आधार की अनिवार्यता, नोटबंदी और GST के बाद मोदी सरकार एक और बिल लाने के लिए आतुर हो रही है, जिसकी तैयारी काफी पहले 2015 में ही पूरी कर ली गयी थी, वो है DNA प्रोफाइलिंग बिल जिसे अब DNA Technology Regulation Bill (डीएनए प्रौद्योगिकी विधेयक) नाम दे दिया गया है।

यह DNA Technology Regulation Bill बिल लगभग पूरा तैयार हो चुका है, आधार के बहाने ‘निजता आपका मूल अधिकार है या नहीं’ तक मुद्दा इसी लिए उछाला गया है ताकि इस विवादित बिल के लिए रास्ता साफ़ हो सके, इस निजता के बहाने ही DNA प्रोफाइलिंग बिल की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही थी।

भारत के नागरिकों को निजता का अधिकार है या नहीं ? क्या यह मौलिक अधिकार है ? ये सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत में पूछ कर एक सिरहन-सी पैदा कर दी थी। आधार को अनिवार्य बनाने पर तुली मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ कई नागरिक संगठनों और वकील प्रशांत भूषण ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, तब 24 अगस्त 2017 को नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से आधार की अनिवार्यता पर फैसला सुनाते हुए निर्णय दिया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है।

आधार के बाद अब देश में एक बार फिर से निजता के अधिकार पर बहस प्रारम्भ होने वाली है, इसका कारण है सरकार द्वारा तैयार किया गया ‘DNA प्रोफाइलिंग बिल’, 2003 में DNA प्रोफाइलिंग एडवाइजरी कमेटी बनने के बाद पहली बार DNA टेक्नोलॉजी को रेगुलेट करने की कोशिश शुरू की गई थी, और इसके लिए ड्राफ्ट तैयार किया गया।

July 2017 में Law Commission ने इसे मंजूरी दे दी थी लेकिन तब आधार को लेकर निजता से जुड़े कई मुद्दे ऐसे थे जिसे लेकर बहस चल रही थी और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित थे, अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय बेंच ने सर्वसम्मति से निजता को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित कर दिया था। इसके बाद कुछ संशोधनों के बाद DNA Technology Regulation Bill (डीएनए टेक्नोलॉजी रेग्युलेशन बिल) 2019 को इसी साल जनवरी में लोकसभा से पास करा लिया गया लेकिन तब ये राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और ये बिल रद्द हो गया था।

क्या है DNA प्रोफाइलिंग बिल या DNA Technology Regulation Bill :-

बहुमत के साथ जब मोदी सरकार सत्ता में वापस लौटी तो इसे July 2019 में DNA Technology Regulation Bill (डीएनए प्रौद्योगिकी विधेयक) एक बार फिर सीधे राज्यसभा में पेश किया गया है, अभी इसे लोकसभा से पास कराना बाकी है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने DNA Technology Regulation Bill 2018 को मंजूरी दे दी थी और अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पास करा लिया था लेकिन राज्यसभा में ये पास नहीं हो पाया था। इस बिल के प्रति सरकार का उतावलापन बिल के आलोचकों और विशेषज्ञों को हैरान कर रहा है। नागरिक संगठनों का मानना है कि गहन अध्ययन और व्यापक बहस के बिना इस बिल को कानूनी शक्ल देना सही नहीं होगा।

विशेषज्ञों के अनुसार बिल को लेकर देश भर में बड़ा विवाद उठ सकता है। बिल के तहत DNA प्रोफाइलिंग के लिए बायोलॉजिकल पदार्थ, जैसे खून के नमूने, बाल, और माउथ स्वैब (लार से लिपटा कॉटन या गॉज) और इसके साथ ही इनटिमेट बॉडी सैंपल्स (शरीर के प्राइवेट पार्ट्स का नमूना) इकट्ठा करने की योजना बना रही है। बिल के मसौदे में जिंदा लोगों के भी प्राइवेट पार्ट्स के भी सैंपल लिए जाने की अनुशंसा की गई है।

DNA प्रोफाइलिंग विधेयक के प्रावधान तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। इस विधेयक के मसौदे में जिंदा लोगों के शरीर से जांच के लिए नमूने लेने का प्रावधान किया गया है। नए कानून में व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट बॉडी सैंपल (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने की तैयारी चल रही है। इसमें गुप्तांग, कूल्हे, स्त्री के स्तनों के नमूने और फोटोज़ लेने की तैयारी हो रही है। जैसा कि Times of India ने अपनी रिपोर्ट में बताया था।

गुप्तांगों का बाहरी परीक्षण के अलावा Pubic Hairs (गुदा के बालों) से सैंपल्स लेने का भी अधिकार जांच एजेंसियों को दिया जा रहा है। विधेयक में शरीर से न केवल नमूने लिए जाएंगे बल्कि उस हिस्से की फोटो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी छूट होगी। यानी एक व्यक्ति के शरीर का सारा ब्यौरा, उसका DNA प्रोफाइल राज्य के पास होगा। हालाँकि सरकार का कहना है कि देश के हर व्यक्ति का DNA प्रोफाइल इक्ट्ठा करने की योजना नहीं है, मगर लोगों को शंका है।

अभी तो कहा जा रहा है कि DNA DATA सार्वजनिक नहीं किया जाएगा, लेकिन इस आश्वासन पर खुद ही वैज्ञानिक तैयार नहीं है। वैज्ञानिक दिनेश अब्रॉल का कहना है कि यह सीधे-सीधे नागरिकों की निजता पर हमला है और बड़ी कंपनियों के लिए भारतीय शरीर को प्रयोग के लिए गिनी पिग बनाने की खूली छूट है। इसका इस्तेमाल किसी जाति-किसी वर्ग, किसी समुदाय के खिलाफ किया जा सकता है। ऐसी कोई कानून किसी भी आजाद देश के नागरिक को गवारा नहीं हो सकता।

सरकार के अनुसार क्यों जरूरी है DNA Technology Regulation Bill :-

सरकार का तर्क है कि वर्तमान में अपराधी प्लास्टिक सर्जरी तथा अन्य मेडिकल सुविधाओं के चलते अपना रंग-रूप बदल लेते हैं, जिससे उनकी पहचान मुश्किल हो जाती है। डीएनए बिल से ऐसा नहीं हो सकेगा। DNA बिल पारित होने से अपराधी की त्वरित पहचान संभव हो सकेगी, खास तौर पर रेप और हत्या जैसे मामलों में अपराधी को पकड़ना सहज हो सकेगा।

इस बिल के मसौदे दस्तावेज में एक और बेहद चिंताजन पहलू भी है और वह यह कि इसका इस्तेमाल सिर्फ आपराधिक मामलों के निपटारे में ही नहीं बल्कि दीवानी मामलों में किया जाएगा। मिसाल के तौर पर सेरोगेसी, मातृत्व या पितृत्व, अंग प्रत्यारोपण, इमिग्रेशन और व्यक्ति की शिनाक्चत आदि में भी डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल की बात कही गई है।

और तो और DNA प्रोफाइल के जरिए जमा की गई जानकारी का प्रयोग जंनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जाएगा। इसे लेकर पहले अल्पसंख्यक समुदायों, आदिवासियों और दलितों में गहरी आशंकाएं हैं। इस तरह से जुटाई गई जानकारी को इन तमाम तबकों को निशाने पर लेने, उन्हें सामाजिक रूप से अपमानित करने और नियंत्रित करने में किया जा सकता है।

जहां तक अपराधियों को नियंत्रित करने, उनका ट्रैक रखने और उनसे संबंधित सारी जानकारियों को एक जगह जमा करने ताकि वह प्लासिट सर्जरी आदि कराकर भी बच न पाए-ये सब इस प्रस्तावित विधेयक का मुख्य लक्ष्य बताया जा रहा। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह फोरेंसिक प्रक्रिया केवल सजायाफ्ता के लिए ही नहीं बल्कि विचाराधीन कैदियों पर भी अपनाई जाएगी।

केंद्र सरकार ने DNA सैंपल इकट्ठा करने, उनका विश्लेषण करने के लिए मानक प्रयोगशालाएं बनाने के साथ ही क्षेत्रीय और राष्ट्रीय DNA DATA BANK बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस पूरी प्रक्रिया की देखरेख DNA BOARD करेगा।DNA DATA BANK के मैनेजर कोर्ट या जाँच एजेंसियों के जाँच अधिकारियों (IO) को बैंक में मौजूद डीएनए सैंपलों का ब्योरा देंगे।

ये मसौदा बिल गई आपत्त‌ियों को सिरे से नजरंदाज करके संसद की दहलीज तक पहुंचा है। इस विधेयक के लिए जो उच्च स्तरीय समीक्षा कमेटी बनाई गई थी, जिसने लंबी अवधि तक सघन चर्चा हुई, उसके दो सदस्यों ने इन तमाम प्रावधानों की जमकर आपत्त‌ि जताई थी। लेकिन उन्हें हैरानी है कि उनकी आपत्त‌ियों को मसौदे में कोई जगह नहीं मिली और न ही उनका उल्लेख किया गया। इस समिति के जिन दो सदस्यों ने निजता का हनन करने वाले इन प्रावधानों को हटाने की मांग की थी, वे है अंतर्राष्टीय कानूनविद उषा रमानाथन और सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के निदेशक सुनील अब्राहम।

इस पूरे मसले पर उषा रमानाथन ने बताया कि यह विधेयक बेहद खतरनाक है। यह नागरिकों की निजता का खुलेआम उल्लंघन करते हुए राज्य और जांच एजेंसियों को व्यक्ति के जीवन ही नहीं, बल्कि शरीर पर भी अतिक्रमण करने की अपार छूट देता है। यह तानाशाही को बढ़ावा देने वाला है और कहीं से भी वैज्ञानिक नहीं है। खासतौर से आज के दौर में जब जानकारियां कहीं भी सुरक्षित नहीं रहती, तब व्यक्तियों की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारियों का क्या इस्तेमाल हो सकता है, इसका किसी को अंदाजा नहीं है। ऐसे में DNA DATA BANK बनाना कितना खतरनाक हो सकता है, इस बारे में समाज को सोचना चाहिए।

DNA Technology Regulation Bill के खतरे :-

  • व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट बॉडी सैंपल (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने का प्रावधान।
  • शरीर से न केवल नमूने लिए जाएंगे बल्कि उस हिस्से की फोटो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी छूट होगी
  • इसका इस्तेमाल सिर्फ आपराधिक मामलों के निपटारे में ही नहीं बल्कि दीवानी मामलों में होगा।
  • इसका प्रयोग जंनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जा सकता है।

दिल्ली के Forensic Medicine और कानून के जानकार डॉ. गौरव अग्रवाल ने इस बिल पर कई सवाल उठाये हैं, उनके मुताबिक DNA प्रोफाइलिंग आधार की तरह बनता जाएगा और धीरे-धीरे पूरे समाज को अपनी चपेट में ले लेगा, डॉ अग्रवाल ने कहा, ‘सरकार का इरादा ठीक हो सकता है लेकिन हम अब हर वक्त सरकार की निगरानी में रहने वाले देश बनने की ओर बढ़ रहे हैं। मिसाल के तौर पर सिविल केस में DNA प्रोफाइल की कोई जरूरत नहीं है, फिंगर प्रिंट ही काफी हैं, कई मामलों में तो ये DNA जांच से भी बेहतर है जैसे जुड़वा लोगों के मामले में डीएनए एक होगा, लेकिन फिंगर प्रिंट अलग होंगे।’

डॉ. गौरव अग्रवाल का कहना है कि DNA सैंपल रखने की जरूरत नहीं है, इसका बाद में गलत इस्तेमाल हो सकता है.संदिग्धों के DNA सैंपल लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. दुनिया भर में सिर्फ बेहद खतरनाक किस्म के अपराधों में ही DNA सैंपल लिए जाते हैं. न कि किसी भी तरह के संदिग्धों के सैंपल लिए जाते हैं, DNA डाटा को हैक किया जा सकता है और एक बार तैयार किया डिजिटल डाटा कभी खत्म नहीं होता उसे मिटाने के बाद भी फिर से रिट्रिव यानी वापस लाया जा सकता है।

डॉ. गौरव अग्रवाल का मानना है कि भारत को पहले निजता और व्यक्तिगत डाटा को बचाने से जुड़े कानून बनाने की जरूरत है, खासतौर पर तब जब सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया है, वो चेतावनी भी देते हैं और कहते हैं, ‘कड़े कानूनों की कमी और नियमों की गैरमौजूदगी के चलते भारत में DNA सैंपल के गलत इस्तेमाल का बड़ा खतरा है।’

Sources :

  1. Times of India
  2. NDTV
  3. SADDAHAQ
  4. The Hindu Business Line
  5. India Today

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