अभी अगस्त ‘2019 की ही बात है जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर दिए थे, आज खबर आयी है कि 30 साल में पहली बार रिज़र्व बैंक अपने रिजर्व से सोना बेचने और उसके मुनाफे को सरकार के साथ बांटने का विचार कर रही है। देखा जाए तो रिज़र्व सोने को सिर्फ इसलिए ट्रेडिंग के लिए प्रयोग किया जा रहा है ताकि इसके बिकने से होने वाले मुनाफे में सरकार को हिस्सेदारी मिले।
Economic Times की खबर के अनुसार RBI जालान कमिटी की सिफारिशें स्वीकार करने के बाद इस साल अगस्त से गोल्ड ट्रेडिंग में ऐक्टिव हो गया है। जालान कमेटी का गठन पिछले साल सरकार के राजस्व में कमी को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक की अतिरिक्त आमदनी सरकार के साथ शेयर करने की बात पर मचे बवाल के बाद किया गया था।
जालान कमेटी की सिफारिश में कहा गया है कि RBI को सोने में होने वाला Valuation Gain नहीं बल्कि उसकी ट्रेडिंग से हासिल होने वाला मुनाफे को सरकार के साथ शेयर करना चाहिए। RBI ने कुल $1.15 अरब का सोना बेचा है, RBI के Weekly Statistical Supplement दर्ज डाटा के ऐनालिसिस से पता चला है कि RBI ने अपने बिजनस ईयर की शुरुआत वाले महीने यानी जुलाई से $5.1 अरब का सोना खरीदा है और लगभग $1.15 अरब का सोना बेचा है।
ET को मिले आंकड़ों के मुताबिक RBI के पास अगस्त के अंत तक 1.987 करोड़ औंस सोना था, 11 अक्टूबर को फॉरेक्स रिजर्व में $26.7 अरब के बराबर सोना था।
ज्ञात रहे कि RBI ने लगभग 30 साल में पहली बार अपने रिजर्व से सोना बेचा है, इससे पहले 1991 में, RBI को यूनियन बैंक ऑफ स्विटज़रलैंड और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड को 67 टन सोना गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जब देश के पास मुश्किल से ही कुछ हफ्तों के आयात के लिए भंडार रह गया था।
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