स्पेशल स्टोरी – वाया : आजतक.

भाजपा आईटी सेल का नाम गत तीन चार वर्षों में प्रचलन में आया है, मगर संघ और भाजपा समर्थक देश में सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के समय से ही सक्रीय हो गए थे, ये बात अलग है कि तब ये संगठित नहीं थे, ये लोग संघ प्रायोजित अन्ना आंदोलन से साल भर पहले विधिवत संगठित हुए।

और इनको सोशल मीडिया पर संगठित करने का काम किया जनवरी 2011 को फेसबुक पर बने IAC (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) ग्रुप ने, देखने को ये IAC ग्रुप फेसबुक पर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को गति देने और सोशल मीडिया यूज़र्स को जोड़ने के लिए था मगर यही वो बैनर था जहाँ संघ और भाजपा समर्थक एकजुट हुए। और इनके एकजुट होने के पीछे एजेंडा था कांग्रेस सरकार को भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर या कांग्रेस या गाँधी परिवार के खिलाफ दुष्प्रचार कर उखाड़ फेंकना।

इसके लिए इन सब एकजुट हुए लोगों ने (जिन्हे अपने उक्त लेख में आजतक ने मोदी के साइबर हिंदू योद्धा और ‘हिंदुत्व’ की ऑनलाइन आर्मी के कमांडर कहा है) ने सोशल मीडिया को ही हथियार बनाया। ये आज से आठ साल पहले की रणनीति थी जो संघ और भाजपा समर्थकों ने एकजुट होकर बनाई थी और इसके पीछे बड़े बड़े दिग्गजों के दिमाग और योजनाएं काम कर रही थीं।

उसके बाद अन्ना आंदोलन और बाबा रामदेव का काला धन विरोधी ड्रामा किसे याद नहीं है। IAC के बैनर तले रचा गया भ्रष्टाचार विरोधी नाटक सफल हुआ और 2014 में भाजपा को सत्ता प्राप्त हुई। यही वो समय था जब मोदी के साइबर हिंदू योद्धा और ‘हिंदुत्व’ की ऑनलाइन आर्मी के कमांडर सोशल मीडिया पर मिली इस सफलता से उत्साहित होकर एकजुट होते गए।

चुनावों में सोशल मीडिया के अहम् योगदान को देखते हुए इन लोगों ने सोशल मीडिया जैसे हथियार को जमकर धार दी और अपना नेटवर्क मज़बूत किया, और इसका परिणाम हम 2014 और वर्तमान 2019 के चुनावों में देख चुके हैं, ये अलग बात है कि पिछले पांच सालों में देश के मीडिया का बड़ा हिस्सा भी ‘मैनेज’ कर लिया गया।

आगे ‘मोदी के साइबर हिंदू योद्धा’ की बात करते हैं आजतक में प्रकाशित दो स्पेशल आलेखों की जो कि क्रमशः 5 और 6 नवम्बर 2013 को प्रकाशित हुए थे, पहला लेख 05 नवंबर 2013 को प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था ‘मोदी के साइबर हिंदू योद्धा’ और दूसरा लेख 06 नवंबर 2013 को प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था  ‘ये हैं हिंदुत्व’ की ऑनलाइन आर्मी के कमांडर’

बात करते हैं पहले लेख ‘मोदी के साइबर हिंदू योद्धा’ की, इस लेख में बताया गया है कि किस तरह से मोदी समर्थक प्रीति गांधी और 32 वर्षीय कंप्यूटर विशेषज्ञ विकास पांडेय की सुबह होती है, और वो दोनों अपनी एक सामानांतर दुनिया में जुट जाते हैं, ये लोग उस सामानांतर दुनिया यानी सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटी हैं, ट्विटर पर @MrsGandhi और @iSupportNaMo के नाम से परिचित गांधी और पांडेय के आखिरी अपडेट यानी (5 और 6 नवम्बर 2013 ) तक ही क्रमश: 30,000 और 18,000 फॉलोवर थे, ये दोनों इंटरनेट पर हिंदुत्व, बीजेपी और मोदी समर्थक उस बिरादरी के सबसे जाने-पहचाने चेहरे हैं जो सोशल मीडिया और इंटरनेट पर चलने वाली हर बहस में अपनी धाक जमा रही है।

‘यह बिरादरी मोटे तौर पर भले ही बीजेपी की सूचना-प्रौद्योगिकी शाखा यानी दिल्ली में पार्टी मुख्यालय 11, अशोक रोड पर सोशल मीडिया मैनेजरों और टेक्नीशियनों की 100 लोगों की टोली और पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की अहमदाबाद में यूनिट से निर्देश प्राप्त करती हो, लेकिन इसमें बहुआयामी और स्वतंत्र लोगों की भरमार है।’

‘ये लोग हमारे इर्दगिर्द चारों तरफ दिखते हैं, वे आपके दफ्तर में बगल के क्यूबिकल में या क्लास रूम में में बगल की टेबल पर बैठे हो सकते हैं, वे हमेशा अपने स्मार्टफोन पर इंटरनेट खंगालते मिलेंगे। वे एक-दूसरे से ऐसे नेटवर्क से जुड़े हैं जो विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक मंच पर ला रहा है, उन्हें लगता है कि उनकी आवाज सुनी जा रही है और सोशल मीडिया पर सक्रिय, उन्हीं की जैसी सोच वाले पॉलिटिकल एक्टिविस्ट उनकी बात को और दूर तक ले जा रहे हैं। ‘

‘इंटरनेट पर इस बिरादरी की प्रभावी पैठ का प्रमाण इंडिया टुडे समूह के इलेक्शन सर्वेक्षण में देखा जा सकता है,  इस सर्वेक्षण में आम चुनाव की तर्ज पर लोकसभा क्षेत्रों में इंटरनेट और मोबाइल पर लोगों को वोट करने को कहा गया था, मोबाइल फोन पर एक बार में एक पासवर्ड से मतपत्र खोलने का प्रावधान किया गया था ताकि एक मोबाइल नंबर से एक बार ही वोट दिया जा सके और धांधली की कोई गुंजाइश न रहे।’

’23 सितंबर से 30 अक्तूबर 2013 तक अप्रत्याशित रूप से कुल 5,56,460 वोट डालने वाले यूजर्स में से 3,38,401 ने बीजेपी को चुना, यहां तक कि चौतरफा मुकाबले वाले उत्तर प्रदेश में भी 87.1 प्रतिशत वोट बीजेपी के पक्ष में पड़े। इस सर्वेक्षण के नतीजे भले जमीनी हकीकत का बयान न कर रहे हों पर एक बात तो शर्तिया तौर पर साबित करते हैं कि इंटरनेट भगवा रंग में रंग चुका है।’

‘हिंदुत्व की ओर झुकी यह इंटरनेट बिरादरी कई बार गाली-गलौज पर उतर आती है, यह अमूमन धुर अल्पसंख्यक विरोधी और हमेशा सरकार विरोधी होती है, वह खुद को अब इंटरनेट हिंदू कहलाना पसंद करती है। प्रीती गांधी कहती हैं, ”जब मुझे कोई संघी या दक्षिणपंथी या इंटरनेट हिंदू कहता है तो मेरा मन खिल उठता है, मुझे लगता है कि कहूं ‘वाह ! क्या बात है’.” उनकी भाषा युवा और बोलचाल वाली है। (अमेरिकी किशोरों वाले अंदाज में हर वाक्य में ‘ओ वाव लाइक’ की अभ्यस्त गांधी भी इसकी पुष्टि करती हैं.) लेकिन उनका एजेंडा पोस्ट मॉडर्न और परंपरा का मिश्रण है।’

‘यह बिरादरी खानदानशाही की राजनीति खासकर नेहरू-गांधी खानदान की विरोधी है लेकिन बीजेपी और उसके शिवसेना जैसे सहयोगियों में बाप-बेटे की राजनीति पर वह कोई राय नहीं रखती. वह अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ ऐसे तेवर के साथ कहती है जिसका अर्थ बड़ी आसानी से हिंदू आधिपत्य की आकांक्षा या मुस्लिम विरोध लगाया जा सकता है। ये लोग दलित और ओबीसी आरक्षण के विरोधी हैं, खासकर इसलिए क्योंकि उस पर ढंग से अमल नहीं होता, उन्हें देश की आंतरिक सुरक्षा की चिंता है, लेकिन सबसे बढ़कर वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं।’

’35 वर्षीय शिल्पी तिवारी की पढ़ाई आर्किटेक्ट की है और अब वे अपने पति के साथ एक कंसल्टेंसी फर्म चलाती हैं. शिल्पी बताती हैं कि पहले वे सरकारी परियोजनाओं में शामिल रही हैं. उन्हें सबसे पहले अण्णा हजारे और उनके जन लोकपाल आंदोलन ने आकर्षित किया. वे कहती हैं, ”मैं रामलीला मैदान में हजारों लोगों के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रही थी।”

‘बाद में जब कांग्रेस और सरकार विरोधी भावनाएं तीखी होने लगीं तब उनका झुकाव बीजेपी और खासकर मोदी की ओर हुआ, अब तिवारी और उनकी तरह के तमाम लोग यह मानते हैं कि उनकी कोशिशों से ही मोदी बीजेपी में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की रेस जीत सके हैं, वे मुस्करा कर कहती हैं, ”हमने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि उसे हासिल करवा दिया।”

‘दिल्ली में इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट की निदेशक अंजा कोवाक्स के मुताबिक, मध्यवर्गीय युवा बीजेपी समर्थक पूरी तरह इंटरनेट प्रसार की देन हैं. वे कहती हैं, ”दरअसल, इस इंटरनेट आंदोलन की अगुआई तकनीक के उन एक्सपर्ट्स ने की है जो विदेश चले गए हैं लेकिन हर वक्त भारत से जुडऩे के मौके की तलाश में रहते हैं। मध्यवर्गीय और आर्थिक तरक्की की आकांक्षा रखने वाले युवा, जो ज्यादातर इंटरनेट से भी जुड़े हैं, स्वाभाविक तौर पर कम्युनिस्टों के बदले बीजेपी की ओर आकर्षित होंगे।”

‘आइआरआइएस नॉलेज फाउंडेशन और इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2014 के आम चुनावों में सोशल मीडिया 160 लोकसभा सीटों को प्रभावित करने जा रहा है। अक्तूबर 2013 में गूगल का सर्वेक्षण कहता है कि इंटरनेट से जुड़े सभी शहरी मतदाताओं का करीब 42 प्रतिशत अभी भी मन नहीं बना पाया है कि वह किसको वोट दे. इस तरह अभी एक बड़ा वोट बैंक किसी भी ओर झुक सकता है। हालांकि इसमें किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए कि ज्यादातर शहरी मतदाताओं ने गूगल पर सबसे ज्यादा किसी नेता को तलाशा है तो वे हैं नरेंद्र मोदी।’

‘वैसे तो ये इंटरनेट योद्धा कई भगवा खेमे से हैं, लेकिन इनका बड़ा हिस्सा मोदी के प्रति बड़ी शिद्दत से आकर्षित है, उसे लगता है कि मोदी कोई गलती नहीं करेंगे। पांडेय, तिवारी और किशोरावस्था से ही आरएसएस- बीजेपी से जुड़े पटकाधारी सिख 27 वर्षीय तेजिंदरपाल सिंह बग्गा का कहना है कि वे मोदी के अंध भक्त नहीं हैं, बल्कि उनकी नीतियों, उनके विकास मंत्र और उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण उनका समर्थन करते हैं। ‘

‘लेकिन, जब उनसे पूछा गया कि क्या मोदी ने अपने समूचे राजनैतिक करिअर में ऐसा कुछ किया, जिससे वे सहमत नहीं हो पाते हैं तो किसी के पास उनकी कोई भी शिकायत नहीं थी. हमने पूछा, ”तो क्या वे हमेशा सही रहे हैं?” सभी ने कमोबेश एक ही तरीके से धीरे से जवाब दिया, ”नहीं” लेकिन किसी के पास इस सवाल का खंडन करने वाला कोई उत्तर नहीं था। ‘

‘ऐसा लगता है कि अधकचरी राजनैतिक समझ और भावुक किस्म की बातें ही ऑनलाइन हिंदू स्पेस में छाई हुई हैं, इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब पैट्रियट्स ऐंड पार्टीजन्स में एक अध्याय ‘हिंदुत्व हेट मेल’ को समर्पित किया है, जो उन्हें कई वर्षों में लेखक और स्तंभकार के रूप में प्राप्त हुए हैं, कई ईमेल और संपादक के नाम पत्रों में उन्हें गांधी परिवार का टट्टू वगैरह बताया गया। ‘

‘गुहा का मानना है कि उनका साबका ”ऐसे लोगों से पड़ा जो मुंह अंधेरे उठते हैं, एक गिलास गाय का दूध पीते हैं, सूर्य को नमस्कार करते हैं और फिर इंटरनेट खोलकर आज के सेकुलरों को तोहमत भेजने के लिए मुहावरे की तलाश करने में जुट जाते हैं।”

‘गुहा की बात पर शब्दश: यकीन करने के अपने खतरे हैं. आज के हिंदू ऑनलाइन योद्धा के उनके वर्णन में आंशिक सचाई ही है. अब इस बिरादरी की एक बड़ी संख्या सुबह उठती है, जॉगिंग करने जाती है, एक कप ब्लैक कॉफी का स्वाद चखती है और हजारों एक्जिक्यूटिक्स तरह अपनी एसयूवी स्टार्ट कर लेती है. इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, आइटी प्रोफेशनल, नौकरशाह, कॉल सेंटर में काम करने वाले, पत्रकार और व्यापार-उद्योग धंधे वाले हैं।’

‘वे अपने काम में निपुण हैं लेकिन अक्सर उनका उथला राजनैतिक ज्ञान उन्हें हास्यास्पद बना देता है और वे बेवजह आक्रामक हो उठते हैं. उनकी दुनिया में सब कुछ काला-सफेद ही होता है, उस पर और किसी तरह का रंग चढ़ता ही नहीं।’

प्रीति गांधी AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी के पिछले दिसंबर में नफरत भरे भाषण की चर्चा करते हुए कहती हैं, ”हम मुस्लिम विरोधी नहीं हैं लेकिन अगर आप हमें मजबूर कर देंगे तो प्रतिक्रिया होनी लाजिमी ही है. वरना, मेरे कुछ अच्छे दोस्त मुसलमान हैं.” बिडंबना यह है कि ऑनलाइन मुहावरों की एक गाइड ‘अर्बन डिक्शनरी’ के मुताबिक, ‘मेरे कुछ अच्छे दोस्त’ का अर्थ ”कुछ पूर्वाग्रहग्रस्त लोग ऐसा कहते हैं जब वे अपने पूर्वाग्रह के चक्कर में बुरे फंसते हैं।”

‘इंटरनेट पर बीजेपी के वर्चस्व पर कांग्रेस के प्रवक्ता संजय झ कहते हैं, ”दुष्प्रचार ऐसे ही काम करता है. बार-बार और ऊंची आवाज में एक ही बात बोलनी पड़ती है. वे लोगों पर शब्दों और विचारों की बौछार कर देते हैं। पिछले साल तक सोशल मीडिया पर कांग्रेस की उपस्थिति लगभग नहीं के बराबर थी, इसलिए वे इतना चढ़ गए। अब कांग्रेस ने भी इस पर काम शुरू किया है. सोशल मीडिया ऐसा मंच है, जिसमें पहले पहुंचने वाले की बढ़त थोड़े समय में ही खत्म की जा सकती है।”

इसके बाद बात करते हैं आजतक में प्रकाशित दूसरें लेख की जिसका शीर्षक था ‘ये हैं ‘हिंदुत्व’ की ऑनलाइन आर्मी के कमांडर’ :-

इस लेख में बताया गया था कि इंटरनेट हिन्दू (सोशल मीडिया पर मौजूद मोदी समर्थकों) को कैसे पहचानें ?

‘इंटरनेट हिंदू यानी सोशल मीडिया पर विचारधारा और चुनाव को लेकर जेहादी तेवरों के साथ सक्रिय मोदी और हिंदुत्व समर्थक। वे आपके दफ्तर के किसी क्यूबिकल या क्लासरूम की बगल वाली बेंच पर बैठे हो सकते हैं, राह चलते आप उन चेहरों से टकरा सकते हैं, दोस्तों की किसी पार्टी में वह आपको अपने स्मार्टफोन के साथ व्यस्त नजर आ सकते हैं, उनकी यह पहचान जग जाहिर भी हो सकती है और नहीं भी. वे ‘इंटरनेट हिंदू’ हैं।

‘इंटरनेट हिंदू’ ? आखिर यह क्या बला है ? कभी गालियों की उग्र और अशालीन भाषा में बात करता, कभी उसकी जुबान से निकले बोलों से ऐसा लगता गोया वह मुसलमानों को सख्त नापसंद करता हो और हमेशा ही मौजूदा सरकार को नफरत की हद तक नापसंद करता. सरकार, राजनीति पर साफ और निष्ठुरता की हद तक तीखी सोच सामने रखता।’

‘एक तबका कह सकता है कि इन समर्थकों को बीजेपी के मुख्यालय 11 अशोक रोड और अहमदाबाद स्थित टीम मोदी के सोशल मीडिया प्रबंधक संचालित करते हैं।’

‘मगर सच यह है कि ये इंटरनेट पर सक्रिय देशवासियों की वो जमात है, जो किसी तयशुदा राजनीतिक नतीजे तक पहुंचने के लिए काम करने के बजाय अपने गुस्से और सोच को एक व्यक्ति या विचार के साथ जोड़कर अपने ही मनमर्जी के ढंग से संचालित हो रही है।’

इस वर्चुअल दुनिया में उन्हें अपने जैसे लोगों का भरा पूरा परिवार मिल गया है, जिनके साथ मिलकर वे बहस शुरू कर रहे हैं या किसी व्यक्ति या घटना की वजह से शुरू हुए विचार को अपने रंग में रंग रहे हैं, इनमें कुछ जाने-माने नाम हैं तो कुछ ‘नेक्स्ट डोर’ आम लोग भी।’

इंटरनेट हिंदुओं को ऐसे पहचानें :
———————————–
1. अपनी ट्विटर प्रोफाइल में ‘प्राउड हिंदू’, ‘प्राउड भारतीय’, ‘प्राउड देशभक्त’ या ‘प्राउड नैशनलिस्ट’ लिखकर रखते हैं.
2. कुछ खास शब्दों का बार-बार इस्तेमाल, जैसे- हेट, स्यूडो सिक्युलर (Pseudo Sickular), कॉन्गीस, सीआरटीस, लिबरल, तुष्टिकरण, पेड मीडिया.
3. ट्विटर प्रोफाइल में ‘अखंड भारत’, ‘आर्यन’ और ‘भारतीय’ जैसे शब्द.
4. नरेंद्र मोदी के लिए प्यार और इस्लाम और ईसाई धर्म के लिए नफरत.
5. हिंदू देवताओं की तस्वीर, खास तौर से पुरुष देवताओं की या ‘ओम’ जैसे हिंदू प्रतीकों की तस्वीर.
6. मोदी की आलोचना करने वाले ट्वीट पर भड़क उठेंगे या उसका मजाक उड़ाएंगे.
7. ढेर सारे इंटरनेट हिंदू उनको भी फॉलो कर रहे होंगे और वे खुद भी ढेर सारों को.
8. नरेंद्र मोदी का लगभग हर ट्वीट रीट्वीट करेंगे.

इन बीतें सालों में ये सब मिलकर भाजपा आईटी सेल के बैनर तले इकठ्ठे होकर और ताक़तवर हो गए हैं, इसके अलावा संघ और भाजपा समर्थक पोर्टल्स और कुछ सुदर्शन न्यूज़ चैनल्स जैसे न्यूज़ चैनल्स ने मिलकर इस ताक़त को दुगुना कर दिया है, 5 अप्रेल 2019 को MEDIAVIGIL में एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था ‘हफपोस्‍ट की विस्‍फोटक पड़ताल: देश का सबसे बड़ा फेक न्‍यूज़ नेटवर्क अमित शाह चलाते हैं !’

2019 के लोकसभा चुनावों की ही बात करें तो इसमें भी सोशल मीडिया ने अहम् रोल अदा किया है, और इस रोले के पीछे इसी इस कथित ‘मोदी के साइबर हिंदू यौद्धाओं’ की मेहनत रही है, 21 मई 2019 के अमर उजाला में एक खबर प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था कि  ‘दो लाख ग्रुप बने भाजपा की ताक़त’, ट्वीटर फेसबुक नहीं, इस बार व्हाट्सएप बना भाजपा का हथियार’।

इन सबको देखते हुए कह सकते हैं की सोशल मीडिया सहित प्रसार माध्यमों तक पर क़ब्ज़ा किये इस कथित ‘मोदी के साइबर हिंदू योद्धा’ का मुक़ाबला करने की ताक़त और कौशल फिलहाल तो किसी भी राजनैतिक दल में दूर तक नज़र नहीं आती। सोशल मीडिया की ताक़त और प्रभाव का दूरंदेशी से इस्तेमाल करने वाली भाजपा और संघ आज इसी लिए प्रसार माध्यमों पर छाये हुए हैं।

आजतक में ये दोनों लेख 2013 यानि आज से 6 साल पहले प्रकाशित हुए थे, इन गत 6 सालों में ये ‘हिंदुत्व’ की ऑनलाइन आर्मी’ और ‘मोदी के साइबर हिंदू योद्धा’ इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि देश के सभी सोशल मीडिया यूज़र्स या राजनैतिक दलों के आईटी सेल्स भी मिलकर भी इनका मुक़ाबला नहीं कर सकते, इसकी बड़ी वजह ये है कि ये लोग एक एजेंडे को लेकर एकराय और एकजुट हैं, वहीँ इनके खिलाफ या इनसे असहमत बिरादरी अपने अपने एजेंडों, राजनैतिक मानकों और विचारधाराओं को लेकर पूरी तरह से बिखरी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.