नोएडा के सेक्टर 58 स्थित एक सार्वजनिक पार्क में पिछले पांच साल से आस पास की निजी कंपनियों के मुस्लिम कर्मचारी हर शुक्रवार को नमाज़ पढ़ा करते थे, मगर पिछले दिनों गौतमबुद्धनगर प्रशासन व नोएडा पुलिस ने पार्क में नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी थी और इसके बाद शुक्रवार को दो क़दम आगे बढ़ते हुए प्रशासन और पुलिस ने साजिश के तहत उस पार्क में पानी छोड़ दिया था ताकि उस जगह मुसलमान नमाज़ नहीं पढ़ पाएं।
मगर शायद प्रशासन और पुलिस ये भूल गई थी कि उनकी इस हरकत से इन नमाज़ियों की नमाज़ नहीं छूटने वाली थी, इन्होने क्या सोचा था कि जिस सार्वजनिक पार्क में पिछले पांच साल से मुस्लिम नमाज़ पढ़ते आ रहे थे, अचानक से एक आदेश जारी कर मुसलमानों को नमाज़ के लिए रोक कर खुश हो जायेंगे, मुसलमानों की नमाज़ छुड़ा दोगे ? अपनी पीठ थपथपा लेंगे, या उन्हें हैरान परेशान कर अपने नंबर बढ़वा लेंगे ?
अल्लाह एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा तीसरा खोलता भी है, Hindustan Times की खबर के अनुसार नोएडा के सेक्टर 58 की तीन निजी फर्मों ने मुस्लिम कर्मचारियों को जुमे की नमाज़ के लिए अपनी छतों पर जगह प्रदान कर एक मिसाल क़ायम की है।
सेक्टर 58 के ही एक होज़री कंपनी के मालिक ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताया कि वो 12 साल से अपनी इमारत की छत मुस्लिम कर्मचारियों को जुमे की नमाज़ अदा करने के लिए देते आये हैं, और साथ ही नमाज़ के लिए एक इमाम भी नियुक्त किया हुआ है।
इमाम मोहम्मद अब्बास बताते हैं कि वो 12 साल से यहाँ मुस्लिम कर्मचारियों को नमाज़ पढ़वाते आये हैं, और साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि होज़री कंपनी के मालिक ने अपने हिन्दू कर्मचारियों के लिए भी एक पुजारी की व्यवस्था की हुई है, मोहम्मद अब्बास कहते हैं कि ये सब दशकों से चली आ रही सांप्रदायिक सौहार्द की ही एक उम्दा मिसाल है|
और देखा जाए तो यही हिंदुस्तान का ताना बाना और इसकी आत्मा भी है, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता, मार नहीं सकता, ऐसी साजिशें करने वालों की हर साजिश को इस देश ने देर सवेर ख़ारिज ही किया है।
आज मुझे इसी बात पर शायर वसीम बरेलवी के ये अशआर याद आ गए :-
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा,
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा ।
तुम गिराने में लगे थे, तुम ने सोचा भी नहीं ,
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा ।
मुझ को चलने दो, अकेला है अभी मेरा सफ़र ,
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा ।।