म्यांमार में हो रहे नरसंहार के सैंकड़ों वीभत्स फोटोज़ और वीडियोज़ गूगल पर आसानी से उपलब्ध हैं और वहां से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।  ये कैसे पहुंचे, किसने पहुंचाए, ये अपलोड किये ?

तो सुनिए ये सब सुनियोजित ढंग से हुआ है, इस सुनियोजित नरसंहार को शेष विश्व तक पहुंचाकर ये दिखाना था कि ये सब (Ethnic Cleansing) रक्त शुद्धि संस्कृति के लिए किया जा रहा है, या राष्ट्रहित में हो रहा है, इसी अधिक से अधिक फोटोज़ और वीडियोज़ इंटरनेट पर अपलोड किये गए ताकि शेष विश्व को पता चले और प्रतिक्रिया में सरकार आगे आकर इस नरसंहार को जस्टिफाई करे।

इन सब हथकंडों के पीछे का मनोविज्ञान भी नृशंस है, ये डर. क़त्लेआम, और नृशंसता की मार्केटिंग है, ठीक जैसे ISIS वाले करते थे, और कुछ हद तक ग़ुंडे गौरक्षक करते हैं, मॉब लिंचिंग के वीडियोज़ सोशल मीडिया पर डालते हैं, मनोविज्ञान वही है मगर ये उसका लघु प्रतिरूप है, इसके पीछे की रणनीति और सन्देश ये है कि वो जो कर रहे हैं वो एक मुहिम के तहत है, और उनके राष्ट्र हित के लिए बिलकुल सही है, यही उनका राष्ट्रवाद है, हम लोगों की हत्याएं करेंगे और इसके लाइव सबूत भी दिखाएंगे, शेष विश्व को इसमें टांग अड़ाने की कोई ज़रुरत नहीं है।

ये सब बहुत ही सुनियोजित ढंग से शुरू किया जाता है, इस तरह की नफरत को वो बहुसंख्यकों को परोसते हैं, उनसे सहभागिता का आग्रह करते हैं, ये आग्रह का मनोविज्ञान काम करता है, बहुसंख्यकों का मौन समर्थन का ग्राफ धीरे धीरे बढ़ता है, ये आग्रह आगे जाकर सहयोग में परिवर्तित हो जाता है, और फिर लोग इनके साथ मुहीम में शामिल भी होने लगते हैं, ये एक ब्रेन वाश किये जाने जैसी प्रक्रिया है, जिसे ‘राष्ट्रवाद के रैपर’ में परोसा जाता है।

म्यांमार में हो चुके इस बेख़ौफ़ नरसंहार की सबसे बड़ी वजह है हत्यारों को सरकार और सेना से मिला अभयदान, और बहुसंख्यकों का मौन समर्थन व उनकी चुप्पी, और इसके अलावा विश्व में बनायी गयी कृत्रिम इस्लामॉफ़ोबिक लहर के चलते शेष विश्व से न के बराबर प्रतिरोध।

हिटलर ने भी (Ethnic Cleansing) शुद्ध रक्त गर्व को जर्मनी की संस्कृति का आधार बताया था, लव जेहाद जैसी विचारधारा परोस कर जर्मनी में नूरेमबर्ग क़ानून लागू किया गया था, ठीक इसी तर्ज़ पर म्यांमार में (Ethnic Cleansing) रक्त शुद्धि संस्कृति के नाम पर रोहिंग्या मुसलमानो की लाशों का अम्बार लगाया जा रहा है, साथ में हिन्दुओं को भी भगाया जा रहा है।

अपने क्रूर कारनामों के सबूतों को फोटोज़ और वीडिओज़ के ज़रिये ये लोग शेष विश्व को दिखा कर ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो अपने देश की संस्कृति और राष्ट्रवाद के लिए ये सब कर रहे हैं, उनके लिए यही राष्ट्रहित है और सरकार की भी इसके लिए मूक सहमति है, इसलिए उन्हें किसी की भी परवाह नहीं है।

आप इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि इस नरसंहार के सबसे बड़े आरोपी बौद्ध आतंकी अशीन विराथु ने म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांगी ली को ‘कुतिया’ और ‘वेश्या’ कहकर सम्बोधित किया था।

म्यांमार में हुए व्यापक नरसंहार में सोशल मीडिया ने खासकर फेसबुक ने अहम् भूमिका निभाई है, जिसका सत्यापन संयुक्त राष्ट्र संघ की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने भी कर दिया है, और यही वजह रही कि फेसबुक को म्यांमार के सेनाध्यक्ष सहित 20 अफसरों के प्रोफाइल्स और पेजेज़ ब्लॉक करना पड़े, यही हाल श्रीलंका में हुए दंगों का रहा जिसमें फेसबुक ने अहम् भूमिका निभाई थी।

भारत में भी फेसबुक पिछले तीन चार सालों से दुष्प्रचार करने, नफरत परोसने, हेट क्राइम्स को बढ़ावा देने, सांप्रदायिक उन्माद फ़ैलाने और मॉब लिंचिंग के वीडियो शेयर करने के काम में लिया जाने लगा है,ये किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

विश्व में राष्ट्रवाद और रक्त शुद्धि संस्कृति के नाम पर हो रहे इस तरह के नरसंहार पर शेष विश्व को तात्कालिक निर्णय लेना होगा, साथ ही देश में सोशल मीडिया पर नफरत फ़ैलाने, सांप्रदायिक उन्माद भड़काने, हेट क्राइम्स को उकसाने और मॉब लिंचिंग के वीडियोज़ शेयर कर उसे राष्ट्रहित में उचित ठहराने जैसी हरकतों पर नकेल कसना होगा अन्यथा ये माध्यम देश को अराजकता की चौकट पर ले जाकर खड़ा कर देगा।

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