मैंने अपने प्राइम टाइम में आने से पहले देखा कि कुछ चैनलों के एंकर्स खूनी तेवरों में बोलने लगे हैं कि हमें निंदा नहीं चाहिए, हमें बदला चाहिए, लिया जा सकता है सरकार सोच रही है, इस वक़्त ऐसी भाषा से सावधान रहना चाहिए, इन एंकरों के तेवरों की राजनीति को आप समझिये, सरकार की भाषा इस वक़्त संयम से भरी है, मगर इन एंकरों को ऐसे वक़्त का इंतज़ार क्यों रहता है जब वो ललकारने और मारने जैसी बातें करने लगते हैं ? किसी की शहादत का इस्तेमाल TRP के लिए नहीं होना चाहिए.

इन एंकरों से आप पूछिए जब 13 दिसंबर को तिरंगा झंडा लेकर अर्ध सैनिक बलों के ये जवान हज़ारों की संख्या में जमा हुए तब भी क्या ये एंकर्स उनकी मांगों के समर्थन में इसी तरह चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे, ललकार रहे थे ?

ये जवान क्या मांग रहे थे, वन रैंक वन पेंशन मांग रहे थे, हर ज़िले में अपने लिए डिस्पेंसरी मांग रहे थे, सेना की तरह कैंटीन में छूट मांग रहे थे, ये भी अपना दावा उसी बहादुरी और शहादत के दम पर कर रहे थे जिनके नाम पर एंकर्स ने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया है.

ये (अर्ध सैनिक बलों के जवान) जब अपनी परेशानी को लेकर मीडिया को बुलाते हैं तो मीडिया क्यों नहीं जाता वो क्यों गायब हो जाता है ? ऐसे मौक़ों पर ये मीडिया क्यों हमलावर हो जाता है ? उनसे पूछना चाहिए कि जब अर्ध सैनिक बलों के जवान अपनी समस्यायों को लेकर आते हैं तो ये कहाँ चले जाते हैं ?

उनसे पूछना चाहिए कि जब अर्ध सैनिक बलों के सैनिकों को ‘शहीद’ का दर्जा नहीं जाता तो क्या आपने इन लाखों अर्ध सैनिक बलों के परिवारों के लिए इन्हे लड़ता देखा है ?

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