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हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है !!
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