श्रीलंका में ताबड़तोड़ हुए आतंकी हमले में 200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और ये संख्या बढ़ती जा रही है, इस आतंकी हमले के गुनहगारों के बारे में श्रीलंका सरकार की किसी भी तरह आधिकारिक घोषण से पहले ही भारत की सांप्रदायिक मीडिया ने श्रीलंका आतंकी हमले में ISIS या नेशनल तौहीद जमात क हाथ होने की घोषणा कर डाली, विदेशी मीडिया को खंगालेंगे तो कहीं भी इस बाबत कोई खबर नहीं है कि इस आतंकी हमले में किस व्यक्ति का हाथ है या फिर किस आतंकी संगठन का हाथ है।
यहाँ विदेशी मीडिया का ज़िक्र इसलिए किया है कि न्यू इंडिया के मीडिया का हाल किसे पता नहीं है, सबसे ताज़ा मामला बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक का है जिसके इस गोदी मीडिया ने 300 – 400 आतंकी मार डालने की ख़बरें तीन चार दिन तक चलाईं थीं, और अपने उस झूठ को छुपाने के लिए रोज़ नए झूठ गढ़ती थी, यदि विदेशी मीडिया सच नहीं बताता तो देश की जनता इस भांड मिडिया के 300 – 400 आतंकी मार डालने के आंकड़ों पर झक मार कर विश्वास कर डालती, परसों सुषमा स्वराज के उस बयान ने भी इस टुकड़खोर मीडिया के मुंह पर जूता मारा है जिसमें उन्होंने कहा था कि बालाकोट हवाई हमले में कोई भी हताहत नहीं हुआ था।
खैर आगे श्रीलंका चलते हैं, श्रीलंका में दंगों और धमाकों या आतंकी हमले का संक्षिप्त इतिहास देखें तो कहीं भी ISIS या फिर कथित नेशनल तौहीद जमात का नाम नहीं मिलेगा, बल्कि इसके बदले हर बार ‘बोदु बाला सेना’ (BBS) का नाम ही सामने आएगा, जिसे गालगोदा एथे गनानसारा अस्तित्व में लाये थे, श्रीलंका में जितने भी बौद्ध मुस्लिम दंगे या चर्चों और ईसाईयों पर हमले हुए हैं उसमें इस BBS का नाम सबसे ऊपर रहा है।
4 दिसंबर 2003 को ब्रिटेन की संसद में एक रिपोर्ट पेश की गयी थी, जिसमें श्रीलंका के ईसाईयों पर बौद्ध और हिन्दू अतिवादियों द्वारा किये गए हमलों की जानकारी सामने रखी गयी थी।
28 जनवरी 2016 की एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था ‘Sri Lanka Rocked By Attacks Against Christians, Churches’, इसमें कहा गया था कि संदिग्ध बौद्ध और हिंदू आतंकवादियों द्वारा ईसाईयों और चर्चों पर हमले, हिंसा और धमकी की एक नई लहर चल पड़ी है, अधिकांश हमलों को ‘बोडू बाला सेना’ या ‘बौद्ध शक्ति सेना’ ने अंजाम दिए हैं।
श्रीलंका की एक संस्था NCEASL ( National Christian Evangelical Alliance of Sri Lanka) की एक REPORT के अनुसार केवल 2018 में ही ईसाई लोगों के खिलाफ नफरत, धमकी और हिंसा के कुल 86 मामले दर्ज किए गए, और इसके लिए श्रीलंका के उग्रवादी बौद्ध भिक्षु संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
ऐसे में यदि कुछ देर के लिए मान भी लें कि ISIS या फिर कथित नेशनल तौहीद जमात ने ये आतंकी हमले किये हैं तो इसके पीछे लॉजिक क्या है ? यदि ये मुस्लिम संगठन बौद्धों या फिर ‘बोदु बाला सेना’ (BBS) से पीड़ित हैं, तो फिर ईस्टर के दिन ईसाईयों की जाने क्यों लेंगे, चर्चों पर हमले क्यों करेंगे ?
मुस्लिम संगठनों की ईसाईयों से क्या दुश्मनी हुई ? एक पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय दूसरे पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला क्यों करेगा ? सोचिए ज़रा !
श्रीलंका की कुल आबादी लगभग 2.2 करोड़ है, इसमें 70 फीसदी बौद्ध धर्म के लोग हैं, 12.5 फीसदी हिंदू , करीब 9.5 फीसदी मुस्लिम हैं और 7.6 फीसदी ईसाई धर्म के लोग हैं। ‘बोदु बाला सेना’ भी श्रीलंका में संघ की तर्ज़ पर इन 9 फीसदी मुसलमानों और 7 फीसदी ईसाइयों का भय दिखाकर राष्ट्रवादी होने का दम भरती आयी है। मुसलमानों की बढ़ती जनसँख्या का भय, मुस्लिम धर्म के विस्तार का भय, हलाल चीज़ों पर प्रतिबन्ध की मांग, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बहिष्कार के खुले आम आह्वान किये जाते रहे हैं।
‘बोदु बाला सेना’ 2012 में बना कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध भिक्षुओं का ग्रुप था, जिन्होंने हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ भावनाएं भड़काईं, इस ग्रुप को राजपक्षे के भाई और ताकतवर रक्षा सचिव गोतबाया का मौन समर्थन हासिल था।
‘बोदु बाला सेना’ ने मुसलमानों और गिरजाघरों पर हमले शुरू कर दिए, उनकी मुख्य शिकायत यह थी कि कोलंबो में मुस्लिम आबादी बौद्धों के मुकाबले तेजी से बढ़ रही थी, कट्टर बौद्ध संगठन बोदु बाला सेना का हर बौद्ध मुस्लिम-ईसाई दंगे में नाम रहा है, साल 2013 में कोलंबो में बौद्ध गुरुओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने कपड़े के एक स्टोर पर हमला कर दिया था, कपड़े की ये दुकान एक मुस्लिम की थी और हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए थे, साल 2014 में कट्टरपंथी बौद्ध गुटों ने तीन मुसलमानों की हत्या कर दी थी जिसके बाद गॉल में दंगे भड़क गए थे।
26 -27 फरवरी 2017 को श्रीलंका के पूर्वी प्रांत के अंपारा कस्बे में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। पिछले साल ही मार्च में श्रीलंका में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा के बाद 10 दिनों के लिए आपातकाल घोषित किया गया था, और सोशल मीडिया बैन कर दिया गया था, इसकी वजह थी बौद्धों का मुसलमानों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त हेट स्पीच करना।
उग्रवादी बौद्ध संगठन ‘बोदु बाला सेना’ का सांप्रदायिक इतिहास BBC के इस लेख में पढ़ सकते हैं।
श्रीलंका में सिंहली बौद्धों का एक बड़ा वर्ग है, जो गैर-सिंहली मूल के लोगों और मुस्लिमों को अपने लिए खतरे के तौर पर देखता है। 2014 में भी श्रीलंका में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। एक अनुमान के मुताबिक उस हिंसा में 8,000 मुस्लिम और 2,000 सिंहलियों को विस्थापित होना पड़ा था। कट्टर बौद्ध संगठन बोदु बाला सेना को भी ऐसी हिंसा के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है।
इस संगठन के जनरल सेक्रटरी गालागोदा ऐथे गनानसारा अकसर कहते रहे हैं कि मुस्लिमों की बढ़ती आबादी देश के मूल सिंहली बौद्धों के लिए खतरा है।
इसी के साथ ‘बोदु बाला सेना’ मयंमार के कुख्यात वौद्ध भिक्षु अशीन विराथु के ‘969 संगठन’ या ‘969 मुहिम’ का भी श्रीलंका में लगातार प्रचार प्रसार कर रहा है, और इसी कड़ी में असिन विराथु श्रीलंका के दौरे भी कर चुका है, इसका एजेंडा बौद्ध समुदाय के लोगों से अपने ही समुदाय के लोगों से खरीदारी करने, उन्हें ही संपत्ति बेचने और अपने ही धर्म में शादी करने की बात करता है, कह सकते हैं कि ये खालिस मुस्लिम विरोधी मुहिम है, इसे दूसरे रूप में रक्त शुद्धि आंदोलन (Ethnic Cleansing) भी कह सकते हैं, ये ठीक हिटलर के बदनाम न्यूरेम्बर्ग क़ानून की तरह है।
‘बोदु बाला सेना’ के चीफ गनानसारा को साल 2018 में यौन उत्पीड़न के एक मामले के सिलसिले में गिरफ्तार करने आए एक पुलिसकर्मी की कथित तौर पर हत्या करने के आरोप में 10 माह की सजा भी हुई थी। इसके विरोध में श्रीलंका में बवाल खड़ा हो गया था।
कुल मिलकर श्रीलंका के बौद्ध मुस्लिम और ईसाई सांप्रदायिक दंगों का संक्षिप्त इतिहास देखें तो उक्त कथित इस्लामी आतंकी संगठओं की लिप्तता कहीं नज़र नहीं आती, ऐसे में साम्प्रदायिकता के ज़हर से लबालब गोदी मीडिया को कहाँ से आकाशवाणी हुई है ये समझ से बाहर है, फिलहाल इस दुखद घटना की सत्यता जांचना और समझना है तो विदेशी मीडिया पर नज़र रखिये, आज नहीं तो कल दोषी सामने होंगे चाहे ‘बोदु बाला सेना’ हो या फिर ISIS और नेशनल तौहीद जमात।
मगर जिस तरह से देश के कुछ सांप्रदायिक लम्पट पोर्टल्स ने श्रीलंका सरकार के आधिकारिक बयान से पहले ही इसे इस्लामी आतंक से जोड़ा है वो शर्मनाक है।
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