اے دوست بتا
کیسا ہے
کیا محلّہ اب بھی ویسا ہے ؟
وہ لوگ پرانےکیسے ہیں ؟
کیا اب بھی سب وہاں رہتے ہیں ؟
جن کو میں چھوڑ گیا
دوکان تھی ایک چھوٹی سی
کیا بوڑھا چاچا ہوتا ہے ؟
کیا چیزیں اب بھی ہیں ملتی
بسکٹ ، پاپڑ ، گولی کھٹی میٹھی ؟
بیری والے گھر میں اب بھی
کیا بچّے پتھر مارتے ہیں ؟
بوڑھی امّاں کیا اس پر
اب بھی شور مچاتی ہے ؟
بجلی جانے پر اب بھی
کیا خوشی منائی جاتی ہے
پھر چھپن چھپائی ہوتی ہے ؟
پاس کسی کے ہونے پر کیا
مٹھائی بانٹی جاتی ہے ؟
بارش کے پہلے قطرے پر
کیا ہلّہ گلّہ ہوتا ہے ؟
غم میں کسی کے اب بھی
کیا پورا محلّہ روتا ہے ؟
گلی کے کونے میں بیٹھے
کیا دنیا کی سیاست ہوتی ہے ؟
گڈے گڑیوں کی اب بھی
کیا اب بھی شادی ہوتی ہے ؟
اے دوست بتا کیسا ہے
کیا محلّہ اب بھی ویسا ہے ؟
کیا اب بھی شام کو ساری سکھیاں
دن بھر کی کہانی کہتی ہیں ؟
پرلی چھت سے کیا چھپ چھپ کر
ان کو کوئی دیکھتا ہے ؟
کیا ان میں سے اب بھی کسی میں
خط و کتابت ہوتی ہے ؟
وہ عید کے دن بیل بکروں کا میلہ
اب بھی گھر گھر سجتا ہے ؟
خاموش کھڑا ہے کیوں دوست میرے
کیوں سر جھکا کر روتا ہے ؟
ہلکے ہلکے لفظ دبا کر کہتا ہے
لوگ پرانے چلے گئے
جیسے تو وہاں سے چلا گیا
بوڑھے چاچا ، ماما ، خالو
خالہ ، چاچی ، امّاں
ملک عدم کو لوٹ گئے
گھر بکے تقسیم ہوئے
سب اپنے اپنے حصّے لے کر
اپنے مکاں بنا بیٹھے
انجانوں کی بستی بن گئی
وہ محلّہ اپنا ہوا پرایا
سب کے اپنے اپنے گھر
کئی منزل ہوگئے سب ہی گھر
پتھروں سے سب کے دل گئے بھر
اب لوٹ کے تو بھی کیا جائے گا
-بس دل بھر بھر ائے گا
ऐ दोस्त बता कैसा है ?
क्या मोहल्ला अब भी वैसा है ?
वो लोग पुराने कैसे हैं ?
क्या अब भी सब वहां रहते हैं ?
जिनको मैं छोड़ गया-
दुकान थी इक छोटी सी ?
क्या बूढा चाचा होता है ?
क्या चीज़े अब भी मिलती हैं ?
बिस्किट, पापड़, गोली खट्टी मीठी –
बेरी वाले घर में अब भी –
क्या बच्चे पत्थर मारते हैं ?
बूढी अम्मा अब भी क्या इस पर शोर मचाती है ?
बिजली जाने पर क्या अब भी ख़ुशी मनाई जाती है ?
फिर छुप्पन छुपाई होती है ?
पास किसी के होने पर क्या मिठाई बाटी जाती है ?
बारिश के पहले क़तरे पर क्या हल्ला गुल्ला होता है ?
ग़म में किसी के क्या अब भी पूरा मोहल्ला रोता है ?
गली के कोने में बैठे क्या दुनिया की सियासत होती है ?
गुड्डे गुड़ियों की क्या अब भी शादी होती हैं ?
ऐ दोस्त बता कैसा है ?
क्या मोहल्ला अब भी वैसा है ?
क्या अब भी शाम सारी सखियाँ दिन भर की कहानी कहती हैं ?
परली छत से क्या छुप छुप कर क्या अब भी उनको कोई देखता है ?
क्या उनमें से अब भी किसी से खतो किताबत होती है ?
वो ईद के दिन बैल बकरों का मेला अब भी घर घर सजता है ?
खामोश खड़ा है क्यों दोस्त मेरे ?
क्यों सर झुककर रोता है ?
हलके हलके लफ्ज़ दबाकर कहता है –
लोग पुराने चले गए-
जैसे तू वहां से चला गया-
बूढ़े चाचा, मामा, खालू, खाला, चाची, अम्मा-
मुल्के अदम को लौट गए-]
घर बाइक तक़सीम हुए –
सब अपने अपने हिस्से लेकर-
अपने मकां बना बैठे –
अनजानों की बस्ती बन गयी –
वो मोहल्ला अपना, हुआ पराया –
सबके अपने अपने घर –
कई मंज़िल हो गए सभी घर –
पत्थरों के सबके दिल गए भर –
अब लौट के तू भी क्या जाएगा-
बस दिल भर भर आएगा|
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