बिल गेट्स ने कोरोना महामारी से काफी पहले 2015 में एक Ted Talk में ही दुनिया को Covid-19 जैसी महामारी की चेतावनी दी कि भविष्य में एक घातक महामारी हो सकती है जिससे लाखों लोगों के मारे जाने की आशंका है।
फिर इसके बाद 2017 में बिल गेट्स ने चेतावनी दी कि जैविक युद्ध और जैविक आतंकवाद से दुनिया में करोड़ों लोगों के मरने की आशंका है, बिल गेट्स का ये भी कहना है कि भविष्य के युद्ध बंदूकों, टैंकों, हथियारों और एटम बम से नहीं बल्कि ‘जैविक हथियारों’ से ही लड़े जायेंगे। बिल गेट्स की ये चेतावनी समस्त मानव जाति के लिए रेड अलर्ट की तरह है। उनकी पूर्व भविष्यवाणियों को देखते हुए इस नई चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
इधर 7 दिसंबर को सीडीएस स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत ने बहु-राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अभ्यास के शुरू होने से पहले एक कार्यक्रम में संबोधन करते हुए कहा था कि जैविक युद्ध की किसी तरह शुरुआत हो रही है तो हमें एक साथ काम करने की जरूरत है।
क्या हैं जैविक हथियार (Biological Weapons) :
जैविक युद्ध से पहले बात करें जैविक हथियरों की, जैविक हथियारों में प्रकृति में पाए जाने वाले किसी भी सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया, वायरस या फंगी) या विष (Toxin) शामिल हैं जिनका उपयोग वृहद् स्तर पर लोगों को मारने या घायल करने के लिए किया जा सकता है। ये जैविक हथियार अगर आतंकवादियों के हाथ लग जाएँ तो विश्व के लिए और गंभीर खतरा खड़ा हो सकता है।
इबोला, जीका जैसे वायरस को वैज्ञानिक हमेशा संदेह से देखते आ रहे हैं। दुनिया में कोरोना वायरस को लेकर चीन पर उंगलियां उठ रही हैं। आरोप है कि यह वायरस चीनी सेना के अंतर्गत आने वाली वुहान लैब से निकला है।
इधर अमेरिका ने साफ तौर पर चीन पर आरोप लगाए हैं, हालांकि अभी तक इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं। मगर वुहान लैब पर शक गहराता जा रहा है कि कोरोना यहीं से लीक हुआ था।
ये सूक्ष्म जैविक हथियार इसलिए और भी घातक हैं कि इन्हे किसी भी छोटी शीशी, बॉक्स, स्प्रे में आसानी से लाया ले जाया सकता है। इन्हे किसी भी किताब, लिफाफे या अख़बार में छिड़क कर आमजन तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। किसी भी शहर के जल संसाधन केंद्र में पानी में मिलाया जा सकता है, माचिस की डिब्बी में समां जाने वाले ज़रा से जैव हथियार बड़ी जनसंख्या के लिए दीर्घकालिक खतरा पैदा कर सकते हैं।
क्या है जैविक युद्ध (Biological Warfare) :
किसी भी देश के विरुद्ध बैक्टीरिया, वायरस या फंगी को हथियार बनाकर विशाल स्तर पर नागरिकों को गंभीर रूप से बीमार कर नरसंहार करना। ये जैविक हथियार बहुत काम मात्रा में बड़ी तबाही मचाकर किसी भी देश की आबादी को बीमार कर सकते हैं मृतकों का ढेर लगा सकते हैं, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं को ढहा सकते हैं।
युद्ध के लिए महंगे और भारी भरकम हथियारों के मुक़ाबले ये कथित आधुनिक जैव हथियार बहुत ही सस्ते, सूक्ष्म और कहीं ज़्यादा मारक हैं, एक मुठ्ठी जैविक हथियार किसी भी महानगर की जनसँख्या को संक्रमित कर सप्ताह भर में गंभीर खतरे में डाल सकते हैं, बड़ी मात्रा में मौतों का कारण बन सकते हैं। इन जैविक हथियारों से संक्रमित लोगों द्वारा बीमारी चक्रवृद्धि दर की तरह फैलती है, एक संक्रमित व्यक्ति सौ पचास लोगों को संक्रमित कर सकता है और सौ पचास संक्रमित लोग हज़ारों और हज़ार लाखों और लाख करोड़ों को संक्रमित कर सकते हैं।
इसी लिए विश्व के सामने ये जैविक हथियार एक चेतावनी के तौर पर आ खड़े हुए हैं और सभी देश इन जैविक हथियारों, जैविक हमलों और आतंकियों द्वारा इन जैविक हथियारों के दुरूपयोग को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। बिल गेट्स ने इस जर्म गेम नाम दिया है और इसे काउंटर करने के लिए सभी देशों और विश्व स्वास्थ्य संगठन से एक टास्क फाॅर्स बनाने की अपील भी की है।
जैविक हथियारों के इस्तेमाल का इतिहास :
जैविक हथियारों का इस्तेमाल प्राचीन काल से कई रूपों में होता आया है।
400 ईसा पूर्व सीथियन तीरंदाजों ने अपने तीरों को सड़ने वाले शरीर मांस में डुबोकर दुश्मनों पर हमले किये थे।
300 ईसा पूर्व के फारसी, ग्रीक और रोमन साहित्य में कुओं और पानी के अन्य स्रोतों को मृत जानवरों से दूषित करने के उदाहरण दिए गए हैं।
12 वीं शताब्दी ईस्वी में टोर्टोना की लड़ाई के दौरान बारबारोसा ने मृत और सड़े हुए सैनिकों के शवों को कुओं के पानी को ज़हरीला करने में इस्तेमाल किया था।
1347 में मंगोल सेना ने प्लेग से संक्रमित शव काफा के ब्लैक सी के तट पर फेंके थे, इससे तब जहाजों से बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होकर इटली लौटे और वहां ब्लैक Death महामारी फैली जिससे 4 साल में यूरोप में लगभग 2.5 करोड़ लोग मारे गए।
18 वीं शताब्दी ईस्वी में ब्रिटिश सेना ने पिट्सबर्ग में डेलावेयर इंडियन को घेरकर चेचक वायरस से संक्रमित कंबल फेंके थे।
आधुनिक समय यानी 1900 के दशक के दौरान जैविक युद्ध परिष्कृत हो चुका था, इसके कुछ उदाहरण :
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना ने जैविक हथियारों के रूप में उपयोग के लिए एंथ्रेक्स, ग्लैंडर्स, हैजा और एक फंगस विशेष रूप से विकसित किए। इन्ही जैविक हथियारों के बल पर उन्होंने कथित तौर पर रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में प्लेग फैलाया, मेसोपोटामिया में ग्लैंडर्स के साथ खच्चरों को संक्रमित किया, और फ्रांसीसी कैवेलरी के घोड़ों के साथ भी ऐसा ही किया।
दुनिया में जैविक हथियारों के इस्तेमाल के बाद अधिकांश देशों इन पर रोक लगाने के लिए जिनेवा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। 1972 में बायोलॉजिकल वेपंस कन्वेंशन हुआ। ये 1975 में लागू हो गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने मंचूरिया में एक गुप्त जैविक युद्ध अनुसंधान सुविधा (यूनिट 731) स्थापित की जहाँ कैदियों पर जैव हथियार प्रयोग किए गए। उन्होंने जैव हथियारों से बीमारी को विकसित करने के परिक्षण के प्रयास में 3,000 से अधिक क़ैदियों पर प्लेग, एंथ्रेक्स, सिफलिस और और बाक़ी जैव हथियारों का परीक्षण किया । कई संक्रमित इस परीक्षणों में मारे गए इसके बाद इन जैव हथियारों का मानव शरीर पर प्रभावों को समझने के लिए ऑटोप्सी भी किए गए थे ।
1942 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने युद्ध अनुसंधान सेवा का गठन किया। एंथ्रेक्स और बोटुलिनम टॉक्सिन की शुरुआत में हथियारों के रूप में इस्तेमाल के लिए जांच की गई थी। जून 1944 तक पर्याप्त मात्रा में बोटुलिनम विष और एंथ्रेक्स का भंडार किया गया था ताकि अगर जर्मन सेना पहले जैविक एजेंटों का इस्तेमाल करती है तो जवाब में इन जैव हथियारों की अनुमति दी जा सके। अंग्रेजों ने 1942 और 1943 में स्कॉटलैंड के उत्तर-पश्चिमी तट पर ग्रुइनार्ड द्वीप पर एंथ्रेक्स बमों का भी परीक्षण किया और उसके बाद एंथ्रेक्स युक्त मवेशी केक तैयार और भंडारित किए गए।
1979 में स्वेर्दलोवस्क, USSR में एक हथियार संरक्षण केंद्र से एंथ्रेक्स जीवाणुओं के लीक होने से कम से कम 66 लोग मारे गए थे। रूसी सरकार ने दावा किया कि ये मौतें संक्रमित मांस के कारण हुईं। अंततः 1992 में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने इस जैविक दुर्घटना को स्वीकार किया था।
वर्तमान दौर में जैविक युद्ध और जैविक आतंकवाद :
अमरीका ने आरोप लगाया था कि 1985 में इराक ने एंथ्रेक्स, बोटुलिनम टॉक्सिन और एफ़्लैटॉक्सिन का उत्पादन करने वाला एक आक्रामक जैविक हथियार कार्यक्रम शुरू किया था। ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म के दौरान, सहयोगी बलों के गठबंधन को रासायनिक और जैविक हथियारों के खतरे का सामना करना पड़ा। फारस की खाड़ी युद्ध के बाद सहयोगी बलों के गठबंधन ने खुलासा किया था कि इराक़ के पास बम, स्कड मिसाइल, 122 मिमी के रॉकेट और बोटुलिनम टॉक्सिन, एंथ्रेक्स और एफ्लाटॉक्सिन से लैस तोपखाने के गोले हैं।
1984 के सितंबर और अक्टूबर में ओरेगन में भगवान श्री रजनीश के अनुयायियों ने रेस्तरां सलाद बार को जानबूझकर साल्मोनेला (एक बेक्टेरिया जो भोजन की विषाक्तता का कारण बनता है) से संक्रमित कर दिया था जिससे 751 लोग गंभीर बीमार हो गए थे।
1995 में ओम् शिनरिक्यो पंथ के एक जापानी संप्रदाय ने टोक्यो भूमिगत रेल में सरीन गैस से हमला किया था जिसमें 12 लोग मारे गए थे। इस मामले में पंथ के गुरू शोको असहारा और उनके 11 अनुयायियों को मौत की सजा सुनाई गई थी।
1995 में अमरीका में मिनेसोटा मिलिशिया समूह के दो सदस्यों को विषाक्त रिसिन रखने का दोषी ठहराया गया था, जिसे उन्होंने स्थानीय सरकारी अधिकारियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए खुद ही किया था।
2001 में अमेरिकी मीडिया और सरकारी कार्यालयों को डाक द्वारा एंथ्रेक्स भेजा गया था, इसके परिणामस्वरूप पांच मौतें हुईं थीं।
जैविक हथियारों के वितरण और पहचान कैसे :
दुनिया में लगभग 1,200 से अधिक जैविक हथियार हैं जिनका उपयोग बड़ी जनसँख्या की बीमारी या मृत्यु का कारण बनने के लिए किया जा सकता है, जैविक हथियार प्राप्त करने, संसाधित करने और उपयोग बहुत ही आसान हैं। महानगरीय क्षेत्र में सैकड़ों हजारों लोगों को मारने या अक्षम करने के लिए केवल थोड़ी मात्रा की ही आवश्यकता होगी। जैव हथियारों को छिपाना आसान है और उनका पता लगाना या उनसे बचाव करना मुश्किल है। वे अदृश्य, गंधहीन, बेस्वाद हैं और चुपचाप फैल सकते हैं।
कुल मिलकर महामारी से जूझती दुनिया जहाँ कोरोना के नए नए वेरियंट्स से भयभीत है वहीँ जैविक हथियारों, जैविक हमलों और जैविक आतंकवाद की चेतावनी से और सहम गयी है। यदि बिल गेट्स की पहले सच साबित हो चुकी चेतावनियों की तरह जैविक हमलों और जैविक आतंकवाद की ये चेतावनी भी सच होती है तो ये दुनिया के लिए बहुत ही बड़े खतरे का अलार्म है।
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