मुंबई एटीएस के अध्यक्ष शहीद हेमंत करकरे और उनकी पत्नी कविता करकरे का बलिदान किसे याद नहीं है, मुंबई हमले में शहीद होने के बाद उनकी पत्नी कविता करकरे ने उनके बलिदान पर गर्व किया था, यहाँ तक कि उन्होंने 1 करोड़ रूपये की आर्थिक सहायता लेने से भी मना कर दिया था।
इंडिया टुडे और इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार कविता करकरे ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी जी द्वारा 1 करोड़ रूपये की सहायता राशि की पेशकश को नकार दिया था।
इस 1 करोड़ की राशि पर कुछ मीडिया पोर्टल्स में विरोधाभासी बयान भी आये आउटलुक इंडिया की खबर के अनुसार गुजरात के तत्कालीन मुख्यमत्री मोदी जी ने किसी भी आर्थिक राशि की पेशकश नहीं की, बल्कि गुजरात सरकार की ओर से मुंबई हमलों में शहीद हुए 14 पुलिस अफसरों और पुलिस कर्मियों के लिए महाराष्ट्र सरकार को सहायता राशि की पेशकश की गयी थी।
खैर दोनों ही केसों में कविता करकरे ने आर्थिक सहायता लेने से इंकार ही किया था, इसमें कोई संदेह नहीं है।
अब आते हैं विवेक तिवारी की हत्या और उसके बाद हुए घटनाक्रम पर, विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी ने पहले ही दिन से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने और 1 करोड़ का मुआवज़ा देने की मांग उठा डाली थी।
इसी के चलते कल्पना तिवारी को 40 लाख रूपये का चेक सौंपा गया और साथ में लखनऊ नगर निगम में ओएसडी पद पर नौकरी देने की भी घोषणा की गयी। कल्पना तिवारी ने जितने ज़ोरो शोर से मुआवज़े और नौकरी के लिए सरकार की नाक में दम किया उतना अपने पति के क़ातिलों को सजा दिलाने के लिए नहीं किया।
उनके पति का केस केवल चश्मदीद सना के गवाही पर टिका है, अगर कल को सना होस्टाइल हो जाती है और अपने बयान से पलट जाती है तो सारे पांसे उलटे पड़ते नज़र आएंगे।
शहीद हेमंत करके की पत्नी चाहती तो वो उस समय अपने और बच्चों के लिए कितनी ही बड़ी डिमांड कर सकती थीं, और शायद उस समय महाराष्ट्र सरकार को उनके हर मांग पूरी करना पड़ती, मगर उन्होंने ऐसा बिलकुल नहीं किया।
जैसे हेमंत करकरे थे वही संस्कार और इंसानियत उनकी पत्नी कविता करकरे तथा उनके बच्चों में थी, इस दुख की घड़ी में भी कविता करकरे के बच्चों ने उनके अंगदान करने को अपनी सहमति दे दी जिससे तीन लोगों को नया जीवन मिल था।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार उनकी एक किडनी 48 वर्षीय व्यक्ति को और एक किडनी जसलोक अस्पताल में भर्ती 59 वर्षीय व्यक्ति को लगाईं गयी, उनका लिवर कोकिलाबेन अम्बानी हॉस्पिटल में भर्ती एक व्यक्ति के काम आया जो लिवर फेल्योर की वजह से मौत और ज़िन्दगी के बीच झूल रहा था, उनकी आँखें परेल की हाजी बच्चू अली आई बैंक को दान कर दी गयीं थीं।
विवेक तिवारी की हत्या से देश भौचक्का था और इस हत्या के बाद लोगों की संवेदनाएं विवेक तिवारी की पत्नी व मासूम बच्चियों के साथ थीं, उनका दुःख और क्रंदन देखा नहीं जा रहा था। ये हत्या देश में बहस का मुद्दा तो बनी ही थी साथ में उनकी पत्नी का रवैया भी चर्चा का विषय रहा, जिन्होंने लगातार बयानबाजियां कर मुआवज़े, नौकरी और योगी आदित्यनाथ से मिलने की मांग प्रमुखता से रखी थी।
यहाँ हालाँकि हेमंत करकरे की शहादत और विवेक तिवारी की हत्या का कोई मेल नहीं है, बात है तो सिर्फ हत्याओं और शहादतों के बाद किये जाने वाले राजनैतिक सौदेबाज़ियों और मुआवज़ों के समीकरण की।
किसी के लिए यही सब कुछ है तो किसी के लिए ये कुछ भी नहीं।।
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