हाल ही में संपन्न हुई प्रतिष्ठित विज्ञान कांग्रेस में पेश की गयी अवैज्ञानिक और हास्यास्पद दलीलों के चलते पूरे विश्व में इस विज्ञान कांग्रेस की किरकिरी हुई, इसी कारण विज्ञान कांग्रेस ने अब सर्कुलर जारी कर अगले वर्ष से अवैज्ञानिक बातों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
जिस सरकार ने भारत को विश्वगुरु बनाने का जुमला उछाला था, उसी के कार्यकाल में हर विज्ञान कांग्रेस में सबसे ज़्यादा वाहियात दलीलें और बयान दिए गए, वैश्विक पटल पर देखें कि भारत विश्वगुरु बनने से कितने क़दम दूर है और क्यों।
पडोसी चीन को ही लें करीब दो दशक पहले विज्ञान में भारत-चीन बराबर थे, पर अब चीन पेटेंट के मामले में हमसे करीब 28 गुना आगे है। शोधार्थी भी 5 गुना अधिक हैं। साथ ही दुनिया के विज्ञान में चीन की हिस्सेदारी बढ़ी है।
आज चीन एजुकेशन, रिसर्च और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत से 10 गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरू की विज्ञान की स्थिति पर दी गई रिपोर्ट में भारत रत्न वैज्ञानिक डॉ. सीएनआर राव ने बताया है कि करीब 15-20 साल पहले दुनिया के विज्ञान में भारत की हिस्सेदारी 2.5 फीसदी थी और चीन की 2 फीसदी। अब चीन की हिस्सेदारी 14 से 15 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि भारत की तीन से चार फीसदी ही है।
90 के दशक में चीन ने खूब खर्च किया। अपने छात्रों को विदेशों के उच्च स्तरीय विवि में पढ़ने के काबिल बनाया और उन्हें वहां भेजा। इनमें से अधिकांश छात्रों को मोटी तनख्वाह पर वापस चीन लाया गया। इन्होंने उन रिसर्चर की सूची बनाई, जिनके रिसर्च को ज्यादा साइट किया गया हो। यानी उस रिसर्च को ज्यादा लोगों ने उपयोग किया हो। उन प्रोफेसरों को दो लाख डॉलर यानी करीब डेढ़ करोड़ रुपए तक प्रतिवर्ष देने का ऑफर किया गया। भारत में सरकारी सिस्टम की बात करें तो विदेशी प्रोफेसर को भी यूजीसी गाइडलाइन के तहत यानी डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिमाह सैलरी दी जाती है।
हाल ही में वैज्ञानिक शोध का विश्लेषण करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था क्लेरिवेट एनालिटिक्स ने दुनिया के टॉप 4000 वैज्ञानिकों की सूची जारी की थी। इसमें भारत के केवल 10 वैज्ञानिकों के नाम हैं।
इन देशों के सबसे ज्यादा टॉप वैज्ञानिक :-
अमेरिका 2639
ब्रिटेन 546
चीन 482
जर्मनी 356
ऑस्ट्रेलिया 245
द ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के मुताबिक भारत का इनोवेशन के क्षेत्र में अपने स्तर पर प्रदर्शन पिछले पांच साल में काफी सुधरा है। लेकिन भारत पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में खुद से ही पिछड़ गया।
इनोवेशन की रैंकिंग :-
देश 2018 2013 2009
स्विटजरलैंड 1 1 7
यूके 4 3 4
यूएसए 6 5 1
आयरलैंड 10 10 21
चीन` 17 35 37
भारत 57 66 41
(स्रोत-द ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स)
पेटेंट की बात की जाये तो 2012 से 2018 तक भारत की टॉप 68 संस्थाओं के कुल 3623 पेटेंट हुए हैं। ये वे संस्थाएं हैं, जहां शैक्षणिक स्तर पर विज्ञान से जुड़ी चीजों पर गतिविधियां ज्यादा होती हैं। इनमें से सिर्फ आठ संस्थाओं के नाम अकेले 95 फीसदी पेटेंट हैं। वहीं कुल 31 उच्च शिक्षण संस्थाएं ऐसी हैं, जिनके नाम पिछले सात साल में एक भी पेटेंट नहीं है। 2016-17 में डीआरडीओ, आईआईटी, इसरो आदि ने 781 पेटेंट फाइल किए। वहीं अमेरिकी कंपनी क्वालकॉम ने भारत में 1840 पेटेंट फाइल किए।
पेटेंट में ऐसी है हमारी स्थिति :-
देश 1997 2017
जापान 3.87 लाख 3 लाख
अमेरिका 2.14 लाख 6 लाख
यूके 28 हजार 22 हजार
चीन 24 हजार 13 लाख
भारत 9 हजार 46 हजार
(हम पेटेंट में अभी चीन से 28 गुना पीछे हैं। स्रोत-वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाईजेशन।)
देश में 40 हजार कॉलेज हैं। औसतन हर कॉलेज से सिर्फ 8 विश्वस्तरीय शोध प्रकाशित हो पाते हैं। 5 साल में वैश्विक स्तर पर शोध प्रकाशित होने की संख्या में भारत का योगदान सिर्फ 4% है। देश में होने वाली रिसर्च का सिर्फ एक तिहाई विश्व स्तरीय शोध देश के 97% कॉलेजों में हुआ है। जबकि एनआईआरएफ वाले ढाई प्रतिशत कॉलेज 66.64% शोध करते हैं।
शाेध प्रकाशनों की संख्या
विषय विश्व भारत प्रतिशत
सभी शोध 83,09,000 3,36,000 4%
इंजीनियरिंग 24,69,000 1,51,000 6%
प्रबंधन 1,11,000 2,700 2.5%
फार्मेसी 2,03,000 10,700 5.25%
(स्रोत-लोकसभा में पूछा गया सवाल)
एजुकेशन : वर्ष 2018 में चीन के मुकाबले कहां है भारत :-
चीन भारत
क्यूएस रैंक के टॉप 100 कॉलेज 6 यूनिवर्सिटी एक भी नहीं
विश्व स्तर पर प्रमाणित पेपर 4000 पेपर 500 पेपर
शोधकर्ताओं की संख्या 16 लाख 3 लाख
एजुकेशन पर खर्च GDP का 4% 40 लाख करोड़ GDP का 2.5% 4 लाख करोड़
रिसर्च पर खर्च GDP का 2.1% GDP का 0.7%
ये हाल तब है जब साइंस एंड टेक्नोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, डीआरडीओ के बजट में चार साल में करीब 40% तक इजाफा हुआ है।
…और हम ये बातें कर रहे हैं :-
स्टेम सेल शोध और टेस्ट ट्यूब तकनीक के कारण एक मां से सैकड़ों कौरव हुए थे, यह कुछ हजारों साल पहले हुआ। देश के विज्ञान की यह स्थिति थी।
(जी नागेश्वर राव, कुलपति, आंध्र यूनिवर्सिटी)
-4 जनवरी 2019 को इंडियन साइंस कांग्रेस में-
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का नाम बदलकर भारत माता मंत्रालय रखा जा सकता है। इसमें कोई सोचने की बात नहीं है…. कोई प्रेजेंटेशन की बात भी नहीं है।
(डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय विज्ञान और तकनीकी मंत्री)
(15 जनवरी 2019 को मौसम विभाग के 144वें फाउंडेशन डे पर)
{लेख सामग्री दैनिक भास्कर से साभार}
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