2015 में और उससे पहले भी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को हिरासत में यातनाएं देने की शिकायतों पर जाँच में यातनाएं देने के कोई सबूत नहीं पाए गए थे और हेमंत करकरे के नेतृत्व वाले राज्य के आतंकवाद-रोधी दस्ते (ATS) को 2015 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा क्लीन चिट दे दी गई थी।
मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर इन दिनों सशर्त ज़मानत पर बाहर हैं और भोपाल से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं, और अपने चुनावी प्रचार तथा टीवी इंटरव्यूज के दौरान वो बार बार महाराष्ट्र ATS द्वारा उन्हें दी गयीं यातनाओं का बखान करती नज़र आ रही हैं, अपने पर हुई यातनाओं को बताते हुए भावुक होकर रोती भी नज़र आयी हैं।
और इसी कड़ी में दो दिन पहले साध्वी प्रज्ञा ने शहीद हेमंत करकरे पर यातनाएं देने और श्राप देने की वजह से मौत हो जाने जैसे संगीन बयान दिए थे, जिसके खिलाफ देश में कड़ी प्रतिक्रिया होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने अपने बयान पर माफ़ी मांग ली है।
आज ही Mumbai Mirror अख़बार ने खबर प्रकाशित की है जिसमें बताया गया है कि अगस्त 2014 में मानवाधिकार आयोग ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया था कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के नेतृत्व में एक समिति बनाकर साध्वी प्रज्ञा को यातनाएं देने के आरोपों की जाँच की जाए।
मानवाधिकार आयोग द्वारा करकरे और उनकी टीम को क्लीन चिट देने के चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में प्रज्ञा के यातना देने के आरोपों पर एक संक्षिप्त टिपण्णी की थी, शीर्ष अदालत ने जस्टिस जे.एम्. पांचाल और एच.एल. गोखले की खंडपीठ ने स्वीकार किया कि मानवाधिकार आयोग इन आरोपों पर भी गौर कर रहा था, कहा कि प्रज्ञा की जाँच दो अस्पतालों के डाकटरों ने की थी, और उन्हें उसके शरीर पर किसी भी प्रकार के चोट के निशान नहीं मिले थे।
Mumbai Mirror के अनुसार तब सुप्रीम कोर्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट, या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में कहीं भी ये बात साबित नहीं हो पायी कि साध्वी प्रज्ञा को हिरासत में यातनाएं दी गयी थीं, प्रज्ञा को अक्टूबर 2008 से अप्रेल 2017 तक हिरासत में रखा गया था।
इसके बाद, आर.एस. खैरे, तत्कालीन उप महानिरीक्षक (प्रशासन) CID -पुणे और तत्कालीन उप अधीक्षक के एस परुलेकर के मार्गदर्शन में जांच पैनल का गठन किया गया था, जिसमें कि यरवदा सेंट्रल जेल, जे.एम्. कुलकर्णी, तब CID पुणे में तैनात एक इंस्पेक्टर रश्मि जोशी, दक्षिणी समिति पुणे की सदस्य NGO ग्रीन लाइफ फाउंडेशन भी शामिल थे।
साध्वी प्रज्ञा ने 2008 में दावा किया था कि ATS ने उसके सहयोगी भीम पसरीचा को हिरासत में लेते हुए उसकी पिटाई करने के लिए मजबूर किया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो मौक़ों (24 अक्टूबर 2008 और उसी साल 3 नवम्बर) को नासिक के मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था लेकिन उसने ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं किया था।
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