अब्दुल मुबीन बिना किसी अपराध के 8 साल जेल में रहे 17 साल मुक़दमा चला, जब बाइज़्ज़त बरी होकर बाहर आये तो उनकी दुनिया उजड़ चुकी थी।

एक प्राइमरी टीचर के पुत्र अब्दुल मुबीन लखनऊ से लगभग 270 किमी दूर सिद्धार्थनगर ज़िले की तहसील नौगढ़ के बगहवा गांव में रहते थे। मुबीन चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे, पिता चाहते थे बेटा डॉक्टर बने। गांव में अस्पताल खोले और लोगों की सेवा करे। मुबीन ने शिवपति नगर के जामिया तुल इस्लामिया से आलमियत (12वीं के समकक्ष) की तालीम ली। फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में (BUMS) बैचलर ऑफ यूनानी मेडिसिन एंड सर्जरी में दाखिला लिया।

यही 2000 का वो दौर था जब (सिमी) स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया की चर्चा पूरे देश में थी। शुरुआती दौर में सिमी स्टूडेंट्स का मददगार संगठन था। बाद में इसे देश विरोधी कार्यों में लिप्त बताया गया। इसी के चलते 1997 में कई लोगों ने सिमी से दूरी बना ली थी, इन्हीं लोगों में से एक मुबीन भी थे। एएमयू में मुबीन ने दाखिला लिया तो वहां मारूफ नाम के युवक से दोस्ती हो गई। बाद में मारूफ आगरा में होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने चला गया। मुबीन ने 2000 में BUMS की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उन्हें इंटर्नशिप के लिए किसी अस्पताल की तलाश थी। उसी सिलसिले में आगरा गए और वहां मारूफ के रूम पर रुके थे।

मारूफ के रूम पर एक दिन किसी तकनीकी खराबी के चलते रसोई गैस सिलिंडर में ब्लास्ट हुआ, कुछ अखबारों ने उसे बम धमाका लिख दिया। 14 अगस्त, 2000 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ब्लास्ट भी हुआ था। पुलिस ने आगरा बम ब्लास्ट को उसी से जोड़कर देखा। मुबीन ने कभी सोचा भी नहीं था कि देश विरोधी ऐसी घटना में उनका नाम आ सकता है। 3 सितंबर की सुबह एएमयू के हबीब हॉस्टल से वह बाहर निकल रहे थे, तभी टाटा सूमो में पहुंचे कुछ लोगों ने उन्हें अगवा कर लिया। मुबीन का चेहरा ढक दिया गया था।

करीब डेढ़ घंटे बाद जब गाड़ी रुकी तो वे आगरा के सदर थाने में थे। उन्हें बताया गया कि मारूफ के कमरे में बम ब्लास्ट केस में गिरफ्तार किया गया है। बाद में मुबीन के हॉस्टल के कमरे की तलाशी हुई तो वहां से सिमी से जुड़े कुछ पंपलेट्स और किताबें मिलीं। सिमी पर तब तक प्रतिबंध की तैयारी चल रही थी, लेकिन किताबें और पंपलेट्स उस वक्त के थे, जब सब कुछ ठीक चल रहा था और मुबीन उस संगठन से जुड़े थे। कोर्ट ने मुबीन को 10 दिनों की रिमांड पर भेज दिया। उसके अगले दिन खबर छपी तो मुबीन के दोस्तों को गिरफ्तारी का पता चला। फिर दोस्तों ने उनके घरवालों को सूचना दी।

मुबीन से कई दिनों तक एसटीएफ, आईबी और रॉ के अधिकारियों ने पूछताछ की। तीसरी तारीख पर मुबीन कोर्ट में हाजिर किए गए तो उन्हें वकील मिला। तब पता चला कि उन पर IPC की धारा 121, 122, 120बी, 123, 124ए और एक्सप्लोसिव एक्ट की धारा 3-4 के तहत केस दर्ज किया गया है। उन पर देशद्रोह, देश के खिलाफ युद्ध, गोला-बारूद जमा करने आदि के आरोप लगाए गए थे। बाद में पुलिस ने साबरमती मुबीन को एक्सप्रेस ट्रेन ब्लास्ट, लखनऊ में सहकारिता भवन के पास हुए बम ब्लास्ट और कानपुर में कूड़े के ढेर में हुए विस्फोट में भी नामजद कर दिया।

अब्दुल मुबीन 8 वर्षों तक कई जेलों में बंद रहे, पिता कभी जेल में मिलने नहीं गए। रिश्तेदारों, दोस्तों और गांव वालों ने बातचीत बंद कर दी थी। शिक्षक के नाते जो सम्मान था, बेटे के आतंकी होने के आरोपों ने उसे धुल दिया। मुबीन के बड़े अब्बू के बेटे मोहम्मद असलम जेल में मिलने आते। मुबीन जब जेल गए थे, तब उनकी छोटी बेटी करीब 6 महीने की थी।

8 साल बाद जब जमानत पर छूटे तो बेटी साढ़े 8 साल की हो चुकी थी। बच्चों को बढ़िया तालीम देने का जो सपना था, वह टूट गया था। जमीन, गहने और जमापूंजी कोर्ट-कचहरी में खर्च हो गई। जमानत पर छूट तो गए, लेकिन आतंकी का ठप्पा लगे किसी व्यक्ति को कोई काम देना तो दूर, कोई बात भी नहीं करता था। फिर एक कोचिंग में अंग्रेजी पढ़ाने की नौकरी मिली। मुबीन अब खेती-बाड़ी से जिंदगी को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। 17 साल तक उन पर केस चला। अंत में कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया।

काल कोठरी के अंदर गुजरे 8 वर्षों को याद कर मुबीन आज भी सिहर जाते हैं। एक इंटरव्यू में मुबीन ने बताया कि शुरुआत में 70-80 लोगों की बैरक में उन्हें रखा गया था। उसमें बमुश्किल 30-40 लोगों के रहने की जगह थी। ढंग से पैर भी फैलाकर नहीं सो पाते थे। बैरक के बंदियों को बता दिया गया कि आतंकी है तो वे मारपीट करते। कुछ वक्त 6 बाई 7 के तहखाने में भी बंद किया गया। वह जमीन से करीब 7-8 फुट नीचे था। गर्मी में भयंकर उमस और ठंड में भीषण सर्दी होती। रोशनी देखे कई दिन बीत जाते थे। उस सेल के अंदर एक डिब्बा दिया गया था। रात में शौच करना हो तो उसी डिब्बे में करो, फिर सुबह साफ भी करने की जिम्मेदारी होती थी।

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