जर्मनी में राहुल गांधी ने आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट का उदाहरण देते हुए एक अजीब तर्क रखा कि विकास प्रक्रिया से बड़ी संख्या में लोगों को बाहर रखने से दुनिया में कहीं भी आतंकवादी संगठन पैदा हो सकता है, राहुल ने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने विकास की प्रक्रिया से आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को बाहर रखा है, ‘‘यह एक खतरनाक बात बन सकती है.”
इस बयान को समझिए!
ये तर्क अजीब इसलिए है कि भारतीय मुसलमानों ने प्रारंभ से ही IS का विरोध किया है, जिस तरह से किसी समय IS में भर्ती होने के लिए दुनिया भर से लोग जा रहे थे, तब उस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश भारत से जाने वाले मुश्किल से दो या तीन सिर फिरे ही थे.
रही विकास की प्रक्रिया से बाहर रहने की बात तो ‘सच्चर कमेटी’ याद कर लीजिए, दशकों विकास की प्रक्रिया से बाहर रहने के बावजूद भी देश का मुसलमान आज भी IS में जाने के बजाय अभावों के बावजूद IAS और IPS में जाने के लिए ही जद्दो जहद कर रहा है.
राहुल गांधी का ये आतंकवाद का तर्क उनकी दूसरी दलील पर फिट बैठता है जिसमें वो कहते हैं कि बेरोजगारी और छोटे उद्यमों के नष्ट होने से पैदा हुआ गुस्सा देश में भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) की वजह बन रहा है. इन परिस्थितियों के लिए नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को ग़लत तरीके से लागू करने जैसे कदम जिम्मेदार हैं.
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सरकार की ग़लत नीतियों के कारण पैदा हुई ‘आर्थिक असमानता’ के चलते देश में भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिसे अनजाने में मीनाक्षी लेखी जी ने भी स्वीकार किया था.
इसलिए मेरा राहुल गांधी जी से यही निवेदन है कि पहले हिंदुस्तानी मुसलमान को गहराई से समझिए उसके बाद IS की उत्पत्ति के मूल में जाइये, तभी आपको इस देश के मुसलमानों के त्याग और बलिदान का सच नज़र आएगा, बाक़ी तो सब गूगल ज्ञान है.
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