भारत में वसीम रिज़वी ने इस्लाम मज़हब छोड़कर हिन्दू धर्म क्या अपना लिया गोदी मीडिया लहालोट हो गई और तो और News 18 ने बाक़ायदा एक प्रोग्राम कर उसे शीर्षक दिया “मुसलमान क्यों छोड़ रहे हैं इस्लाम ?” एंकर थे अमन चोपड़ा महोदय। आज की ही एक और खबर है कि मलयालम फिल्म निर्देशक अली अकबर भी इस्लाम धर्म छोड़ रहे हैं।

इन दोनों ख़बरों से गोदी मीडिया चीयर लीडर बन कर नाचने लगी है। यानि मुल्क में दो व्यक्तियों ने इस्लाम छोड़ दिया तो इस्लामोफ़ोबिक गोदी मीडिया को पूरी दुनिया के मुसलमान इस्लाम छोड़ते नज़र आने लगे ?

इन गोदी मीडिया वालों को ये नहीं दिखता कि देश में हिंदू धर्म में छुआ छूत और भेदभाव के शिकार हज़ारों दलित लगातार बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। इस पर प्रोग्राम क्यों नहीं किया जाता ? अभी 31 अक्टूबर 2019 को ही गुजरात में बड़े पैमाने पर दलितों ने धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपनाया था। यानी अपनी गुदड़ी में लगी आग और उठते धुंवे की फ़िक्र नहीं है सामने वाले के घर में दो एक फुस्स पटाखों की आवाज़ पर ही नाचने लगे।

मगर इस्लामोफोबिया के कुंवे में पड़े ये मेंढक आँखें खोलकर आंकड़े देखें तो पता चले कि दुनिया में इस्लाम छोड़ा नहीं बल्कि तेज़ी से अपनाया जा रहा है। यूरोप और अमरीका में इस्लाम तेज़ी से फ़ैल रहा है, और इस्लाम ही एक ऐसा मज़हब है जिसे लोग सबसे ज़्यादा अपना रहे हैं, 2010 में अमरीका में हुई धार्मिक संगणना के आंकड़ों के अनुसार अमरीका में सबसे तेज़ी से फैलने वाला मज़हब इस्लाम है।

और सबसे ख़ास बात ये कि 9 /11 हमलों के बाद इसमें काफी तेज़ी आयी है। यही कुछ हाल यूरोप का भी है, Pew Research के आंकड़ों के अनुसार यूरोप में भी इस्लाम तेज़ी से फ़ैल रहा है, यूरोपियन यूनियन जिसमें (नॉर्वे और स्विट्ज़रलेंड भी आता है) के देशों में मोटे तौर पर इनका प्रतिशत 3.8% से बढ़कर 4.9% पहुँच गया है।

आइये इसके लिए कुछ आंकड़े देखते हैं :

अमरीका में हर साल औसतन 20000 लोग इस्लाम क़ुबूल करते हैं।
ब्रिटेन में हर साल औसतन 5000 के लगभग लोग इस्लाम क़ुबूल करते हैं।
फ़्रांस में हर साल 4000-7000 के लगभग लोग इस्लाम क़ुबूल करते हैं।
जर्मनी में हर साल 4000 लोग इस्लाम क़ुबूल करते हैं।

ये आंकड़े विश्व चुनिंदा शक्तिशाली देशों के हैं, बाक़ी देशों में भले ही इसकी दर कम हो मगर इस्लाम धर्म अपनाया ही जा रहा है, जापान हो या फिर स्विट्ज़रलैंड। अगर केवल इन चारों देशों का 5000 के हिसाब से औसत निकले तो साल के 20000 होते है, हर महीने 1600 लोग इस्लाम क़ुबूल करते हैं और प्रतिदिन 54 लोग इस्लाम क़ुबूल कर रहे हैं। हर घंटे दो लोग इस्लाम क़ुबूल कर रहे हैं।

और यह सब बदलाव और तेज़ी 9 /11 हमलों के बाद ही हुई है, एक Report के अनुसार आज अमरीका में ही मुसलमानों की तादाद 9 /11 हमलों के बाद से दोगुनी है।

इसके पीछे की वजूहात पर नज़र डालेंगे तो कई फैक्टर्स नज़र आएंगे, 9 /11 हमलों के बाद अमरीका और यूरोप में मुसलमानो के खिलाफ नफरत का पहाड़ टूट पड़ा, सैंकड़ों गिरफ्तारियां हुईं, इनके खिलाफ नस्लीय हिंसा हुई, मस्जिदें जलाई गयीं, और इस्लामोफोबिया का क़हर पूरे अमरीका और यूरोप के मुसलमानो पर टूट पड़ा।

यहाँ बात इस्लामोफोबिया की आयी है तो इस पर भी रुक कर नज़र डाल लीजिये, इस लफ्ज़ को पैदा करने वाले और इसे शातिराना ढंग से दुनिया भर में फ़ैलाने के पीछे कई दक्षिणपंथी अमरीकी, इज़राईली और नव नाज़ी ग्रुप्स काम कर रहे हैं।

सेंटर फॉर अमेरिकन प्रॅाग्रेस द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में मुसलमानों का ख़ौफ़ फैलाने के लिए चलाये गये दस साल लंबे अभियान के पीछे एक छोटा सा समूह है जिसमें एक दूसरे से ताल्‍लुक रखने वाले कुछ संस्‍थान, ‘थिंक टैंक’, बुद्धिजीवी और ‘ब्‍लॉगर’ शामिल हैं।

130 पन्‍नों की Fear, Inc. The Roots of the Islamophobia Network in America  शीर्षक वाली रिपोर्ट में सात संस्थाओं की शिनाख्‍़त की गई है जिन्‍होंने चुपचाप 4 करोड़ 20 लाख डालर ऐसे व्‍यक्‍तियों और संगठनों को दिये जिन्‍होंने वर्ष 2001 से 2009 के बीच मुसलमानों के खिलाफ इस्लामोफोबिया मु‍हिम चलाई।

इनमें ऐसी वित्‍तपोषी संस्‍थायें शामिल हैं जो लंबे समय से अमेरिका में चरम दक्षिणपंथ से जुड़ी हुई हैं और कई यहूदी पारिवारिक संस्‍‍थायें भी शामिल हैं जिन्‍होंने इज़राइल में दक्षिणपंथी और उपनिवेशी समूहोंका समर्थन किया है, इनमें से ‘फीयर, इंक’ की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य कुछ इस तरह से हैं :-

Some of these foundations and wealthy donors also provide direct funding to anti-Islam grassroots groups. According to our extensive analysis, here are the top seven contributors to promoting Islamophobia in our country:

1. Donors Capital Fund.
2  Richard Mellon Scaife foundations.
3. Lynde and Harry Bradley Foundation.
4. Newton D. & Rochelle F. Becker foundations and charitable trust.
5. Russell Berrie Foundation.
6. Anchorage Charitable Fund and William Rosenwald Family Fund.
7. Fairbrook Foundation.

इस कुटिल इस्लामोफोबिया मुहिम को ऑक्सीजन तब मिली जब अमरीका में 9 /11 हमला हुआ, अमरीका सहित यूरोप में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा का बाज़ार गर्म हो गया, इस ‘इस्लामोफोबिया मुहिम’ के पीछे काम कर रहे लोगों ने इसे खूब भुनाया।

इनकी इस नफरती मुहिम को झटका तब लगा जब 2011 में नॉर्वे में आंद्रे ब्रेविक ने ऐसे ही इस्लामॉफ़ोबिक संगठनों की नफरती मुहिम से प्रेरित होकर 79 बेक़ुसूर लोगों को मौत की घाट उतार दिया था।

अमरीका और यूरोप सहित कई देशों में आंतरिक तौर पर इस तरह के मुस्लिम विरोधी, आब्रजक विरोधी, नस्ली हिंसा फ़ैलाने वाले दक्षिणपंथी संगठनों पर रोक और लगाम लगाने की कोशिशें की जाने लगीं।

अब वापस आते हैं अमरीका और यूरोप में तेज़ी से फैलते इस्लाम और इसकी वजूहात के बारे में, 9 /11 हमलों के बाद जब दुनिया भर में मुसलमानो के खिलाफ नफरत का बाज़ार गर्म था, तब वहां के मुसलमानों ने बहुत सब्र और तहम्मुल से काम लिया, ऐसी हज़ारों कहानियां हैं जिसमें मुसलमानो ने उस मुश्किल दौर में इस नफरती लहर से सलीक़े से टक्कर ली।

उन्होंने वहां के लोगों के गुस्से और नाराज़गी को समझा, उनके साथ उस दुःख की घडी में खड़े हुए, नफरत को दरकिनार करते हुए दीन पर क़ायम रहकर उन्हें अम्नो अमान का पाठ पढ़ाया, अपने आमाल से उन्हें दिखाया कि जो इस्लाम की भ्रांतियां वो मुसलमानो के खिलाफ दिमाग में लिए घूम रहे हैं वो सही इस्लाम नहीं है, सही इस्लाम हमसे सीखिये।

9 /11 के हमले के बाद भी अमरीका और यूरोप में कई और आतंकी हमले हुए, और वहां के मुसलमान हर बार वहां के लोगों के निशाने पर आये, मगर मुसलमानो ने हार नहीं मानी, वो हर बार इस नफरत की काट करने मिलकर एकजुट होकर हर मुल्क में एक साथ खड़े हुए, अपने खिलाफ लोगों के दिलों से इस्लाम के बारे में गलत फहमियां दूर कीं। वहां के मुसलमानों की इस मुहिम में वहां के ग़ैर मुस्लिम नागरिकों का भी भरपूर समर्थन मिला।

कहीं भी ले लीजिये, चाहे अमरीका हो, ऑस्ट्रेलिया हो, ब्रिटैन हो, स्पेन हो, फ़्रांस हो, जर्मनी हो, कहीं भी इस तरह की इस्लामॉफ़ोबिक लहर उठी है तो वहां के मुसलमानों ने इसे असल इस्लाम से ही ध्वस्त किया है।

ब्रिटैन के मुसलमानो को ही लीजिये, ब्रिटेन में करीब 30 लाख मुसलमान हैं जो देश की कुल जनसंख्या का 5% है, वहां की मुस्लिम कौंसिल ऑफ़ ब्रिटेन (MCB) ने 2015 में 20 मस्जिदों को लेकर #VisitMyMosque ‘मेरी मस्जिद में तशरीफ़ लाईये’ अभियान शुरू किया था, और तब से ये लगातार जारी है, अब इस अभियान में ब्रिटेन की 200 से ज़्यादा मस्जिदें शामिल हो गयीं हैं।

इस ‘Visit My Mosque’ मुहिम का मक़सद है इस्लामी नज़रिये से ही ‘इस्लामोफोबिया’ की काट, जितनी मस्जिदें हिस्सा लेती हैं उन सब में एक दिन ‘ओपन डे’ रखा जाता है, इस दिन मस्जिदों के दरवाज़े सभी के लिए खुल जाते हैं। मस्जिद में आने वाले लोगों के लिए चाय नाश्ते का इंतेज़ाम रहता है, उन्हें नमाज़ और उसके तरीकों के बारे में बताया जाता है, मस्जिद का दौरा कराया जाता है, साथ ही इस्लाम के प्रति उनके भ्रम, दुर्भावनाओं और भ्रांतियों पर खुलकर चर्चा होती है सवाल जवाब, वैचारिक बहस होती है और उनको दूर किया जाता है।

‘Visit My Mosque’ मुहिम ब्रिटेन के अलावा और भी यूरोपीय देशों सहित अमरीका में भी अपनाई जाने लगी है और इसे न सिर्फ सभी वर्गों का ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है, बल्कि राजनैतिक समर्थन भी हासिल हो रहा है, क्योंकि इससे देश में इस्लामोफोबिया का असर कम हो रहा है और सामाजिक समरसता बढ़ रही है। इस मुहिम और मुसलमानों के प्रयासों के चलते ही मुस्लिम अपने आमाल और नज़रिये से गैर मुस्लिमों को इस्लाम की सही तस्वीर पेश कर रहे हैं, और यही इसकी बड़ी वजह रही है कि यूरोपीय देशों और अमरीका में लोग इस्लाम क़ुबूल कर रहे हैं।

इसलिए इस्लामॉफ़ोबिक रतौंधी से ग्रस्त गोदी मीडिया से निवेदन है कि ऐसे प्रायोजित प्रोग्राम करने से पहले थोड़ा गूगल ही कर ले, या फिर केवल एक आँख खोलकर दुनिया के इन आधिकारिक आंकड़ों पर नज़र डाले फिर सच बताने की हिम्मत भी करें।

और अंत में गोदी मीडिया और अमन चोपड़ा जैसों के लिए अर्ज़ किया है कि :

अपनी सूरत भी देखा करो कभी,
आईना हमको दिखाने वाले !

तारीख़ गवाह है देखो तुम भी,
मिट गए इस्लाम को मिटाने वाले !!
(शादाब अज़ीमाबादी)

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