वो 28 मई 1994 का दिन था जब महाराष्ट्र और देश के कई हिस्सों से 11 मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था उन पर आरोप था कि ये लोग बाबरी मस्जिद शहीद किये जाने का बदला लेना और कश्मीर में आतंकी ट्रेनिंग लेने की योजनाएं बना रहे हैं, तब इनपर सेक्शन 120 (B) और IPC की धारा 153 और सेक्शन 3 (3) (4) (5) और TADA एक्ट की धारा 4 (1) (4) लगाईं गयीं थीं।
TwoCircele.net के अनुसार बुधवार को नासिक की विशेष टाडा अदालत के न्यायाधीश एस सी खाती ने इन सभी 11 मुसलमानों को जांच के दौरान साक्ष्यों के अभाव और टाडा दिशा निर्देशों के उल्लंघन का हवाला देते हुए बरी कर दिया।
जिन 11 लोगों को बरी किया गया है उनके नाम हैं : जमील अहमद अब्दुल्लाह खान, यूनुस मोहम्मद इस्हाक़, फ़ारूक़ नज़ीर खान, युसूफ गुलाब खान, अय्यूब इस्माइल खान, वसीमउद्दीन शम्सुद्दीन, शेखा शफी शैख़ अज़ीज़, अशफ़ाक़ सईद मुर्तुज़ा मीर, मुमताज़ सईद मुर्तुज़ा मीर, हारून मोहम्मद बफाती और मौलाना अब्दुल क़दीर हबीबी।
बारी किये गए ये सभी 11 लोग उच्च शिक्षित युवा थे, जिनकी ज़िन्दगी के क़ीमती साल जाँच एजेंसियों की साजिशन गिरफ्तारियों और क़ैद के चलते बर्बाद हो गए हैं।
जमीयत उलेमा हिंद ने इनकी रिहाई के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी है, जमीयत उलेमा हिंद के वकील भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (बी), 120 (ए) और 3 (3), (4) (5), (4) के तहत आरोपित इन लोगों की रिहाई के लिए प्रयास कर रहे थे।
जमीयत उलेमा हिंद के कानूनी प्रकोष्ठ के प्रभारी गुलज़ार आज़मी ने कहा कि , “इन्साफ से इनकार नहीं किया गया है, लेकिन इन लोगों ने ज़िन्दगी के इतने साल खो दिए हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या सरकार उनके नुकसान की भरपाई करेगी और उनकी गरिमा लौटाएगी? इन सभी के परिवारों को भी बहुत नुकसान उठाना पड़ा है जबकि कइयों के परिवारों के कुछ सदस्यों की मृत्यु भी हो चुकी है। ”
इन 11 लोगों के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले जमीयत उलेमा हिंद के वकीलों की टीम में एडवोकेट शेफ शेख, एडवोकेट मतीन शेख, एडवोकेटरज्जाक शेख, एडवोकेट शाहिद नदीम अंसारी, एडवोकेट मोहम्मद अरशद, एडवोकेट अंसारी तंबोली और अन्य सहयोगी हैं।
ये पहला मौक़ा नहीं है जब इस देश के मुसलमान दस पंद्रह बीस पच्चीस सालों बाद बेगुनाह साबित हुए हैं उन्हें इंसाफ मिला (?) है, इससे पहले भी ऐसे कई बहुत से मामले सामने आये हैं जिनमें मुसलमानों को 10 20 25 सालों बाद निर्दोष क़रार दिया गया।
इसमें सबसे चर्चित था कर्नाटक के फार्मेसी सेकेंड ईयर के स्टूडेंट निसार को 23 साल बाद निर्दोष बता कर रिहा करना, और उनकी कहानी के अलावा भी कई ऐसे मामले थे जिनमें दशकों बाद मुसलमानों को रिहाई मिली थी, उनके बारे में आप मेरे इस BLOG https://asifalihashmi.blogspot.com/2016/05/blog-post_30.html पर पढ़ सकते हैं।
ऐसा ही एक बड़ा मामला था जिसमें मालेगांव विस्फोट में महाराष्ट्र ATS द्वारा पकडे गए बेगुनाह सभी 9 लोगों को 10 साल बाद मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट ने सबूत के अभाव में बरी कर दिया था, इसके बारे में भी विस्तार से मेरे इस दूसरे Blog https://asifalihashmi.blogspot.com/2016/05/blog-post_15.html में पढ़ सकते हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जनरल सेक्रेटरी महमूद मदनी कहते हैं, ‘‘जब कोई वारदात होती है तो पुलिस पर दबाव होता है और उस दबाव को कम करने के लिए वह गर्दन के नाप का फंदा तलाशती है. उसे इस तरह पेश किया जाता है कि मुलजिम को मुजरिम बताया जाता है, इतना ही नहीं, बार काउंसिलें प्रस्ताव पारित कर केस लडऩे से इनकार कर देती हैं, सामाजिक बहिष्कार हो जाता है. पुलिस के निकम्मेपन और कथित सभ्य समाज का जुल्म एक मासूम का जीवन बरबाद कर देता है.’’ कई बार संदिग्धों का केस लडऩे वाले वकीलों को धमकी मिलती है।
मुंबई के वकील शाहिद आजमी की हत्या इसकी मिसाल है. दिल्ली में आतंक के फर्जी मामले में जेल की सजा काट चुके शाहिद ने मुंबई में बेगुनाहों की पैरवी का प्रण किया था।
TADA के आरोपों से 25 साल बाद बरी हुए इन 11 मुसलमानों को असल इंसाफ तभी मिल पायेगा जब इनपर झूठे आरोप लगाकर इनकी ज़िन्दगी के क़ीमती 25 साल जेल में ख़राब करने वालों को इसकी सजा मिलेगी।
यहाँ जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जनरल सेक्रेटरी महमूद मदनी साहब और उनकी क़ानूनी टीम की कोशिशों को सलाम जो इन बेगुनाह मुसलमानों को इंसाफ दिलाने के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं।
चित्र साभार : TwoCircle.net
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