नसीरुद्दीन शाह साहब आप ने आज बयान दिया है कि ”मुझे इस बात से डर लगता है कि अगर कही मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और उनसे पूछा जाए कि तुम हिंदू हो या मुसलमान ? मेरे बच्चों के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा. पूरे समाज में ज़हर पहले ही फैल चुका है, आज देश में पुलिस ऑफिसर की मौत से ज़्यादा अहमियत गाय की है।”

नसीर साहब आप बिलकुल गलत हैं, देश में आज़ादी के बाद या कहें कि 70 साल में पहली बार ही तो गंगा जमनी संस्कृति और सहिष्णुता की बाढ़ आयी है, 70 सालों से तो देश में साम्प्रदायिकता, असहिष्णुता और धार्मिक उन्माद फैला हुआ था, 2014 के बाद से ही तो देश में चारों ओर सौहार्द सामाजिक समरसता की लहर चली है।

न मानें तो आपको सबूत देता हूँ, इस सौहार्द वाली सरकार के सत्ता में आते ही 2 जून 2014 को पुणे में मोहसिन शेख को भीड़ ने अकेला पाकर इस गंगा जमनी संस्कृति की लहर से परिचित कराया था।

उसके बाद तो शांति और धार्मिक सौहार्द की लहर पूरे देश में चल पड़ी जो अब तक जारी है, मोहसिन शेख इस लहर की भेंट चढ़ा तो फिर ये लहर पूरे देश में फ़ैल गयी, इसी सहिष्णु और सौहार्द की लहर ने दादरी के अख़लाक़ को प्रेम का पाठ पढ़ाया।

70 साल में पहली बार आयी इस प्यार मोहब्बत की लहर ने पूरे देश का डंका विदेशों तक बजा दिया, आप न माने तो #InternationalShame हैशटैग पर क्लिक कर देख सकते हैं कि दादरी की ‘शांतिपूर्ण’ घटने ने किस तरह से विदेशी मीडिया में देश का नाम ‘ऊंचा’ किया था। या फिर BBC के इस LINK पर क्लिक कर उस बजते डंके को प्रत्यक्ष सबूतों के साथ देख सकते हैं।

अब आगे चलिए इस सहिष्णुता, सौहार्द और प्यार मोहब्बत की लहर ने भारत के कोने कोने में पांव फैला लिए, आप कहते हैं कि “आज देश में पुलिस ऑफिसर की मौत से ज़्यादा अहमियत गाय की है।” नहीं गाय की अहमियत नहीं इंसान की अहमियत है, देखिये ना सुबोधकुमार की हत्या के आरोपी को बचाया जा रहा है।

आप कहते हैं कि गाय की अहमियत हैं इंसान की नहीं, गलत देखिये ये सभी 25 लोग जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, गाय के बजाय इंसानों की अहमियत बताने के लिए ही के लिए अपनी जान देकर मर गए, ये सभी 25 मृतक इसी बात पर अड़े थे कि गाय की अहमियत है, मगर इस ‘सौहार्द की लहर’ के दावेदारों ने इन्हे समझाया कि नहीं गाय की अहमियत नहीं है इंसानों की अहमियत हैं, मगर ये 25 लोगो नहीं माने, नतीजा सामने है, ये सभी 25 बेक़ुसूर लोग ‘गाय पर इंसानों को प्राथमिकता नहीं देने’ की वजह से आत्मग्लानि के चलते ख़ुदकुशी करके मर गए :

1-अख़लाक़ (दादरी उत्तरप्रदेश)
2- अय्यूब (गुजरात)
3-ज़ाहिद (हिमांचल प्रदेश)
4- पहलू खान (मेवात हरियाणा)
5-मज़लूम अंसारी (झारखंड)
6-छोटू खान (झारखंड)
7- मिन्हाज़ (बिहार)
8- शेख सज्जू (झारखंड)
9- शेख सेराज (झारखंड)
10-नईम खांना (झारखंड)
11- शेख हलीम (झारखंड)
12- इब्राहिम (तावडू मेवात)
13- रशीदन (तावडू मेवात)
14- पप्पू मिस्त्री (गोंडा) उत्तरप्रदेश
15-मोहम्मद यूनुस (नसीरपुर मऊ)
16-मोहम्मद ज़फ़र (प्रतापगढ़) राजस्थान
17- जुनैद (बल्लभगढ़) हरियाणा
18-वाहिद (सिकंदराबाद उत्तर प्रदेश)
19-शकील क़ुरैशी (जेवर उत्तरप्रदेश)
20- इमरान (झारखण्ड) हत्या
21- अयूब पंडित (श्रीनगर)
22- क़ासिम (पिलकुआ)
23- फरदीन खान
24- मुहम्मद सालिक (झारखंड)
25- अकबर खान (अलवर) राजस्थान

अब आगे चलिए देश में 70 साल में पहली बार आयी इस सहिष्णुता, धार्मिक सौहार्द और प्यार मोहब्बत की लहर ने विदेशों में भी भारत का मान बढ़ाया है, न माने तो  India Spend की इस खबर को देखिये जिसमें कहा गया है कि 2014 के बाद से इस सौहार्द की लहर (हेट क्राइम्स) में 41 % की चिंताजनक वृद्धि हुई है।

शांति और सौहार्द की इस लहर पर एक रिपोर्ट Gulf News ने भी प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि सौहार्द वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से सौहार्द की घटनाओं (सांप्रदायिक घटनाओं) में 28 फीसदी वृद्धि हुई है जो कि यूपीए सरकार के उच्च स्तर से कम है। गृहराज्य मंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा में गौरक्षा के नाम पर हुई हिंसा पर बयान देते हुए बताया था कि सौहार्द की घटनाओं (सांप्रदायिक हिंसा) में पिछले तीन वर्षों से 2017 तक 28 फीसदी की वृद्धि हुई है।

उत्तर प्रदेश इन ‘सौहार्द की घटनाओं’ के मामले में टॉप पर है, 2015 में 130 % की वृद्धि के साथ (‘सौहार्द की घटनाओं’) हेट क्राइम्स के 60 मामले दर्ज हुए थे, जो कि 2016 में 116 हो गए।

पिछले एक दशक में, सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश (यूपी) में सबसे ज्यादा सौहार्द की घटनाएं, 1,488 दर्ज की गई हैं। 26 जनवरी, 2018 को, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कासगंज में (‘सौहार्द की घटनाओं’) सांप्रदायिक हिंसा की घटना दर्ज की गई थी, जिसमें, एक 22 वर्षीय युवा ( चंदन गुप्ता ) की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इसमें हिंसा के सिलसिले में कम से कम 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिससे गणतंत्र दिवस पर एक अनधिकृत मार्च निकला था, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने 27 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

उत्तर प्रदेश में (‘सौहार्द की घटनाओं’) सांप्रदायिक घटनाओं में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े 2014 में 133 से बढ़कर 2017 में 195 हुआ है। वर्ष 2013 में सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएं दर्ज की गई है, करीब 247। पिछले दशक में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में उत्तर प्रदेश के लिए आंकड़े सबसे ज्यादा रहे हैं।

(‘सौहार्द की घटनाओं’) सांप्रदायिक घटनाओं के कारण, उत्तर प्रदेश ने सबसे ज्यादा मौतों की सूचना दी है ( 321, या 1,115 मौतों में से 28 फीसदी )। इसके बाद मध्य प्रदेश (135), महाराष्ट्र (140), राजस्थान (84) और कर्नाटक (70) का स्थान है।

अब आगे चलते हैं नसीर साहब, आगे चलते हैं जनसत्ता की खबर के अनुसार गाय के बदले इंसानों को बचाने (गौरक्षा के नाम) पर हुई हिंसा में मरने वाले 86 प्रतिशत मुसलमान थे, 97 प्रतिशत घटनाएं केवल मोदी राज में हुई हैं।

और सुनिए नसीर साहब साल 2010 से 2017 के बीच (गाय के बदले इंसानों को बचाने) या (सौहार्द की घटनाओं) गोवंश से जुड़ी हिंसा के मामले केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद बहुत तेजी से बढ़े हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि आठ साल में गाय के नाम पर हिंसा में मरने वाले 86 प्रतिशत मुसलिम रहे। वहीं 97 प्रतिशत घटनाएं मोदी राज में घटित हुई।

 

रिपोर्ट के मुताबिक (गाय पर इंसानों को प्राथमिकता देने) या (सौहार्द की घटनाओं) गाय से जुड़ी हिंसा के आधे से ज्यादा मामले (लगभग 52 प्रतिशत) झूठी अफवाहों के कारण हुए। इंडिया स्पेंड ने 25 जून 2017 तक के आंकड़ों के आधार पर ये विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट के अनुसार इन आठ सालों में ऐसी 63 (गाय पर इंसानों को प्राथमिकता देने)
या (सौहार्द की घटनाओं) की घटनाएं हुई जिनमें 28 लोगों की जान चली गई। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी मई 2014 में केंद्र की सत्ता में आए थे।

आगे आप देखिये कि इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में (गाय पर इंसानों को प्राथमिकता देने) या (सौहार्द की घटनाओं) गाय से जुड़ी हिंसा के मामलों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। इस साल से पहले छह महीनों में गाय से जुड़े 20 मामले हुए जो साल 2016 में हुई कुल हिंसा के दो-तिहाई से ज्यादा हैं।

पिछले 8 सालों में (गाय पर इंसानों को प्राथमिकता देने) गाय से जुड़ी हिंसा के 63 मामलों में 61 मामले केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद ही हुए हैं। साल 2016 में गोवंश से जुड़ी हिंसा के 26 मामले दर्ज किए गए। 25 जून 2017 तक ऐसी हिंसाओं को लेकर अब तक 20 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।

इन (गाय पर इंसानों को प्राथमिकता देने) या (सौहार्द की घटनाओं) के दर्ज मामलों में करीब 5 प्रतिशत आरोपियों के गिरफ्तारी की कोई सूचना तक नहीं है जबकि 13 मामलों में यानी करीब 21 फीसदी में पुलिस ने पीड़ित या भुक्त-भोगियों के खिलाफ ही केस दर्ज कर दिया है।

बुलंदशहर के शहीद इंस्पेक्टर भी गाय के बजाय इंसानों को प्राथमिकता नहीं देने की बात पर अड़े थे, वो इंसानों को बचाने के बजाय गाय को बचाने को प्रतिबद्ध थे, नतीजा ये हुआ कि सौहार्द के फरिश्तों ने उन्हें शांति का पाठ पढ़ा डाला, आज उनकी बेवा पत्नी की चीखें और क्रंदन इस बात की गवाही दे रहा है कि इंसान पहले है गाय बाद में।

इसके अलावा देश में कई बार सोशल मीडिया पर मुसलमानो को पकड़ कर जय श्रीराम के नारे लगवाकर सौहार्द फ़ैलाने के वीडियोज़ सोशल मीडिया पर अपलोड किये गए, आप चाहें तो यूट्यूब पर देख सकते हैं।

और नसीर साहब ज़्यादा पीछे भी जाने की ज़रुरत नहीं है, अभी दिल्ली में ही एक शांति मार्च में अमन के फरिश्तों ने ‘एक धक्का और दो जामा मस्जिद तोड़ दो” के नारे लगाकर शांति और सौहार्द का खुलकर सन्देश दिया था।

तो नसीरुद्दीन शाह साहब, देश में शांति सौहार्द, सहिष्णुता और गंगा जमनी संस्कृति की खुलकर बहती लहर का सच आपने देख लिया होगा, इसलिए आप झूठे हैं, आप झूठ बोले हैं, ये गोदी मीडिया और देश के न्यूज़ चैनल्स आपसे नाराज़ हैं, बहुत नाराज़ हैं, देश में चारों ओर बहती शांति शौहार्द और गंगा-जमनी संस्कृति की बहती लहर के खिलाफ दिए आपके बयान से गोदी मीडिया का क्रोध उबल कर बाहर आ रहा है।

जब सोनू निगम ने पाकिस्तान में पैदा होने जैसा बयान दिया था तो आप पर चलती इनकी गज़ भर की ज़बान पेट के अंदर उतर गयी थी, क्योंकि वो ‘सोनू निगम’ था, ये आपसे इसलिए नाराज़ है और आप पर उँगलियाँ उठा रहे हैं कि आप ‘नसीरुद्दीन शाह’ हैं, इन्हे हमेशा अपने शिकार के लिए नसीरुद्दीन शाह ही चाहिए होते हैं, सोनू निगम नहीं।

हो सके तो उनसे माफ़ी मांग लीजिये, मगर ज़रा रुकिए माफ़ी मांगने से पहले ये सभी आंकड़े भी उनके मुंह पर फेंक मारिये, इसके बाद अगर उनकी अंतरात्मा ज़िंदा होगी तो फिर आपसे माफ़ी की मांग नहीं करेंगे।

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