अभी पिछले ही हफ्ते की बात है जब TIME मैगज़ीन के कवर पेज पर एक लेख के शीर्षक के ज़रिये प्रधानमंत्री मोदी को ‘भारत का डिवाईडर-इन-चीफ’ बताया गया था, आज 23 मई को देश की ‘डिवाइड की जा चुकी’ जनता ने उसी कथित ‘डिवाईडर-इन-चीफ’ को देश की सत्ता की चाबी सौंप दी है।

इसकी वजह, शायद इस की वजूहात पर एक किताब लिखनी पड़े मगर मोटे तौर पर कह सकते हैं कि पिछले पांच साल में धार्मिक आधार पर सुनियोजित ढंग से डिवाइड हो चुकी देश की बड़ी आबादी ने इस विभाजन को सहमति दी है, स्पष्ट तौर पर कहें तो ये चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण और हिन्दू राष्ट्रवाद का लिटमस टेस्ट था, इसका इशारा भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाकर दे दिया था, और जनता में हिन्दू आतंकवाद और हिन्दू राष्ट्रवाद के विरुद्ध नेरेटिव बनाया गया जो सफल हुआ इसका उदाहरण प्रज्ञा ठाकुर की जीत है।

विभाजित हो चुकी देश की बड़ी आबादी ने इस धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए पिछले पांच सालों का क्रूर राजनैतिक अतीत भी भुला दिया, नोटबंदी जैसी आर्थिक आपदा भुला दी, GST की मार भुला दी, नोटबंदी में बेमौत मारे गए 100 से ज़्यादा लोग भुला दिए, हर साल 12,000 आत्महत्या करने वाले किसानों को भुला दिया, भुखमरी वाले देशों में शामिल होता भारत भुला दिया, प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पिछड़ते भारत को भुला दिया, महिलाओं के लिए असुरक्षित भारत को भुला दिया, हैप्पीनेस इंडेक्स में पड़ोसियों से पिछड़ते भारत को भुला दिया।

नाले की गैस से चाय बनाना भुला दिया, क्लाउड्स और रडार वाले बयान भुला दिए, देश में 40 साल में रिकॉर्ड विकराल बेरोज़गारी भुला दी, महँगी दाल भुला दी, महंगा होता पेट्रोल डीज़ल और रसोई गैस भुला दी, स्विस बैंकों से लाने वाले काले धन को भुला दिया, 15 लाख भुला दिए, विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसे जैसे आर्थिक अपराधियों के अरबों लेकर देश से भागने के कारनामों को भुला दिया, और तो और इस विभाजन को और परवान चढाने के लिए राम मंदिर का मुद्दा तक भी भुला दिया गया।

सोच सकते हैं कि ये नेरेटिव क्यों है और किसलिए है, केवल धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए, मोदी , अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के बाद प्रज्ञा ठाकुर का राजनीति में आना और उनकी जीत इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, धार्मिक ध्रुवीकरण या बहुसंख्यक वाद, जहाँ सेक्युलरिज़्म के लिए कोई जगह नहीं है, सेक्युलरिज़्म की बात करने वाले टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्यों के नाम से पुकारे जाते हों, जिस देश में एक हिंदूवादी सियासी पार्टी के खुद के ही बनाये गए राष्ट्रवाद और विचारधारा से असहमत करोड़ों लोग देशद्रोही क़रार दे दिया जाता हो और हर असहमति पर पाकिस्तान भेजने की धमकी दी जाती हो उस देश में इस तरह की विभाजनकारी मानसिकता को परवान चढाने के लिए सियासी खाद पानी बहुलता से उपलब्ध है।

क्या कारण रहा कि जिस पाकिस्तान जाकर बिरियानी खाई गयी, जिस पाकिस्तान के साथ पौने पांच साल जमकर करोड़ों डॉलर्स का व्यापार हुआ, जो पाकिस्तान चुनावों से डेढ़ माह पहले तक ‘Most Favoured’ नेशन रहा, उस पाकिस्तान ने पुलवामा हमला कराया, 42 जवान शहीद हुए, फिर उसी पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक किया गया और फिर मीडिया के ज़रिये 300-400 आतंकी मारे जाने की झूठी खबरें उड़ाई गयीं, फिर पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों के नाम पर वोट मांगे गए और इन सबको राष्ट्रवाद के रैपर में लपेट कर चुनाव में पहले से ही विभाजित जनता के सामने परोस दिया गया।

सत्ता हासिल करने के लिए शहीदों से लेकर सेना तक पर राजनीति की गयी, संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता की बलि चढ़ाई गयी, ध्रुवीकरण का नेरेटिव इतना व्यापक हो गया की देश का हर क्षेत्र हर विभाग विभाजित हो गया, चाहे फिल्म इंडस्ट्री हो या फिर साहित्य का क्षेत्र अंतरिक्ष विज्ञानं हो या फिर इंटेलेक्चुअल तब्क़ा या फिर मीडिया या शिक्षा का क्षेत्र, सभी में इस विभाजन का वायरस पेवस्त किया गया, जिसका फाइनल रिजल्ट आ देश के सामने है। और हैरानी की बात ये है कि इस विभाजनकारी मानसिकता को विकास का नाम दिया गया।

देश में धार्मिक ध्रुवीकरण की लपलपाती ये बेलगाम विभाजनकारी मानसिकता देश को किस रस्ते पर ले जाने वाली है ये भविष्य ही बताएगा, मगर ये तय है कि जिस भारत के लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष स्वरुप को अक्षुण रखने के लिए हमारे आपके पुरखों ने एकजुट होकर मज़बूत किया था वो शायद हर साल बिखरता ही जा रहा है और उसे ‘सहेजने की असफल कोशिश’ करने वाले लोग अल्पमत में होते जा रहे हैं।

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