हालांकि बांग्लादेश के विभाजन के समय का ये फोटो प्रतीकात्मक है मगर कहीं न कहीं ये दिल्ली दंगों में घटित एक शर्मनाक घटना का प्रतीक है। वो ये कि दिल्ली दंगों में एक और गंभीर बात सामने आई है कि उन्मादी भीड़ द्वारा ज़ीरो ग्राउंड पर जाकर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को रिपोर्टिंग करने से रोका गया, उनका नाम पूछा गया, धर्म पूछा गया, बुरी तरह से मारा पीटा गया, कैमरे तोड़े गए, रिपोर्टिंग करने के दौरान उनका पीछा किया गया, कई जगह फोटोग्राफी करने से रोका गया।

यहाँ तक कि भीड़ द्वारा कई पत्रकारों की पेंट्स उतरवा कर ‘धर्म चेक’ किया गया, किसी के तिलक लगाए गए, उनकी गाड़ियों कि तलाशियाँ ली गईं, उसके बाद रिपोर्टिंग करने की इजाज़त दी गई, इनमें कई बड़े मीडिया समूहों के पत्रकार भी थे, समझ सकते हैं कि इसके बाद भयभीत पत्रकारों ने ग्राउंड ज़ीरो से दंगों पर किस तरह से और कैसी रिपोर्टिंग की होगी।

यहाँ उन मीडिया समूहों के पत्रकारों के नाम बताने की ज़रुरत नहीं है जिनके साथ ये घृणित और शर्मनाक घटनाएं हुई हैं, सभी ने इस बारे में ये ख़बरें पढ़ी होंगी। मगर इस कारनामें के शिकार कई निष्पक्ष पत्रकार भी हुए, कह सकते हैं कि अपने पेशे से गद्दारी करने वालों की हरकतों का खामियाज़ा उन्हें भी भुगतना पड़ा।

पत्रकारों के साथ घटित इन घटनाओं की ख़बरों से देश में हड़कंप मच गया, मगर मीडिया ने इसपर हल्ला नहीं किया, वजह साफ़ है, दिन रात हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद कर, नफरत का ज़हर फ़ैलाने वाली सांप्रदायिक मीडिया ही खुद इसकी ज़िम्मेदार है।

याद हो कि मई 2018 को कोबरोपोस्ट ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था जिसका नाम था ‘ऑपरेशन 136’ जिसके दो पार्ट थे, ‘पार्ट – 1’ और पार्ट – 2, इस स्टिंग ऑपरेशन के दोनों पार्ट्स में दिखाया गया था कि किस तरह से देश के कई बड़े और नामी मीडिया समूह पैसे लेकर ‘हिंदूवादी एजेंडे’ के तहत खबरे चलाने के लिए तैयार हो गए थे।

कोबरा पोस्ट के रिपोर्टर पुष्प शर्मा ने ‘हिंदुत्व एजेंडा’ चलाने के नाम पर करोड़ों रूपए के विज्ञापन का प्रलोभन दिया ओर सब के सब मीडिया समूह इस बात के लिए तैयार दिखे थे, कुछ मीडिया समूहों के मालिक और कर्मचारियों ने बताया था कि वे खुद RSS से जुड़े रहे हैं और हिंदुत्ववादी विचारधारा से प्रभावित हैं इसलिए उन्हें इस एजेंडे पर काम करने में खुशी होगी।

कोबरा पोस्ट के उस स्टिंग में अधिकांश मीडिया समूह लाखों करोड़ों के बदले न सिर्फ ‘हिंदुत्व एजेंडा’ चलाने बल्कि सरकार विरोधियों के चरित्र हनन और चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए भी तैयार हो गए थे, और इसके लिए दिए जाने वाले पैसों को काले धन के रूप में लेने को भी तैयार थे।

दैनिक भास्कर ने तो इस स्टिंग पर हाई कोर्ट जाकर रोक लगवाई थी, भारतीय मीडिया के बिकते ज़मीर ओर कोबरोपोस्ट के उस स्टिंग ने ‘न्यू इंडिया’ में प्रचलित ‘गोदी मीडिया’ के नाम को सार्थक साबित कर दिया था, उस स्टिंग ऑपरेशन के बारे में और किस किस मीडिया हाउस ने कितने कितने पैसों में नैतिकता का सौदा किया इसके बारे में विस्तार से The Wire पर पढ़ सकते हैं। या फिर इस स्टिंग के वीडियोज़ यूट्यूब पर Operation 136 Cobrapost के नाम से सर्च करके देख सकते हैं।

भारत लोकतंत्र के चौथे खम्बे कहे जाने वाले मीडिया के नैतिक चरित्र के पतन की पराकाष्ठा का दौर साफ़ देख रहा है, खुद मीडिया भी इस पतन की सजा भुगत रही है, ये किसी भी धर्म निरपेक्ष लोकतान्त्रिक देश के लिए गंभीर खतरे का संकेत है कि उसके एक खम्बे के साथ सड़कों पर नंगा नाच किया जा रहा है और सरकार तथा प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है खुद चौथा खम्बा ही इसके विरोध में सरकार से सवाल नहीं कर पा रहा।

अभी भी समय है कि मीडिया इन घटनाओं से सीख लेकर अपने नैतिक पैमाने ठीक कर ले वर्ना आने वाले समय में सड़कों पर नाम पूछकर और पेंट उतारकर धर्म चेक करने के बाद दंगों की रिपोर्टिंग करने देने वाली भीड़, आने वाले दिनों में टीवी स्टूडियो में सर पर डंडा लेकर खड़े होकर ‘मनचाही’ ख़बरें प्रसारित कराया करेगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

(फोटो प्रतीकात्मक है, साभार गूगल)

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