बुलंदशहर में उन्मादी भीड़ द्वारा इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की घेर कर निर्मम हत्या भी मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा घेर कर मार देना) ही कही जाएगी, खासकर कथित गौरक्षकों द्वारा या फिर गाय के कारण भड़की हिंसा की वजह से पीट पीट कर हत्या,  जो कि चार सालो से देश में लगातार जारी है।

न सिर्फ मॉब लिंचिंग जारी है बल्कि अब इस लिंचिंग की चपेट में पुलिस भी आ चुकी है, दूसरी और इस न्यू इंडिया के अच्छे दिनों में सांप्रदायिक हिंसा में भी चिंताजनक वृद्धि हुई है।

Gulf News की खबर के अनुसार मोदी सरकार में सांप्रदायिक घटनाओं में 28 फीसदी वृद्धि हुई है जो कि यूपीए सरकार के उच्च स्तर से कम है। गृहराज्य मंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा में गौरक्षा के नाम पर हुई हिंसा पर बयान देते हुए बताया था कि सांप्रदायिक हिंसा में पिछले तीन वर्षों से 2017 तक 28 फीसदी की वृद्धि हुई है।

India Spend के अनुसार 2014 के बाद से हेट क्राइम्स में भी 41 % की चिंताजनक वृद्धि हुई है, 2017 में 822 घटनाएं दर्ज की गई थीं, लेकिन यह 2008 में दर्ज 943 मामलों से कम है, जो एक दशक में सबसे बड़ी संख्या है।

उत्तर प्रदेश इस मामले में आगे है, 2015 में 130 % की वृद्धि के साथ हेट क्राइम्स के 60 मामले दर्ज हुए थे, जो कि 2016 में 116 हो गए।

पिछले एक दशक में, सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश (यूपी) में सबसे ज्यादा घटनाएं, 1,488 दर्ज की गई हैं। 26 जनवरी, 2018 को, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कासगंज में सांप्रदायिक हिंसा की घटना दर्ज की गई थी, जिसमें, एक 22 वर्षीय युवा ( चंदन गुप्ता ) की गोली मार करल हत्या कर दी गई थी। इसमें हिंसा के सिलसिले में कम से कम 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिससे गणतंत्र दिवस पर एक अनधिकृत मार्च निकला था, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने 27 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक घटनाओं में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े 2014 में 133 से बढ़कर 2017 में 195 हुआ है। वर्ष 2013 में सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएं दर्ज की गई है, करीब 247। पिछले दशक में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में उत्तर प्रदेश के लिए आंकड़े सबसे ज्यादा रहे हैं।

सांप्रदायिक घटनाओं के कारण, उत्तर प्रदेश ने सबसे ज्यादा मौतों की सूचना दी है ( 321, या 1,115 मौतों में से 28 फीसदी )। इसके बाद मध्य प्रदेश (135), महाराष्ट्र (140), राजस्थान (84) और कर्नाटक (70) का स्थान है।

आगे चलते हैं जनसत्ता की खबर के अनुसार गौरक्षा के नाम पर हुई हिंसा में मरने वाले 86 प्रतिशत मुसलमान, 97 प्रतिशत घटनाएं केवल मोदी राज में हुई हैं।

साल 2010 से 2017 के बीच गोवंश से जुड़ी हिंसा के मामले केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद बहुत तेजी से बढ़े हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि आठ साल में गाय के नाम पर हिंसा में मरने वाले 86 प्रतिशत मुसलिम रहे। वहीं 97 प्रतिशत घटनाएं मोदी राज में घटित हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक गाय से जुड़ी हिंसा के आधे से ज्यादा मामले (लगभग 52 प्रतिशत) झूठी अफवाहों के कारण हुए। इंडिया स्पेंड ने 25 जून 2017 तक के आंकड़ों के आधार पर ये विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट के अनुसार इन आठ सालों में ऐसी 63 घटनाएं हुई जिनमें 28 लोगों की जान चली गई। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी मई 2014 में केंद्र की सत्ता मों आए थे।

28 में से 24 मुसलमान :-

रिपोर्ट का दावा है कि इस दौरान गोवंश से जुड़ी हिंसा के मामलों में मारे गए 28 लोगों में से 24 मुसलमान (करीब 86 प्रतिशत) थे। इन घटनाओं में 124 लोग घायल हुए थे। गाय से जुड़ी हिंसा के आधे से ज्यादा मामले (करीब 52 प्रतिशत) झूठी अफवाहों की वजह से हुए थे।

वेबसाइट ने जानकारी दी है कि गाय से जुड़ी हिंसा के 63 मामलों में 32 बीजेपी शासित राज्यों में दर्ज किए गए। आठ मामले कांग्रेस शासित प्रदेशों में हुए। बाकी मामले दूसरी पार्टियों द्वारा शासित प्रदेशों में हुए।

बता दें कि इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में गाय से जुड़ी हिंसा के मामलों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। इस साल से पहले छह महीनों में गाय से जुड़े 20 मामले हुए जो साल 2016 में हुई कुल हिंसा के दो-तिहाई से ज्यादा हैं।

पिछले 8 सालों में गाय से जुड़ी हिंसा के 63 मामलों में 61 मामले केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद ही हुए हैं। साल 2016 में गोवंश से जुड़ी हिंसा के 26 मामले दर्ज किए गए। 25 जून 2017 तक ऐसी हिंसाओं को लेकर अब तक 20 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।

इन दर्ज मामलों में करीब 5 प्रतिशत आरोपियों के गिरफ्तारी की कोई सूचना तक नहीं है जबकि 13 मामलों में यानी करीब 21 फीसदी में पुलिस ने पीड़ित या भुक्तभोगियों के खिलाफ ही केस दर्ज कर दिया है। इसका मतलब साफ है कि हिंसा के शिकार बनो और उल्टे सजा काटने के लिए भी तैयार रहो।

बल्कि इसके उलट नागरिक उड्डयन राज्यंन्त्री जयंत सिन्हा ने झारखण्ड मॉब लिंचिंग के आरोपियों को ज़मानत मिलने पर उनका फूल मालाओं से स्वागत किया था, ये मॉब लिंचिंग के आरोपियों का उत्साहवर्धन नहीं तो क्या था ?

एक नज़र इस न्यू इंडिया के अंदर पनपते लिंचिंस्तान के शिकार हुए मुसलमानों के नामों की सूचि पर नज़र डालिये :-

1-अख़लाक़ (दादरी उत्तरप्रदेश)
2- अय्यूब (गुजरात)
3-ज़ाहिद (हिमांचल प्रदेश)
4- पहलू खान (मेवात हरियाणा)
5-मज़लूम अंसारी (झारखंड)
6-छोटू खान (झारखंड)
7- मिन्हाज़ (बिहार)
8- शेख सज्जू (झारखंड)
9- शेख सेराज (झारखंड)
10-नईम खांना (झारखंड)
11- शेख हलीम (झारखंड)
12- इब्राहिम (तावडू मेवात)
13- रशीदन (तावडू मेवात)
14- पप्पू मिस्त्री (गोंडा) उत्तरप्रदेश
15-मोहम्मद यूनुस (नसीरपुर मऊ)
16-मोहम्मद ज़फ़र (प्रतापगढ़) राजस्थान
17- जुनैद (बल्लभगढ़) हरियाणा
18-वाहिद (सिकंदराबाद उत्तर प्रदेश)
19-शकील क़ुरैशी (जेवर उत्तरप्रदेश)
20- इमरान (झारखण्ड) हत्या
21- अयूब पंडित (श्रीनगर)
22- क़ासिम (पिलकुआ)
23- फरदीन खान
24- मुहम्मद सालिक (झारखंड)
25- अकबर खान (अलवर) राजस्थान

देश में बढ़ती इसी मॉब लिंचिंग के चलते सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला और महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी द्वारा गोरक्षकों की हिंसा पर रोक लगाने हेतु एक याचिका दायर की थी।

जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने राज सरकारों को आदेश दिया था कि ‘कोई भी नागरिक अपने आप में क़ानून नहीं बन सकता है. लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाज़त नहीं दी जा सकती.’ सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को सख्त आदेश दिया था कि वो संविधान के मुताबिक काम करें।

मगर इस मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए सरकारें इतनी प्रतिबद्ध और गंभीर नज़र नहीं आईं, ना ही ऐसे उग्र संगठनों पर लगाम कसने की कोशिशें की जो इन मामलों में लिप्त पाए जाते थे, इसका नतीजा बुलन्दशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या के रूप में देखने को मिला।

 

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