न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों में हुए आतंकी हमलों में 50 लोगों की मौत के बाद वैश्विक समुदाय को दुनिया में इस्लाम के खिलाफ खड़े हो चुके दक्षिणपंथी आतंकवाद (Right-Wing Terrorism) पर सोचने और इसे रोकने के लिए एकजुट होना पड़ा। इस्लामोफोबिया के बोये बीजों से फूटा दक्षिणपंथी आतंकवाद जिसे दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद (Right-Wing Nationalism) भी कहा जाता है, पूरी दुनिया में पसर चुका है।

अमरीका का प्रतिबंधित कुख्यात श्वेतवादी दक्षिणपंथी आतंकी संगठन कू क्लक्स क्लान

दक्षिणपंथी आतंकवाद, अमरीका में हुए 9 /11 हमले के बाद तेज़ी से उभर कर सामने आया, और अमरीका सहित पूरे यूरोप और एशिया तक छा गया, प्रायोजित इस्लामी आतंकी संगठन आइसिस ने दुनिया में इस दक्षिणपंथी आतंकवाद को फैलने फूलने के लिए खाद पानी उपलब्ध कराया।

न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों में आतंकी हमलों के बाद बाहर बैठे घायल।

चाहे न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों पर हुआ आतंकी हमला हो या फिर नार्वे में 22 जुलाई 2011को आंद्रे ब्रेविक द्वारा किये गए नर संहार में मारे गए 77 लोग हों या फिर अमरीका और यूरोप में मस्जिदों और मुसलमानों पर हुए हमले हों या फिर 12 अगस्त 2019 को नार्वे में मस्जिद पर न्यूज़ीलैंड जैसा हमले की कोशिश, ये सभी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि विश्व में एंटी इस्लामी दक्षिणपंथी आतंकवाद उभर चुका है।

अमरीका और यूरोप में श्वेत दक्षिणपंथ का तेज़ी से उभार.

दक्षिणपंथी आतंकवाद के मूल में जो विचार होता है वो ये कि देश में राष्ट्रवादी, फासीवादी सरकारें बनाई जाएं, आमतौर पर दक्षिणपंथी आतंकी इतालवी फासीवाद, जर्मनी के नाजीवाद से प्रेरित होते हैं। नार्वे के आंद्रे ब्रेविक से लेकर न्यूज़ीलैंड की मस्जिद में किये गए आतंकी हमले के मुख्य आरोपी टेरेंट और 12 अगस्त 2019 को नार्वे में मस्जिद पर किये गए हमलों के आरोपियों में एक समानता है वो ये कि ये लोग सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े हुए थे, और हमलों से पहले अपने मेनिफेस्टो सोशल मीडिया पर जारी किये थे।

नार्वे में 77 लोगों का नर संहार करने वाला आतंकी आंद्रे ब्रेविक.

यूरोप के करीब सभी प्रमुख देशों में दक्षिण पंथी कट्टरवादी संगठन तेजी से उभर रहे हैं और दुनियाभर में मुसलमानों के खिलाफ आतंकी गतिविध‌ियों को अंजाम दे रहे हैं, इन देशों में फ्रांस, डेनमार्क, इटली, नार्वे, पोलैंड, यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड, स्वीडन प्रमुख हैं। इन देशों के कई बड़ी घटनाओं को बीते करीब पांच सालों में अंजाम दिया गया है। जर्मनी भी इससे अछूता नहीं है नव नाज़ी संगठन वहां लगातार मुसलमानों के खिलाफ प्रोपेगंडा चलाये हुए हैं।

न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों पर हुए आतंकी हमलों का मुख्य आरोपी टेरेंट

जर्मनी सहित यूरोपीय देशों में इस दक्षिणपंथी आतंकवाद के उभार में सीरिया संकट ने भी योगदान दिया है, युद्ध की विभीषिका से तबाह बर्बाद हुए सीरिया, के साथ मिस्त्र, इराक़ देशों से लाखों शरणार्थी अपने घर बार छोड़कर यूरोपीय देशों की ओर शरण लेने के लिए पलायन कर गए थे, इस शरणार्थी विभीषिका को दुनिया ने देखा है, और जिन देशों में इन शरणार्थियों को शरण मिली वहां दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों ने इन्हे प्रताड़ित किया इन पर हमले किये गए, जिसमें हंगरी की उस कैमरा पत्रकार पर दुनिया ने लानत भेजी थी जिसने शरण के लिए सीमा के अंदर आकर भागती एक सीरियाई बच्ची को टांग अड़ा कर गिरा दिया था, ये एक छोटा सा उदाहरण है उस दक्षिणपंथी नफरती मानसिकता का।

सीरियाई शरणार्थी बच्ची को टांग अड़ा कर गिराने वाली हंगेरियन कैमरा पत्रकार.

एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया भी इस दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद/ दक्षिणपंथी आतंकवाद की चपेट में आ चुका है, ऐसे संगठन तेजी से श्रीलंका, भारत और चीन में भी फैल रहे हैं।

अमेरिकन यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर सिंथिया मिल्लर इदरीसी ने अपनी तथ्यात्कमक Report में विश्व में इस्लाम के खिलाफ उभर चुके इस दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद/ दक्षिणपंथी आतंकवाद पर रौशनी डाली है।

दक्षिणपंथी कट्टरवाद के मूल में मुसलमानों के खिलाफ नफरत (Islamophobia) है, विश्व में इसी इस्लामोफोबिया की फसल काट कर सत्ताएं हासिल की जा रही हैं, दक्षिणपंथी कट्टरवाद के मूल में मुसलमानों के खिलाफ नफरत है, और इसमें दक्षिणपंथी कट्टरवादी संगठन अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुस्लिम अप्रवासियों को अमरीका में आने से रोकने का वायदा कर राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प हैं, इन्हे अप्रत्यक्ष रूप से अमरीका के कुख्यात प्रतिबंधित दक्षिणपंथी श्वेतवादी संगठन KKK (कू क्लक्स क्लान) का पूरा समर्थन और सहयोग मिला है।

मुस्लिम विरोध के दम पर सत्ता हासिल करने वाले ट्रंप.

प्रसिद्द पत्रिका Metro UK ने 19 Mar 2019 को दक्षिणपंथी आतंकवाद/राष्ट्रवाद पर एक विस्तृत REPORT प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि 2011 के बाद से दुनिया में दक्षिणपंथी कट्टरवादियों के हमलों में अचानक से तेज़ी आयी है, इसमें भारत का भी नाम है। ब्रिटेन में एंटी मुस्लिम हमलों पर सरकार के सहयोग से नज़र रखने वाली संस्था Tell Mama के आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन में केवल 2017 में ही 1201 पंजीकृत मुस्लिम विरोधी मामले दर्ज किये गए।

जॉर्जिया यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार दक्षिणपंथी गुंडों द्वारा मुसलमानों पर किये गए हमलों को मीडिया इतना कवरेज नहीं देती जब तक कि कोई गंभीर क्षति न हो जाए, इसके उलट मुसलमानों द्वारा किये गए हमलों को मीडिया 357 प्रतिशत अधिक कवरेज देती है। ये तथ्य भी वैश्विक मीडिया का इस्लामॉफ़ोबिक चेहरा सामने रखता है।

‘आतंकवाद को आतंकवाद से ख़त्म’ करने की थ्योरी को लेकर उभर चुके इस दक्षिणपंथी आतंकवाद ने पूरी दुनिया के नेताओं और मानवाधिकार संगठनों की चिंताएं बढ़ा दी हैं, ये दक्षिणपंथी आतंकवाद जहाँ कई देशों में नेताओं के मूक समर्थन से फल फूल रहा है तो कहीं जो देश इस पर लगाम लगाने को तत्पर हैं वहां ये सोशल मीडिया के ज़रिये पांव पसार रहा है । म्यंमार और श्रीलंका में बढ़ता बौद्ध आतंकवाद भी इसी दक्षिणपंथी कट्टरपंथी विचारधारा का ही एक आइना है।

भारत में भी दक्षिणपंथी कट्टरपंथ ने पांव पसार लिए हैं, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने ‘वर्ल्ड रिपोर्ट 2018’ जारी कर इस बात का ज़िक्र किया है कि मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों पर हमले बढे हैं। मोदी के सत्ता में आते ही देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल बनाने की कोशिश देखी गई, जिसका नतीजा ये हुआ कि देश भर में गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग कर 50 से ज़्यादा हत्याएं की गईं।

जून 2018 की ही बात है दुनिया की बेहतरीन खुफिया एजेंसियों में से एक अमेरिका की ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी’ (CIA) ने विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल को धार्मिक आतंकी संगठन बताया था। CIA ने अपनी वर्ल्ड फैक्टबुक में इन दोनों संगठनों को राजनीतिक दबाव वाले समूह में रखा है। यानी वो समूह जिनका राजनीति में सीधे तौर पर असर रहता है, लेकिन वे खुद कभी चुनाव में हिस्सा नहीं लेते।दैनिक भास्कर में प्रकाशित उस खबर को यहाँ पढ़ सकते हैं।

सोशल मीडिया इन दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों के लिए एक ताक़तवर हथियार की तरह काम आ रहा है, कई देशों की सरकारों ने इसके लिए कड़े क़दम उठाये हैं तो कहीं कुछ देश की सरकारें इस पर नकेल कसने का दिखावा कर इतिश्री कर रही हैं, दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों को सोशल मीडिया पर खुली ढील देना किसी भी देश के लोकतंत्र और समाज के लिए गंभीर खतरा हो सकता है।

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