विश्व में इस्लाम विरोधी दक्षिणपंथी संगठन कई बार पैगम्बर मोहम्मद ﷺ को बदनाम करने के लिए कई तरह के हथकंडे करते रहे हैं, अगस्त में ही गीर्ट विल्डर्स ने घोषणा की थी कि वो 10 नवम्बर को पैगम्बर मोहम्मद रसूलल्लाह ﷺ का कार्टून कांटेस्ट आयोजित करेगा, मगर मुसलमानों के प्रचंड वैश्विक विरोध के चलते उन्हें ये कार्टून कांटेस्ट रद्द करना पड़ा था।
उसके बाद उसने फिर तीन दिन पहले अपने ट्वीटर हैंडल से आपत्तिजनक ट्वीट कर इस मुद्दे को हवा दी, जिस पर विश्व के मुस्लिम समुदाय में गुस्सा और आक्रोश पैदा हो गया था।
इसी तरह की अन्य घटनाओं को लेकर मंगलवार 23 अक्टूबर 2018 को स्ट्रासबर्ग स्थित यूरोपियन मानवाधिकार न्यायालय (ECHR) ने अपने एक आदेश में कहा है कि पैगम्बर मोहम्मद रसूलल्लाह ﷺ को बदनाम करना अभिव्यक्ति की आज़ादी बिलकुल नहीं कही जा सकती।
Al Arabiya की खबर के अनुसार यूरोपियन मानवाधिकार न्यायालय का ये फैसला 7 जजों के पैनल ने 2009 के एक मामले में दिया है जो कि ऑस्ट्रिया की श्रीमती एस से जुड़ा हुआ था, इस महिला ने 2009 में पैगम्बर मोहम्मद रसूलल्लाह ﷺ को बदनाम करने की नियत से “Basic Information on Islam,” विषय पर दो सेमिनार आयोजित किये थे, और उन सेमिनार्स में पैगम्बर मोहम्मद रसूलल्लाह ﷺ की शादी को लेकर बहुत ही विवादास्पद बातें कही थीं।
2011 में ऑस्ट्रियन कोर्ट ने इस महिला को दोषी ठहराया था और उस पर उसे 480 यूरो (548 डॉलर) जुर्माना लगाया था, तब उस महिला ने तर्क दिया था कि ऐसा करना उसकी अभिव्यक्ति का अधिकार है। वो महिला इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक भी गयी मगर ये निर्णय बदला नहीं गया।
यूरोपियन मानवाधिकार न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा या छूट धार्मिक भावनाओं को भड़काने तक नहीं होना चाहिए।
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