आज बुलंदशहर में गौकशी के विरोध में सड़कों पर उतरी उन्मादी भीड़ ने जो किया उससे पूरा देश फिर से सहम गया है, भीड़ का ये उन्माद इस सरकार में नया बिलकुल नहीं है, इसी आवारा उन्मादी भीड़ द्वारा मॉब लिंचिंग में मारे गए इंसानों के आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि इसे कहीं न कहीं अभयदान या संरक्षण मिला हुआ है, कहीं किसी से इसे खाद पानी मिल रहा है तभी इसके हौंसले इतने बुलंद हैं कि ये क़त्ल करते वक़्त न आम आदमी देखती है ना ही एक पुलिस अधिकारी।
इस आवारा और उन्मादी भीड़ के मनोविज्ञान और हौंसले के संकीकरण को समझने के लिए ज़्यादा नहीं थोड़े पीछे चलते हैं, राजस्थान के सवाईमाधोपुर में 18 मार्च 2011 को भीड़ ने मानटाउन के एसएचओ फूल मोहम्मद को शाम के समय जिंदा जला दिया था, राजनैतिक दबाव के चलते जिनके क़ातिल आज भी आज़ाद हैं।
उसके बाद आते हैं अप्रेल 2013 में ऐसी ही उन्मादी भीड़ द्वारा यूपी के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा में डीएसपी जिया उल हक की हत्या कर दी जाती है, इस क़त्ल को भी राजनैतिक दबाव के चलते उलझा दिया गया और क़ातिल आज भी आज़ाद हैं।
उसके बाद आते हैं यूपी के ही सहारनपुर में ऐसी ही उन्मादी भीड़ द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार के घर पर ऐसी ही उन्मादी और प्रायोजित भीड़ द्वारा किये गए हमले और ढाई घंटे तक तोड़फोड़ के बाद उनकी पत्नी का बयान पूरे देश ने देखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैंने अपने 6 और 8 साल के बच्चों की आंखों में जो खौफ देखा, उसे भूल नहीं सकती। पहले कभी वो इतनी जोर-जोर से चीखकर नहीं रोए, जितना उस शाम को।”
– ”दूसरी और तीसरी क्लास में पढ़ने वाले मेरी बेटी और बेटे की आंखें रो-रो कर लाल हो चुकी थीं। कोठी में पूरी तरह से सांसद और उनके समर्थकों का कब्जा हो चुका था। सांसद के समर्थक तोड़फोड़ कर कैंप ऑफिस और आवास के बीच के दरवाजे को खोल कर अंदर गैलरी तक घुस आए थे। उपद्रवियों को देख दोनों बच्चे ये कहते हुए रोने लगे कि मम्मी, पापा को फोन करके जल्दी बुलाओ डर लग रहा है।”
इस हमले और तोड़फोड़ के भी आरोपी सभी आज़ाद हैं, इसके बाद ऐसी ही भीड़ को ऑक्सीजन देने वाली एक और आखरी घटना शायद सभी को याद हो, जब झारखंड मॉब लिंचिंग के आरोपियों को ज़मानत मिलने पर केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने घर बुलाकर मिठाई और फूल मालाओं से किया स्वागत किया था।
ऐसी ही उन्मादी आवारा भीड़ द्वारा मारे गए अख़लाक़ से लेकर अकबर खान तक के हत्यारों के समर्थन में सियासी दल और धार्मिक संगठन उठ खड़े नज़र आये थे, तो फिर इस उन्मादी आवारा भीड़ को हौंसला क्यों ना मिले ?
अभी भी समय है कि इस तरह की ब्रेन वाश की गयी उन्मादी भीड़ को पालने पोसने की ‘परम्परा’ बंद की जाये, भीड़ में दिमाग नहीं होता ये किसी की सगी नहीं होती।
कभी शायर नवाज़ देवबंदी ने इसी लिए कहा था कि :-
जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है ।
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया ,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है ।।
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