गहलोत सरकार द्वारा पहलु खान मॉब लिंचिंग मामले में गठित SIT की जाँच में सामने आया है कि इस केस के सरकारी वकील और पुलिस के निठल्लेपन से ही सभी आरोपी बरी हुए, पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले में दो वीडियो सामने आए थे, इनमें एक वीडियो काफी ज्यादा वायरल हुआ था।
SIT की जाँच में पाया कि जिस मोबाइल से वीडियो बनाया गया था उसे पुलिस ने जब्त तो कर लिया था, लेकिन सरकारी वकील ने सबूत के तौर पर उस मोबाइल को अदालत में मंगवाया ही नहीं, जब्त किया गया वो मुख्य मोबाइल SIT को मालखाने से मिला है।
SIT ने जांच में पाया कि जांच अधिकारी (I.O) ने वीडियो के फोटो बनाकर चार्जशीट में सबूत के तौर पर तो लगाए, मगर इन फोटो के बारे में FSL से सर्टिफिकेट शामिल ही नहीं किया। SIT रिपोर्ट में पाया गया कि 1 अप्रैल 2017 को शाम करीब सात बजे पहलू से मारपीट हुई, जिसके बाद उसे 7:50 बजे अस्पताल ले जाया गया, पुलिस ने 11:50 बजे पहलू का बयान दर्ज किया।
बयान में उसने कुछ लोगों के नाम बताए थे, जिसके आधार पर पुलिस ने तीन घंटे बाद केस दर्ज कर लिया, अदालत में am और pm को लेकर गलत फहमी हुई और APP मामले को साफ नहीं कर पाए।
आरोपियों की रिहाई के समय कुछ सवाल उठे थे, जिनमें ये कि जांच अधिकारी ने घटना का वीडियो बनाए जाने वाले मोबाइल को जब्त नहीं कर गंभीर लापरवाही बरती। जांच अधिकारी ने पहलू का पर्चा बयान दर्ज करने के 16 घंटे बाद थाने पर मुकदमा दर्ज करने के लिए पेश किया।
जांच अधिकारी ने पर्चा बयान में नामजद आरोपियों को लेकर क्या जांच की, इसको लेकर सरकारी वकील द्वारा अदालत में कोई सबूत पेश नहीं किए गए। FIR में नामजद आरोपियों की जगह अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया।
वहीं, SIT टीम ने अपनी जांच में ये माना कि जिस मोबाइल से घटना का वीडियो बनाया गया, उसे पुलिस ने सबूत के तौर पर जब्त किया था, लेकिन वह मालखाने में ही रखा रह गया। सरकारी वकील ने इसे सबूत के तौर पर पेश नहीं किया।
घटना के अगले दिन 3:50 am पर मामला दर्ज कर लिया गया था जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान इसे 3:50 pm माना। इसके आधार पर अदालत ने माना कि घटना के 16 घंटे बाद मामला दर्ज हुआ। उन्होंने अपनी जांच में पाया कि सरकारी वकील सही तरीके से पैरवी नहीं कर पाए।
पहलू खान केस के सरकारी वकील और पुलिस के जाँच अधिकारी द्वारा की गयी इस लापरवाही की वजह से पहलू खान के परिजनों को इन्साफ नहीं मिल पाया और सभी आरोपी बरी कर दिए गए, पुलिस पर तो राजनैतिक दबाव माना जा सकता है मगर केस के सरकारी वकील की ढिलाई इस मामले में हैरान करने वाली हैं, यदि गहलोत सरकार SIT का गठन नहीं करती तो शायद सरकारी वकील की इस कोताही से पर्दा कभी भी नहीं उठता और ना ही केस के जाँच अधिकारी की लापरवाही सामने आ पातीं।
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