अंग्रेजी का एक शब्द है Mass Hysteria, जिसका अर्थ तो साधारण है मगर मनोवैज्ञानिक तौर पर इसकी व्याख्या बड़ी गहरी और विस्तृत है। हिंदी में इसे सामूहिक उन्माद, भ्रम या कल्पना कह सकते हैं, इसे एक मनोवैज्ञानिक विकार भी कह सकते हैं, कमज़ोर दिमाग के लोग इसके शिकार जल्दी हो जाते हैं।

इसका ताज़ा उदाहरण कश्मीर फाइल्स नामक फिल्म है, जिसे देखकर दर्शकों से लेकर पार्टी विशेष के नेताओं तक हर कोई रोता हुआ नज़र आ रहा है, दर्शक सिनेमा हॉल में रो रहे हैं, नेता मीडिया कैमरों के सामने रो रहे हैं। ये मॉस हिस्टीरिया ही है। इसे राजनैतिक हित साधने के लिए सुनियोजित रूप से संचार माध्यमों के द्वारा फैलाया जा रहा है, पहले से ही देश में नफरत और उन्माद के मॉस हिस्टीरिया से ग्रस्त लोग इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं, ये सामूहिक उन्माद बन गया है, किसलिए बना है बताने की ज़रुरत नहीं है।

21 जुलाई 2006 को प्रिंस नाम का एक बच्चा 60 फ़ीट गहरे बोरवेल में गिर गया था, जिसे 50 घंटे बाद सेना ने सकुशल बोरवेल से बाहर निकाला था, तब एक न्यूज़ चैनल ने प्रिंस की सलामती के लिए दर्शकों से पूजा करने, भजन कीर्तन करने और दुआएं मांगने जैसा मॉस हिस्टीरिया पैदा किया था। जनता देखा देखी रात भर जाग कर प्रिंस के लिए भजन कीर्तन और दुआएं करने लगी, न्यूज़ चैनल ने इस सब को लाइव दिखाया था। उसके बाद सैंकड़ों बच्चे बोरवेल में गिरे कुछ बचे तो कई बेमौत मारे गए, मगर किसी न्यूज़ चैनल ने उनकी खबर तक बताने का कष्ट नहीं किया।

अन्ना आंदोलन भी सुनियोजित रूप से पैदा किया मॉस हिस्टीरिया का बड़ा प्रयोग ही था, हर कोई ‘मैं भी अन्ना’ बना हुआ था, जो अन्ना के साथ नहीं वो देशद्रोही की तरह देखा जाने लगा था। आजकल चुनाव सड़कों पर कम और मनौवैज्ञानिक तरीके से ज़्यादा लड़ा जाता है, राजनीतिक दल कई तकनीकी प्रयोग और रिसर्च के बाद मुद्दों के आधार पर जनता को मनोवैज्ञानिक तौर पर अपने पाले में लाने के लिए ब्रेन वाश करते हैं, उनमें डर का माहौल पैदा किया जाता है, ऐसे में जनता करिश्माई लीडरशिप के सामूहिक भ्रम में किसी नेता विशेष या पार्टी विशेष के अंध समर्थक बन जाते हैं। ये भी मॉस हिस्टीरिया का ही एक उदाहरण है।

दुनिया भर में इस मॉस हिस्टीरिया के सैंकड़ों उदाहरण हैं, इंग्लैंड और वेल्स के कुछ हिस्सों में दिसंबर 1688 में गौरवशाली क्रांति के दौरान झूठी अफवाह फैलाई गई थी कि आयरिश सैनिक अंग्रेजी शहरों को जला रहे हैं और नरसंहार कर रहे हैं, इस अफवाह ने कम से कम 19 काउंटियों में बड़े पैमाने पर दहशत पैदा कर दी थी और हजारों लोगों ने खुद को हथियारबंद कर लिया था।

जेएफ हेकर की 1844 की किताब ‘द एपिडेमिक्स ऑफ द मिडल एज’ में बताया गया है कि फ्रांसीसी कॉन्वेंट में रहने वाली एक नन ने एक दिन एक बिल्ली की तरह म्याऊं म्याऊं करना शुरू कर दिया, जल्द ही कॉन्वेंट में रहने वाली बाक़ी ननों ने भी म्याऊं म्याऊं करना शुरू कर दिया जिससे क़स्बे के निवासी चकित रह गए। यह सिलसिला तब तक नहीं रुका जब तक पुलिस ने ननों को कोड़े मारने की धमकी दी।

मॉस हिस्टीरिया पर भारत की बात करते हैं तो कई उदाहरण सबके सामने से गुज़रे होंगे, 2001 में भारत के कई इलाक़ों में ‘मुंह नोचवा’ या ‘मंकी मैन’ के आतंक ने मॉस हिस्टीरिया पैदा कर दिया था। पुरातन काल में संचार माध्यम आज जितने नहीं थे इसलिए मॉस हिस्टीरिया सीमित तौर पर फैलता था, मगर वर्तमान सदी में संचार माध्यमों, न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया के चलते मॉस हिस्टीरिया के शातिर खिलाड़ी सुनियोजित रूप से करोड़ों लोगों में मॉस हिस्टीरिया फैला सकते हैं।

मुंह नोचवा के बाद चोटी कटवा का मॉस हिस्टीरिया फैला था, उसके बाद 2015 में बिहार में आये भूकंप के दौरान चौका बेल, उल्टा चाँद और पीने का पानी ज़हरीला होने का मॉस हिस्टीरिया फैला था। आज भी भारत के कई राज्यों में किसी भी महिला को डायन बताकर मॉस हिस्टीरिया फैला कर मार डालने की घटनाएं होती रहती हैं।

19 अगस्त 2006 को माहिम (मुंबई) में समुद्री पानी के मीठा होने की अफ़वाह ने मॉस हिस्टीरिया फैला दिया था, इसे एक सूफी संत मक़दूम शाह बाबा का ‘चमत्कार’ बताया गया था, फिर क्या,था वहाँ लोगों का ताँता लग गया था, लोगों में पानी पीने की होड़ लग गई। धीरे धीरे लोगों ने डब्बों, बोतलों या फिर जैसे बन पड़ा वैसे पानी लेने टूट पड़े थे।

पुलिस प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे, लोगों को घोषणा कर कर के पानी समुद्र का पानी नहीं पीने की अपीलें की गयीं, मगर किसी पर असर नहीं हुआ था, यह खबर देश के कई न्यूज़ चैनल्स पर लाइव भी दिखाई गयी थी।

देश में मूर्तियों को दूध पिलाने का मॉस हिस्टीरिया बार बार काम में लिया जाता रहा है, संचार माध्यम विशेष रूप से TRP के भूखे न्यूज़ चैनल्स इस मॉस हिस्टीरिया में पेट्रोल डालकर मज़े लेते हैं। 1995 में गणेश जी की मूर्तियों द्वारा दूध पीने की घटना को भी विकिपीडिया में मॉस हिस्टीरिया घटनाओं में दर्ज किया गया है।

देश में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी मॉस हिस्टीरिया का ही नतीजा है, कभी गो रक्षा के बहाने तो कभी बच्चा चोरी के बहाने मॉब लिंचिंग कर उसके वीडियोज़ सोशल मीडिया पर डालने जैसी सैंकड़ों घटनाएं मॉस हिस्टीरिया ही है।

देश में किसी समुदाय विशेष के प्रति नफरत पैदा करने का मॉस हिस्टीरिया आम हो चला है इसमें मीडिया और सोशल मीडिया अहम् रोल निभा रहा है। फेक न्यूज़ भी मॉस हिस्टीरिया की श्रेणी में ही आती हैं। सरकार या सरकार की नीतियों से असहमत लोगों और संगठनों के ख़िलाफ़ मॉस हिस्टीरिया बखूबी काम कर रहा है। आप दो शब्द सरकार के या उसकी नीतियों के विरुद्ध लिख दो एक पूरी भीड़ हमलावर होकर पोस्ट पर टूट पड़ेगी, सोशल मीडिया पर सरकार से असहमत महिला पत्रकारों को प्रताड़ित करने की सैंकड़ों घटनाएं सामने आ चुकी हैं, कई गिरफ्तारियां भी हुईं हैं मगर ये मॉस हिस्टीरिया बढ़ता ही जा रहा है, इस मॉस हिस्टीरिया को राष्ट्रवाद के रैपर में लपेट कर परोसा गया है।

CAA NRC आंदोलन और शाहीन बाग़ आंदोलन के दौरान भी शातिर खिलाडियों द्वारा बड़ा मॉस हिस्टीरिया आज़माया गया था, ‘गोली मारो सालों को’ जैसे नारे लगाए गए था, और नतीजे में CAA NRC के विरोध में जामिया स्टूडेंट्स के पैदल मार्च पर रामभक्त गोपाल नामक युवक ने फायरिंग की थी, शाहीन बाग़ में घुसकर कपिल गुर्जर नामक युवक ने फायर किया था।

कोरोना की पहली लहर के प्रारंभ में जनता से थालियां तालियां और बर्तन बजवाना भी मॉस हिस्टीरिया ही था, जिसका नमूना बर्तनों से सर पीटते, टीन की चद्दरों को लाठियों से पीटते और जुलूस निकाल कर बम-पटाखे फोड़ कर गो कोरोना गो पर डांस करते मॉस हिस्टीरिया से ग्रसित लोगों के ड्रामे देश ने देखे हैं।

कुल मिलाकर देश में राजनैतिक हित साधने के लिए बार बार मॉस हिस्टीरिया पैदा कर वृहद् सामूहिक उन्माद पैदा किया जाता रहा है, मॉस हिस्टीरिया से पीड़ित लोग ये नहीं जानते कि बार बार इस मनोवैज्ञानिक प्रयोग के ‘गिनी पिग’ बनने से वो मनोरोगी बनने की कगार पर पहुँच चुके हैं।

मॉस हिस्टीरिया के बारे में विकिपीडिया पर विस्तार से पढ़ सकते हैं।

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