राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर पिछले 5 दिनों से गुर्जर आंदोलन चल रहा है, आंदोलन के चौथे दिन गुर्जरों को धरना-प्रदर्शन रेलवे के साथ ही अब सड़कों तक भी पहुंच चुका है। आंदोलन को देखते हुए रेलवे ने कोटा होकर मुंबई की तरफ गुजरने वाली ट्रेनों को मथुरा के रास्ते मोड़ दिया है। मुंबई से दिल्ली ट्रेनों को जयपुर होते निकाला जा रहा है कुल 22 ट्रेनें डायवर्ट की हैं, और दो ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है।
सड़कों पर भी इस आंदोलन की आग फ़ैल गयी है, राजमार्गों पर जाम लगकर हिंसा और आगज़नी की ख़बरें आ रही हैं, रविवार को आंदोलन के तीसरे दिन कुछ प्रदर्शनकारियों ने धौलपुर जिले में आगरा-मुरैना राजमार्ग को बंद करने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो उन्होंने पुलिस के 3 वाहनों को आग के हवाले कर दिया।
इस ताज़ा गुर्जर आंदोलन के चौथे दिन में ही केवल रेलवे को ही अब तक करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। जो कि रोज़ लगातार बढ़ ही रहा है, आमजन पांच दिन से बंधक बना हुआ है, ट्रैन से और सड़क के रास्ते यात्रा का जोखिम नहीं ले रहा है।
इस गुर्जर आंदोलन को थोड़ा पीछे जाकर देखें तो हिंसा आगज़नी और सरकार को हुए अरबों का नुकसान भी सामने आता है, 2015 के गुर्जर आंदोलन में ही रेलवे को 200 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था।
2009 के गुर्जर आंदोलन में भी कई जानें गयीं थीं और क़रीब एक हज़ार करोड़ की संपत्ति के नुकसान हुआ था।
बात करते हैं हरियाणा के 2016 को हुए जाट आंदोलन की तो उसमें 18 जानें गयीं थीं और आर्थिक गतिविधियां बाधित होने से 34000 करोड़ रुपए का भारी भरकम नुकसान हुआ था।
वोटों की राजनीति की मजबूरी को डिकोड करने वाले ये आंदोलनकारी नेता जब चाहें राज्य और केंद्र सरकारों को उँगलियों पर नचा लेते हैं, हज़ारों करोड़ का नुकसान उठाने के बाद भी सरकार और नेता आरक्षण की आग पर वोटों के समीकरण की खिचड़ी के चलते नेता इन आंदोलनकारी नेताओं के पास रेंग रेंग कर जाते हैं, इनकी मांगों पर सौदेबाज़ी होती है। और हर बार सरकार इनके आगे आत्मसमर्पण ही करती नज़र आती है।
जब भी गुर्जर या जाट आंदोलन जैसा आरक्षण आंदोलन समाप्त होता है देश के सामने हज़ारों करोड़ के नुकसान, सप्ताह दिनों तक बंधक बनी आम लाचार जनता और ऊंचे कॉलर किये आंदोलनकारी नेता खड़े नज़र आते हैं, सबसे अहम् बात ये है कि इन आंदोलनकारी नेताओं या हिंसा करने वालों पर हज़ारों करोड़ के नुकसान, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने, सड़कों और रेलवे ट्रैक्स पर हिंसा व आगज़नी करने के सभी मुक़दमें भी कुछ दिन बाद वापस ले लिए जाते हैं।
इसी से इन आंदोलनकारियों को अगले आंदोलन का हौंसला मिलता है, ये जब चाहें रेल की पटरियों और सड़कों पर बैठकर जनता को बंधक बना लेते हैं, हिंसा और आगज़नी करते हैं, हर आंदोलन हज़ार करोड़ से अधिक का नुकसान कर पूरा होता है, न इस नुकसान की किसी से वसूली की जाती है, ना ही इसके लिए किसी को सजा दी जाती है, न कोई इन्हे देशद्रोही कहता है, न कोई पाकिस्तान भेजने की हुंकार भरता है, ना पाकिस्तान का टिकट भेजता है, न इनके लिए पैलेट गन है ना ही रासुका।
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