कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों और स्थानीय मुसलमानों के बीच प्यार और भावनाओं का एक गहरा रिश्ता रहा है, इतिहास पर नज़र डालें तो स्थानीय मुसलमानों और यात्रियों को हमेशा से एक-दूसरे की ज़रूरत रही है और इस रिश्ते में आज भी वही गर्मजोशी दिखती है।
साल 2000 तक पुरोहित सभा ही अमरनाथ यात्रा के आयोजन की पूरी जिम्मेदारी संभालती थी उसके बाद से श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ये काम करने लगा, लेकिन अमरनाथ यात्रा में मुस्लिमों की भूमिका तब भी खत्म नहीं हुई क्योंकि यात्रा के लिए घोड़े चलाने वालों से लेकर दूसरी जरूरतों के लिए स्थानीय मुस्लिम लोग सालों से इससे जुड़े हुए हैं, इस वजह से अमरनाथ यात्रा एक तरह से कश्मीरियत का हिस्सा बन चुकी है।
भले ही ये यात्रा हिंदुओं की है लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी इससे हज़ारों कश्मीरी मुसलमान इस यात्रा से किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं, कश्मीर के पहलगाम में बटकोट के रहने वाले गुलाम हसन मलिक कहते हैं, “एक वो ज़माना था जब अमरनाथ गुफ़ा जाने वाले पैदल हमारे गांवों तक पहुंच जाते थे और यहां वे ठहरते थे और हम उन्हें हम कहवा पिलाते थे। गांवों की सभी महिलाएं, बूढ़े और बच्चे यात्रियों को देखने बाहर आते थे. उनके लिए कश्मीरी गाने गाते थे।”
48 साल के घोड़ा चालक गुलाम रसूल की कई पीढ़ियां भी अमरनाथ यात्रा से जुड़ी रही हैं, जब वो 20 साल के थे तब पहली बार एक यात्री को घोड़े पर बिठाकर अमरनाथ गुफा तक लेकर आए थे।
गुलाम रसूल कहते हैं, “यात्रियों को किसी भी तरह की परेशानी होने पर हम उनका साथ देते हैं, मसलन, अगर बारिश हुई और किसी के पास टेंट नहीं है तो हम उसे अपने घर ले आते हैं। इस वक़्त भी हमारे घर में यात्री हैं, ज़रूरत पड़ने पर हम इन्हें पैसे भी देते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि यात्री हमारा अकाउंट नंबर ले जाते हैं और घर पहुंचकर हमारे अकाउंट में पैसे भेज देते हैं. हम तो भरोसे पर भी काम करते हैं।”
मध्य प्रदेश से आए दीपक परमार पिछले कई सालों से अमरनाथ यात्रा पर आते रहे हैं, उन्होंने कहा, “मैं वापस जाकर लोगों को अफने अनुभव के बारे में बताता हूं, मैं सबको बताता हूं कि कश्मीरी लोग हमारे लिए हमेशा आगे रहते हैं।”
2017 में इसी अमरनाथ यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों की बस पर हुए आतंकी हमले में ड्राइवर सलीम ने अपनी जान पर खेल कर तीर्थ यात्रियों की जान बचाई थी, सलीम ने आतंकियों की ओर से की जा रही गोलियों की बौछार के बीच 52 तीर्थ यात्रियों से भरी बस को होशियारी से बचाकर निकाल लाये थे। तीर्थ यात्रियों को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल जाने वाले ड्राइवर सलीम को देश ने एक हीरो की तरह सम्मान दिया था।
- लेबनान पेजर विस्फोट : इजरायल के सुदूर युद्ध रणनीति के इतिहास पर एक नज़र। - September 18, 2024
- महाराष्ट्र के कुछ गांवों की मस्जिदों में गणपति स्थापित करने की अनूठी परंपरा। - September 15, 2024
- स्कैमर ने चीफ़ जस्टिस बनकर कैब के लिए 500/- रु. मांगे। - August 28, 2024