डॉक्टर्स की कमी से जूझता हमारा देश स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बांग्लादेश, चीन, भूटान और श्रीलंका समेत अपने कई पड़ोसी देशों से पीछे हैं। इसका खुलासा शोध एजेंसी ‘लैंसेट’ ने अपने ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ नामक अध्ययन में किया है। इसके अनुसार, भारत स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता व पहुंच के मामले में 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है।

कोरोना महामारी को छोड़ भी दें तो भी हमारे देश में 600,000 डॉक्टर्स और 2,000,000 नर्सों की कमी पहले से ही चली आ रही है। देश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर करीब 41।32 % की कमी है, यानी सरकार की तरफ से कुल 158,417 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 65,467 पद अब भी खाली हैं। अगर कोरोना वायरस फैला तो इतने कम डॉक्टर्स के साथ भारत इस महामारी से कैसे लड़ पाएगा ? जबकि, एक्सपर्ट डॉक्टरों की करीब 82 % कमी है।

 

इस मामले पर स्वास्थ्य मामलों के जानकार अरविंद मिश्रा कहते हैं कि सरकार ने ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे के नाम पर अस्पतालों और हेल्थ सेंटर की इमारतें तो खड़ी कर दी हैं लेकिन इनको क्रियाशील बनाने के लिए मानव संसाधनों की भारी कमी है। क्या हो अगर चीन की तरह ग्रामीण भारत में कोरोना का हमला हो जाए ? जवाब यह है कि हम एक भी जान नहीं बचा पाएंगे। क्योंकि इस बीमारी से लड़ने के लिए देश में हर स्तर पर डॉक्टरों की कमी है।

अगर देश में कोरोना वायरस फैलता है तो भारत में लोगों के इलाज के लिए डॉक्टरों की भयंकर किल्लत हो जाएगी। लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार जान स्वास्थ्य  पर स्वीकृत डॉक्टर्स के कुल 158,417 पदों में से अभी 34,417 पद सैंक्शन किए गए हैं। इनमें से 27,567 पदों पर ही डॉक्टर काम कर रहे हैं। यानी स्वीकृत पदों में से भी 8572 पद खाली हैं, यानी इतने पदों पर डॉक्टर हैं ही नहीं।

 

दूसरी ओर देश के सभी जिला अस्पतालों में डॉक्टर्स के कुल स्वीकृत 28566 पद हैं, लेकिन यहां भी 24899 डॉक्टर ही रहते हैं। यानी 3667 डॉक्टर्स की कमी है। सब-डिविजनल अस्पतालों में 19576 डॉक्टर होने चाहिए लेकिन हैं सिर्फ 12432 डॉक्टर्स,  यानी 7,144 डॉक्टर्स की कमी है।

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर चाहिए जो इस बीमारी के इलाज को बेहतर तरीके से समझ कर लोगों का इलाज कर सकें लेकिन देश में करीब 82 % स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी है।

देश में कुल 22496 एक्सपर्ट डॉक्टर होने चाहिए, इनमें से 13635 पद स्वीकृत हैं। लेकिन काम करने आते हैं सिर्फ 4074 एक्सपर्ट डॉक्टर्स, यानी स्वीकृत पदों में से 10051 पद खाली हैं। जितने एक्सपर्ट डॉक्टर होने चाहिए उनमें देखें तो देश में 18422 डॉक्टरों की कमी है यानी 81.89 %.

WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार भारत में 1: 1000 अनुपात की जरूरत है जबकि अभी यह अनुपात 1: 1499 है। हालांकि, जमीनी हकीकत से लगता है कि हमारा देश अभी इस बेंचमार्क से कोसों दूर है। अस्पतालों में लगने वाली लंबी लाइनें, मरीजों की भीड़ और अस्पतालों की कमी, अभी देश में स्वास्थ सेवाओं के नामपर ऐसी ही कुछ छवि उभरती है। आंकड़ों की मानें तो अभी देश को 4.3 लाख डॉक्टरों की और जरूरत है।

मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (MCI) के पास वर्ष 2017 तक कुल 10.41 लाख डॉक्टर पंजीकृत थे। इनमें से सरकारी अस्पतालों में 1.2 लाख डॉक्टर हैं। बीते साल सरकार ने संसद में बताया था कि निजी और सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले लगभग 8.18 लाख डाक्टरों को ध्यान में रखें तो देश में डॉक्टर और मरीजों का अनुपात 1:1,612 हो सकता है। लेकिन यह तादाद भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के मुकाबले कम ही है। इसका मतलब है कि देश में डॉक्टरों की भारी कमी हैं। लगातार बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए यह खाई हर साल तेजी से बढ़ रही है।

साल में प्रति व्यक्ति सिर्फ 1,112 रुपये के साथ भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में है। भारत स्वास्थ्य सेवाओं में GDP का महज़ 1।3 प्रतिशत खर्च करता है, जबकि ब्राजील स्वास्थ्य सेवा पर लगभग 8।3 प्रतिशत, रूस 7।1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका लगभग 8।8 प्रतिशत खर्च करता है। दक्षेस देशों में, अफगानिस्तान 8।2 प्रतिशत, मालदीव 13।7 प्रतिशत और नेपाल 5।8 प्रतिशत खर्च करता है। भारत स्वास्थ्य सेवाओं पर अपने पड़ोसी देशों चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी कम खर्च करता है।

अब जब WHO द्वारा कोरोना को महामारी घोषित कर दिया गया है, और भारत में इसके मरीज़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं तो भारत सरकार को इस लचर स्वास्थ्य सिस्टम को तात्कालिक रूप से दुरुस्त करने की ज़रुरत है। स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में विश्व में दूसरे नंबर पर होने के बावजूद इटली का स्वास्थ्य सिस्टम कोलेप्स हो गया था, उम्मीद है भारत सरकार चीन, इटली और ईरान से सबक़ हासिल कर इस मामले को गंभीरता से लेगी।

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