आखिरकार नोटबंदी का पूरा डरावना सच देश के सामने आ ही गया, ये एक विफल त्रासद प्रयोग था जो कि देशहित में अब नज़र न आकर विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक हथकंडा नज़र आ रहा है और जिसका परिणाम देश के करोड़ों आमजनों के साथ साथ अर्थव्यवस्था और व्यापर को भुगतना पड़ रहा है.

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के चार बड़े लक्ष्य बताये थे इन चार लक्ष्यों में से तीन बड़े लक्ष्यों में सरकार आज भी निल बटे सन्नाटा की स्थिति में है, इनमें से तीन लक्ष्य बिलकुल फ्लॉप साबित हुए और चौथा लक्ष्य भले ही हासिल हुआ हो मगर ग्रामीण और दूर दराज़ के गांव इससे भी अछूते ही हैं.

याद कीजिये 8 नवंबर, 2016 को उन्होंने कहा था ‘इसलिए, भ्रष्टाचार, काला धन, नकली नोटों और आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई में, देश के विशुद्धीकरण के इस अभियान में क्या हमारे लोग कुछ दिनों की कठिनाइयों को सहन नहीं करेंगे ? मुझे पूरा भरोसा है कि देश का हर नागरिक उठ खड़ा होगा और इस महायज्ञ में भागीदार बनेगा.’

उपरोक्त कथन को यहाँ समझिये कि क्या थे वो चार लक्ष्य जिसे बताकर जनता को बहलाया गया था, और कितने पूरे हुए :

1. आतंकवाद पर लगाम : नोटबंदी के बाद मोदी जी ने कहा था कि इससे आतंकवाद पर लगाम लगेगी, मनी लांड्रिंग पर काबू पाया जायेगा, आतंकियों को फंडिंग पर रोक लगेगी !
हुआ क्या : – 8 नवंबर 2015 से नवंबर 2016 तक 155 आतंकी घटनाएं हुईं, इसके बाद 2017 तक 184 व 31 जुलाई 2018 तक 191 घटनाएं हुईं.

2. ब्लैक मनी : सबसे बड़ा दावा किया गया थे काले धन पर चोट का, बोले थे कि ढाई साल में 1.2 लाख करोड़ रु. कालाधन बाहर आया, तीन चार लाख करोड़ और आएगा !
हुआ क्या : – 99.3% पुराने नोट वापस आ चुके हैं, जो 10,720 करोड़ रु. नहीं आए, उन्हें भी सरकार पूरी तरह कालाधन नहीं मान रही, उधर उलटे स्विस बैंकों में 2017 में भारतीयों द्वारा जमा रकम में 50 % की और वृद्धि हो गयी.

3. भ्रष्टाचार : दावा किया गया था कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी !
हुआ क्या : – ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे में भारत एशिया में भ्रष्ट देशों की सूची में 69 प्रतिशत रिश्वतखोरी की रेट के साथ टॉप पोजीशन पर पहुँच गया, 175 देशों में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे के अनुसार भ्रष्ट देशों की वैश्विक रैंकिंग में भारत 2016 में 79 नंबर से छलांग लगाकर 2017 में 81 पर पहुंच गया.

4. डिजिटल लेनदेन : दावा किया था कि डिजिटल ट्रांसक्शन से भ्रष्टाचार में कमी आएगी, नकदी के अधिक उपयोग का सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है !
हुआ क्या : – 2016 के मुकाबले 2017 में पीछे साल के मुक़ाबले डिजिटल लेनदेन 40% बढ़ा है, जुलाई 2018 तक इसमें 5 गुणा वृद्धि दर्ज की गयी है, कह सकते हैं कि यहाँ सरकार को अपने केवल इसी दावे में सफलता मिली है.

नोटबंदी के कुछ और भयावह पहलू :
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1. नोटों की छपाई का खर्च पिछले साल 133% बढ़ा
2015 में खर्च : 6 3,421 करोड़
2016 में खर्च : 17 7,965 करोड़
2017 में खर्च :18 4,912 करोड़

2. नए 500 रु. के नकली नोट 4171% बढे और 2000 रु. के 2710% बढ़े.

3. नक़ली करेंसी का ज़ोर बढ़ा : नोटबंदी के बाद कहा गया था कि नए नोट बहुत ही सुरक्षित और उच्च तकनीक से छापे गए हैं, इनकी नक़ल करना असंभव है, मगर हुआ इसका उलट
2000 रु. के नकली नोट 28 गुना ज्यादा पकड़े गए-
2016-17 में 500 रु. के 199 नकली नोट पकड़े गए-
2017-18 में यह संख्या बढ़कर 9,892 हो गई-
2000 रु. के नकली नोटों की संख्या 638 से बढ़कर 2017-18 में 17,929 हो गई.

50 के नकली नोट 154% बढ़े :-
2015-16 में : 6,453
2016-17 में : 9,222
2017-:18 में : 23,447

100 के नकली नोट 35% बढ़े
2015-16 में : 2,21,447
2016 -17 में : 1,77,195
2017 -18 में : 2,39,182

50 रु. के नकली नोटों में नए भी-
सबसे ज्यादा नकली नोट 100 रु. के-
(उपरोक्त सभी आंकड़े  दैनिक भास्कर से)

इसी नोटबंदी के चलते ATM और बैंकों की लाइन में लगे 100 से ज़्यादा गरीब और बेक़ुसूर लोगों की मौत हुई.

कुल मिलाकर नोटबंदी से ‘भ्रष्टाचार, काला धन, नकली करेंसी तथा आतंकवाद’ के खात्मे जैसे दावे इस रिपोर्ट के आने के बाद औंधे मुंह गिरे नज़र आ रहे हैं.

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